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किन्नरों द्वारा बधाई की रकम पर नियंत्रण: मेहवड़ में नए कानूनों से ग्रामीणों को राहत

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डिजिटल भारत I उत्तर प्रदेश के मेहवड़ खुर्द नागल गांव में किन्नरों द्वारा बधाई के नाम पर की जा रही मनमानी और अत्यधिक धनराशि की मांग को लेकर ग्रामवासियों ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। शनिवार को आयोजित खुली पंचायत में यह तय किया गया कि अब बधाई के रूप में किन्नरों को 1,100 रुपये से लेकर 3,100 रुपये तक की रकम दी जाएगी, और इससे अधिक किसी भी राशि को स्वीकार नहीं किया जाएगा। इसके साथ ही, यदि कोई किन्नर इस सीमा से अधिक की मांग करता है, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
किन्नरों की बधाई की परंपरा और वर्तमान समस्याएँ
किन्नरों की बधाई की परंपरा भारत में लंबे समय से चली आ रही है, जो प्राचीन काल से विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक अवसरों पर देखने को मिलती है। भारतीय समाज में किन्नरों को अक्सर विशेष अवसरों पर शुभकामनाएँ देने के लिए बुलाया जाता है, जैसे कि शादी, बच्चे का जन्म या अन्य खुशी के मौके पर। पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार, किन्नर समाज की आधिकारिक मान्यता और सामाजिक स्वीकृति की ओर संकेत करते हैं।
हालांकि, हाल के वर्षों में कई गांवों और शहरों में किन्नरों द्वारा बधाई के नाम पर अत्यधिक धनराशि की मांग और मनमानी व्यवहार की घटनाएँ बढ़ गई हैं। मेहवड़ खुर्द नागल गांव में भी ऐसी ही समस्याएँ सामने आई हैं। ग्रामीणों का कहना है कि किन्नर शुभ अवसरों पर बधाई देने के बदले में मनमानी रकम की मांग करते हैं। यदि कोई ग्रामीण इस रकम को देने में असमर्थता जताता है, तो किन्नर उसके साथ अभद्रता और अपमानजनक व्यवहार करते हैं, जो स्थानीय लोगों के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है।
गांव में लागू किए गए नए नियम
इस समस्या के समाधान के लिए, ग्रामीणों ने एक खुली पंचायत बुलाई, जिसमें किन्नरों को बधाई के नाम पर निर्धारित रकम देने का निर्णय लिया गया। पंचायत के दौरान यह तय किया गया कि किन्नरों को न्यूनतम 1,100 रुपये और अधिकतम 3,100 रुपये की ही धनराशि दी जाएगी। यह सीमा तय करने का उद्देश्य किन्नरों की मनमानी और अत्यधिक रकम की मांग को रोकना है।
यदि कोई किन्नर इस सीमा से अधिक की मांग करता है, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। पंचायत ने इस आदेश को लागू करने के लिए गांव में एक बोर्ड भी लगाया है, जो इस नियम को सभी ग्रामीणों तक पहुँचाएगा और किन्नरों को सूचित करेगा।
गोवंश की बिक्री-खरीद पर कड़े नियम
इसके अतिरिक्त, पंचायत ने गोवंश (गाय, बैल, बछड़ा आदि) की बिक्री और खरीद पर भी कड़े नियम-कायदे लागू किए हैं। अब किसी भी ग्रामीण को गोवंश बेचने से पहले खरीदार की पूरी जानकारी ग्राम पंचायत को उपलब्ध करानी होगी। इसमें खरीदार का आधार कार्ड, मोबाइल नंबर और पशु का हुलिया शामिल होगा। यह निर्णय गोवंश की अवैध बिक्री और धोखाधड़ी को रोकने के लिए लिया गया है।
किन्नरों द्वारा बधाई की परंपरा पर शोध
भारत में किन्नरों की बधाई की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है, जो धार्मिक और सांस्कृतिक संदर्भ में महत्वपूर्ण मानी जाती है। किन्नरों को धार्मिक अनुष्ठानों और खुशी के अवसरों पर विशेष मान्यता दी जाती है, और उनकी बधाई को शुभ माना जाता है।
यह परंपरा समाज के विभिन्न वर्गों में अलग-अलग रूप में देखने को मिलती है। किन्नरों द्वारा बधाई के नाम पर रकम की मांग की परंपरा भी इसी का हिस्सा है, लेकिन हाल के वर्षों में इस परिप्रेक्ष्य में बदलाव आया है। सामाजिक मान्यता और आर्थिक स्थितियों में बदलाव के साथ, किन्नरों द्वारा की जा रही धनराशि की मांग ने कई क्षेत्रों में विवाद उत्पन्न किए हैं।
इस प्रकार के विवादों के समाधान के लिए पंचायतों और स्थानीय प्रशासन को सक्रिय कदम उठाने की आवश्यकता है। यह निर्णय मेहवड़ खुर्द नागल गांव में किन्नरों की बधाई की रकम को नियंत्रित करने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रयास है, जो अन्य क्षेत्रों में भी एक मिसाल कायम कर सकता है।
निष्कर्ष
मेहवड़ खुर्द नागल गांव में किन्नरों द्वारा बधाई की रकम को निर्धारित करने के लिए उठाए गए कदम और गोवंश की बिक्री-खरीद पर लागू किए गए नए नियम, ग्रामीणों की समस्याओं के समाधान में एक महत्वपूर्ण कदम हैं। इन निर्णयों से न केवल किन्नरों के साथ के व्यवहार में सुधार होगा, बल्कि गांव में पारदर्शिता और न्याय की भावना भी मजबूत होगी। यह प्रयास समाज के सभी वर्गों के लिए एक सकारात्मक संकेत है, जो सामाजिक व्यवस्थाओं को अधिक प्रभावी और न्यायपूर्ण बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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कौन सा ‘कानून’ आ रहा है?, मुख्य चुनाव आयुक्त के अधिकार छीन रही सरकार

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डिजिटल भारत l सभी याचिकाओं को एक करके सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने इस पर सुनवाई करते हुए फ़ैसला सुनाया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति सरकार के नियंत्रण से बाहर होनी चाहिए. जस्टिस के.एम. जोसेफ़ की संवैधानिक पीठ ने अपने फ़ैसले में कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों (ईसी) की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की सलाह पर की जाए, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता (या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता) और भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल होंगे.
इस फ़ैसले के बाद मॉनसून सत्र में 10 अगस्त को मोदी सरकार ने राज्यसभा में एक बिल भी पेश कर दिया जिसका नाम था मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023. इस विधेयक पर राज्यसभा में जमकर हंगामा हुआ.
विशेष सत्र में 18 सितंबर को होगी चर्चा मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और टर्म ऑफ ऑफिस) विधेयक, 2023 को राज्यसभा में 10 अगस्त को मानसून सत्र के दौरान पेश किया गया था. संसद के विशेष सत्र में इस पर 18 सितंबर को चर्चा होने वाली है. इस विधेयक में मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा शर्तों को संशोधित करने का प्रस्ताव है. इसके ज़रिए उनका पद कैबिनेट सचिव के बराबर हो जाएगा. तत्कालीन समय में उनका पद सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर है. विधेयक पास होने पर चुनाव आयुक्तों के वेतन में कोई खास अंतर नहीं आएगा. सुप्रीम कोर्ट के जज और कैबिनेट सचिवों का मूल वेतन लगभग बराबर ही है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के जजों को रिटायरमेंट के बाद भी सरकारी लाभ मिलते हैं. इनमें ताउम्र ड्राइवर और घरेलू मदद के लिए कर्मचारी शामिल हैं. लेकिन बेचैनी इस बात की है कि चुनाव आयुक्तों को नौकरशाही में मिलाने से उनके अधिकार कम हो जाएंगे.

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