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डिजिटल भारत l भारत से सटे समंदर अपने आप में कई रहस्य समेटे हुए हैं। समंदर के नीचे आज भी ऐसी कई साइट्स दबी हुई हैं जिनके बारे में किसी को नहीं पता। कुछ वर्षों पहले एक ऐसी ही जगह की खोज हुई थी जिसके बारे में जानकार हर कोई हैरान था। हिंदू धर्म के चार धामों में से एक द्वारका धाम को भगवान श्रीकृष्ण की नगरी कहते हैं. द्वारका धाम गुजरात के काठियावाड क्षेत्र में अरब सागर के समीप स्थित है. श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी के जल विलीन होने की कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. चलिए जानते हैं भगवान श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी के डूबने के पीछे क्या वजह थी? पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी के डूबने की मुख्य दो वजह मानी जाती है.
द्वारकाधीश मंदिर के गर्भगृह में चांदी के सिंहासन पर भगवान कृष्ण की श्यामवर्णी चतुर्भुज प्रतिमा विराजमान है। यहां उन्हें ‘रणछोड़जी’ भी कहा जाता है। भगवान हाथ में शंख, चक्र, गदा और कमल लिए हुए हैं। बहुमूल्य आभूषणों और सुंदर वेशभूषा से श्रृंगार की गई प्रतिमा सभी को आकर्षित करती है। मथुरा ने निकलकर भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारका क्षेत्र में पहले से स्थापित खंडहर बने नगर में एक नया नगर बसाया। ऐसा कहा जा सकता है कि भगवान कृष्ण ने अपने पूर्वजों की भूमि को फिर से रहने लायक बनाया।

लेकिन, बाद में ऐसा क्या हुआ कि द्वारका नगरी समुद्र में समा गई। किसने किया द्वारका को नष्ट? क्या प्राकृतिक आपदा से नष्ट हुई द्वारका? इस सवालों का जवाब पाने की कोशिशें अब तक जारी हैं। समुद्र में हजारों फीट नीचे द्वारका नगरी के अवशेष मिले हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, जरासंध द्वारा प्रजा पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए भगवान श्री कृष्ण मथुरा को छोड़कर चले गए थे. श्रीकृष्ण ने समुद्र किनारे अपनी एक दिव्य नगरी बसायी. इस नगरी का नाम द्वारका रखा. माना जाता है कि महाभारत के 36 वर्ष बाद द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई थी. महाभारत में पांडवों की विजय हुई और सभी कौरवों का नाश हो गया था. इसके बाद जब युधिष्ठिर का हस्तिनापुर में राजतिलक हो रहा था, उस समय श्रीकृष्ण भी वहां मौजूद थे.
सूचना मिलते ही कान्हा प्रभास क्षेत्र पहुंचे। अपने पुत्र और प्रियजनों को मृत देखकर श्रीकृष्ण ने क्रोध में वहां खड़ी एरका घास उखाड़ ली और हाथ में आते ही उस घास ने मूसल का रूप ले लिया। लड़ाई में जो लोग बचे रह गए थे, जिन्होंने अपने परिजनों को मारा था, श्रीकृष्ण ने एक-एक वार से उन सभी का वध कर दिया। अंत में सिर्फ श्रीकृष्ण, उनके सारथी दारुक और बलराम बचे। इस पर श्रीकृष्ण ने दारुक से कहा कि हस्तिनापुर जाकर अर्जुन को यहां ले आओ। फिर बलराम को वहीं रुकने को कहा और स्वयं अपने पिता को इस संहार के बारे में सूचित करने द्वारका चले गए। कान्हा ने वासुदेवजी को इस नरसंहार के बारे में बताया और कहा कि जल्द यहां अर्जुन आएंगे। आप नगर की स्त्रियों और बच्चों को लेकर अर्जुन के साथ हस्तिनापुर चले जाइएगा।
दो भाग में है द्वारकापुरी…

  • वर्तमान में गोमती द्वारका और बेट द्वारका एक ही द्वारकापुरी के दो भाग हैं। गोमती द्वारका में ही द्वारका का मुख्य मंदिर है, जो श्री रणछोड़राय मंदिर या द्वारकाधीश मंदिर के नाम से मशहूर है।
  • यह मंदिर लगभग 1500 वर्ष पुराना है। मंदिर सात मंजिला है। इस मंदिर के आस-पास बड़े हिस्से मे जल भरा है। इसे गोमती कहते हैं। इसके आस-पास के कई घाट हैं। जिनमें संगम घाट प्रमुख है।
  • इस मंदिर में भगवान की काले रंग की चार भुजाओं वाली मूर्ति है। इसके अलावा मंदिर के अलग-अलग भागों में अन्य देवी-देवताओं के मंदिर एवं मूर्तियां स्थित है। मंदिर के दक्षिण में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित शारदा मठ भी है।
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