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एक भारत उत्कृष्ट भारत

ये ग्रेटर लंदन के दोगुने से भी बड़ा,जाने क्यों साबित हो रहा बढ़ा खतरा

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डिजिटल भारत I दक्षिण अमेरिका के दक्षिण में अंटार्कटिक प्रायद्वीप के पास ठंडे पानी में चलने वाले जहाजों को बर्फ के तैरते द्वीप के लिए अपने रडार पर नजर रखने की आवश्यकता होगी: “दुनिया का सबसे बड़ा हिमखंड, ए-23ए, खुले समुद्र में जा रहा है !” जैसा कि ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण ने हाल ही में घोषणा की है ।
कोलोराडो बोल्डर विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ शोध वैज्ञानिक टेड स्कैम्बोस ने एनपीआर को बताया, “यह एक ट्रिलियन टन बर्फ है। इसलिए यह समझना मुश्किल है कि यह बर्फ का कितना बड़ा टुकड़ा है।”
यूएस नेशनल आइस सेंटर के अनुसार, आइसबर्ग A23a की माप 40 गुणा 32 समुद्री मील है । तुलना के लिए, हवाई का ओहू द्वीप 44 मील लंबा और 30 मील चौड़ा है । और न्यूयॉर्क शहर का मैनहट्टन द्वीप लगभग 13.4 मील लंबा है और अपने सबसे चौड़े बिंदु पर लगभग 2.3 मील तक फैला है।
यह दुनिया का सबसे बड़ा हिमखंड है
A23a ने हमेशा यह उपाधि धारण नहीं की है। उदाहरण के लिए, 2021 में, इसकी जगह हिमशैल ए-76 ने ले ली, जो वेडेल सागर में भी रोने आइस शेल्फ़ से टूटा था । लेकिन वह विशाल जल्द ही छोटे हिमखंडों में टूट गया , जिससे A23a फिर से शीर्ष स्थान पर आ गया।
“यह वास्तव में बर्फ का एक विशाल टुकड़ा है,” स्कैम्बोस ने कहा, यह देखते हुए कि हिमखंड संभवतः 1,000 से 1,200 फीट मोटा है।
इसकी जड़ें 1986 की आस्ट्रेलियाई सर्दियों तक फैली हुई हैं, जब फिल्चनर आइस शेल्फ का अग्रणी किनारा टूटकर तीन विशाल हिमखंडों में बदल गया: A22, A23 और A24। 1991 के अंत में, A23a एक अलग हिमखंड बन गया।
हिमखंड पर जीवन अजीब हो सकता है
स्कैम्बोस ने कहा, यदि आप A23a पर पैर रखते हैं, तो आपको संभवतः यह एहसास नहीं होगा कि यह एक हिमखंड है, जो समुद्र में ढीला तैर रहा है। इसका पैमाना बस क्षितिज को भर देगा; कोई भी हलचल अगोचर होगी. उसे पता होना चाहिए. वह पहले भी हिमखंडों पर डेरा डाल चुके हैं।

उसे एक अजीब बात याद आती है: भटकाव।

स्कैम्बोस ने कहा, “जिस बर्फ पर आधार बनाया गया था वह घूमना शुरू कर देगी और इससे सूरज आकाश में अजीब चीजें करेगा।” “यह वहां नहीं होगा जहां इसे सुबह या शाम या रात में होना चाहिए – भले ही यह 24 घंटे का दिन हो।”

वर्षों से, उन्होंने ऐसे लोगों से सुना है जो हिमखंड की यात्रा करना चाहते हैं। और स्कैम्बोस का कहना है कि जबकि उनके कुछ लक्ष्य अजीब थे (जैसे कि, लोग बर्फ के साम्राज्य पर एकतरफा संप्रभुता घोषित करने की उम्मीद कर रहे थे), A23a जैसा विशाल हिमखंड काफी स्थिर है – एक बड़ी चेतावनी के साथ।
इसे ‘ए23ए’ (A23a) के नाम से भी जाना जाता है. साल 1986 में ये अंटार्कटिका के तट से टूट कर अलग हो गया था. लेकिन हाल ही में अपने इलाके से दूरी बढ़ानी शुरू कर दी है.
तीस से अधिक बरसों से ये वेडेल सी में एक स्थिर हिम द्वीप के रूप में अटका हुआ रहा. इस हिम खंड के 350 मीटर लंबे निचले सिरे ने एक ज़माने तक अपनी जगह पर लंगर डाले रखा.
लेकिन गुजरते वक़्त के साथ-साथ ये पिघल भी रहा था और साल 2020 आते-आते हिम खंड के तैरने का रास्ता खुल गया और ये एक बार फिर से गतिशील हो गया.
‘ए23ए’ अब ऐसे रास्ते पर आगे बढ़ रहा है जहां से होकर अंटार्कटिका के बहते हुए बर्फ़ का ज़्यादातर हिस्सा गुजरता है.
वैज्ञानिक इसे ‘आइसबर्ग ऐले’ या ‘हिमखंडों की पगडंडी’ भी कहते हैं.
किसी हिमखंड के लिए ये बर्बादी के रास्ते पर आगे बढ़ने की तरह है. ये बिखरने जा रहा है, पिघलने जा रहा है. इसका अस्तित्व ख़त्म होने जा रहा है और वो भी कुछ ही महीनों के भीतर.
आने वाले हफ़्तों में इसके प्रवाह को हवाएं, समुद्री तूफ़ान और पानी का बहाव तय करेगा.
लेकिन ब्रिटिश ओवरसीज़ टेरीटरी तक आते-आते ऐसे हिमखंड पिघलकर ख़त्म हो जाते हैं.
‘ए23ए’ हिमखंड का साइज़ पूरी तरह से मापना आसान नहीं है.
जब यूरोपीय स्पेस एजेंसी के वैज्ञानिकों ने इस हिमखंड को मापना चाहा तो पाया कि इसकी ऊँचाई 920 फ़ुट है.

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ये फसल है चांदी से भी महंगी जाने कैसे और कहा हो सकती है इसकी खेती

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डिजिटल भारत I भारत में हर उस जगह पर वनीला की खेती हो सकती है, जहां का तापमान सामान्य रहता हो. इसके साथ ही इसकी खेती छायादार जगहों पर भी हो सकती है. वनीला की खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं
जानें वनीला की खासियत
भारत में ज्यादातर किसानों को अभी ये नहीं पता होगा कि वनीला कैसा होता है. दरअसल, ये बाहर की फसल है और भारत में इसकी खेती बहुत कम होती है. हालांकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी डिमांड बहुत ज्यादा है. वनीला एक पौधा होता है, जिसमें बीन्स के जैसे फल होते हैं, वहीं इसके फूल कैप्सूल जैसे होते हैं. वनीला के फूलों की खुशबू काफी शानदार होती है, उन्हीं के सूख जाने के बाद उसका पाउडर बनाया जाता है और फिर इसे बाजार में ऊंची कीमतों पर बेचा जाता है. वनीला में एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, वहीं इसमें एंटी बैक्टीरियल गुण भी होते हैं. कहा जाता है कि इसके अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की शक्ति होती है और यह बेहद फायदेमंद होता है.
फसल की बात की है तो आपके जेहन में गेंहू, चना, सोयाबीन या फिर किसी दाल का नाम आया होगा जो आमतौर पर चांदी से बहुत सस्ती है, लेकिन इस दुनिया में एक ऐसी फसल है जो चांदी जितनी महंगी है और बाजार में खूब उपयोग की जाती है। ये फसल कौन सी है आइए आपको इसके बारे में बताते हैं:
जिस फसल की बात हम कर रहे हैं उसका नाम वनीला है जिसका उपयोग आइसक्रीम में फ्लेवर के रूप में किया जाता है। वनील की कीमत लगातार बढ़ रही है। ब्रिटेन के मार्केट में इसकी कीमत ६०० डॉलर प्रति किलो हैं तो भारतीय मुद्रा में एक किलो वनीला खरीदने के लिए आपको ४२ हजार रुपए खर्च करने होंगे। ब्रिटेन के स्नगबरी आइसक्रीम कंपनी हर हफ्ते पांच टन आइसक्रीम बनाती है। उनके 40 फ्लेवर्स में एक तिहाई में किसी न किसी तरह से वनीला का इस्तेमाल होता है। गत सालों की बात करें तो ये कम्पनी वनीला जिस कीमत पर खरीद रही थी, आज वे तीस गुना से भी ज्यादा कीमत चुका रहे हैं।
मुश्किल होती है वनीला की खेती
वनीला की खेती एक मुश्किल काम है। वनीला से इसका अर्क निकाला जाता है। यही वजह है कि केसर के बाद ये दुनिया की दूसरी सबसे महंगी फसल है। मैडागास्कर के अलावा पपुआ न्यू गिनी, भारत और यूगांडा में इसकी खेती होती है। दुनिया भर में इसकी मांग है। अमेरीका अपनी बड़ी आइसक्रीम इंडस्ट्री की वजह से काफी वनीला खपत करता है। न केवल आइसक्रीम, बल्कि वनीला का इस्तेमाल मिठाइयों और शराब से लेकर परफ्यूम तक में होता है।
अगर आप खेती में ज्यादा लाभ कमाना चाहते हैं तो वनीला आपके लिए सबसे बेहतरीन विकल्प है। आप वनीला की खेती करके मोटी कमाई कर सकते हैं। वनीला को फल की कई देशों में खूब मांग है। भारतीय मसाला बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में जितनी भी आइस्क्रीम बनती है, उसमें से 40 प्रतिशत वनीला फ्लेवर की होती हैं। वनीला की मांग भारत की तुलना में विदेशों में ज्यादा है। ऐसे में माल विदेश भेजने पर बड़ा मुनाफा होता है। दुनिया का 75 प्रतिशत वनीला मैडागास्कर में ही पैदा होता है। भारत में इसकी कीमतों में उछाल होता रहता है। हालंकि मूल्य स्तर कितना भी हो वनीला उत्पादक को कभी घाटे का मुंह नही देखना पड़ता। आज हम आपको वनीला की खेती कर ज्यादा कमाई के बारे में बता रहे हैं।
बीज की कीमत
भारत में 1 किलो वनीला खरीदने पर आपको 40 हजार रुपए तक देना पड़ सकता है। ब्रिटेन के बाजारों में इसकी कीमत 600 डॉलर प्रति किलो तक पहुंच गया है। मसाला बोर्ड की माने तो वनीला आर्किड परिवार का एक सदस्य है। यह एक बेल पौधा है जिसका तना लंबा और बेलनकार होता है। इसके फल सुगंधित और कैप्सूल के आकार के होते हैं। फूल सूख जाने पर खुशबूदार हो जाते हैं और एक फल से ढेरों बीज मिलते हैं।
नॉर्थ-ईस्ट में वनीला की खेती का अच्छा स्कोप
वहीं, नॉर्थ-ईस्ट में वनीला की खेती का अच्छा स्कोप है, क्योंकि यहां की जलवायु और मिट्टी इसकी खेती के लिए अनुकूल है. भारतीय वनिला की विदेशी बाजारों में मांग काफी अधिक है. क्योंकि यह यहां जैविक रूप से इसकी खेती की जाती है.
इस बीच, मंदी के मद्देनजर विदेशी बाजारों में स्थिर मांग के बीच वनीला की कीमतें स्थिर रहीं.

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जाने जबलपुर क्या है जबलपुर में खास

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डिजिटल भारत i भेड़ाघाट को संगमरमरीय सौंदर्य और शानदार झरनों के लिए ही जाना जाता है, साथ ही धुआंधार जलप्रपात चमकती हुई मार्बल की (संगमरमर की) 100 फीट ऊंची चट्टनों के लिए भी पर्यटकों के बीच प्रसिद्ध है। नर्मदा नदी इन संगमरमर की चट्टानों के मध्य से धीरे-धीरे बहती है और थोड़ी दूर जाकर धुंआधार के रूप में प्रसिद्ध एक झरने में मिल जाती है।

भेड़ाघाट जबलपुर शहर में है। यह शहर भारत के ह्रदय राज्य मध्यप्रदेश का खूबसूरत पर्यटन स्थल है। कुदरती खूबसूरती के साथ इतिहास का परिदृश्य इस स्थल को खास बनाने का काम करता है। माना जाता है कि इस भूमि पर इंसान ने अपने कदम 300 ईसा पूर्व के बाद रखे थे।

मध्य प्रदेश के जबलपुर के भेड़ाघाट-लम्हेटाघाट को यूनेस्को ने विश्व धरोहर की संभावित सूची में जोड़ लिया है। ये पहली कामयाबी है, अभी चार और कठिन चरण पार करने होंगे। जिसके बाद ही विश्व धरोहर के तौर पर पहचान मिलेगी। इसमें कितना वक्त लगेगा यह साफ नहीं है।
जबलपुर नगरी कभी गढ़ा गोंडवाना, तो कभी त्रिपुरी के नाम से विख्यात रही। यहां कई कलचुरि राजा हुए, जिन्होंने हिमालय से लेकर सागर के तट तक समस्त राज सत्ताओं को त्रिपुरी के अधीन कर दिया था।

मदन महल किला: यह जबलपुर में एक आकर्षण स्थल है, जो अपने ऐतिहासिक महत्व और सुंदर दृश्यों के लिए जाना जाता है। किले से शहर का मनोहर नजारा देखने को मिलता है।
ग्वारीघाट: जबलपुर में यह घुमने वाली जगह अपनी धार्मिक महत्वता और शांत वातावरण के लिए प्रसिद्ध है। नर्मदा नदी के किनारे स्थित इस घाट पर शाम की आरती देखने को मिलती है।
चौसठ योगिनी मंदिर: यह जबलपुर में एक प्रमुख भ्रमण स्थान है, जो अपने ऐतिहासिक महत्व और वास्तुकला के लिए जाना जाता है। मंदिर में 64 योगिनियों की मूर्तियाँ हैं।
धुआंधार जलप्रपात: जबलपुर में यह पर्यटन स्थल अपनी अद्भुत सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। नर्मदा नदी के ऊपर स्थित यह जलप्रपात अपने धुएँ के समान फैलते पानी के लिए विख्यात है।
बैलेंसिंग रॉक: जबलपुर में यह टूरिस्टिक स्थल प्राकृतिक चमत्कार का एक उदाहरण प्रस्तुत करता है। यहाँ के चट्टानों का संतुलन देखने लायक है।
डुमना नेचर रिजर्व पार्क: यह जबलपुर में एक दर्शनीय स्थल है, जहाँ प्रकृति और वन्यजीवन का संगम देखने को मिलता है। पार्क में विविध प्रकार के पेड़-पौधे और जीव-जंतु हैं।
बरगी बांध: जबलपुर के इस यात्रा स्थल पर पानी की विशालता और शांति का अनुभव करें। बरगी बांध बोटिंग और पिकनिक के लिए एक प्रसिद्ध पर्यटकों का स्थल है।
रानी दुर्गावती संग्रहालय: इतिहास और कला के प्रेमियों के लिए जबलपुर में यह दर्शनीय स्थल एक महत्वपूर्ण आकर्षण है। संग्रहालय में रानी दुर्गावती के जीवन और वीरता की झलक मिलती है।
संग्राम सागर झील: जबलपुर की इस रोमांचक यात्रा स्थल पर प्राकृतिक सौंदर्य और शांति का आनंद उठाएं। झील का वातावरण पिकनिक और आराम के लिए उत्तम है।
हनुमंतल जैन मंदिर: जबलपुर में स्थित यह आकर्षण स्थल धार्मिक महत्व रखता है और जैन समुदाय के लिए एक पवित्र स्थान है। मंदिर की वास्तुकला और शांत वातावरण यात्रियों को आकर्षित करते हैं।
गुरुद्वारा ग्वारीघाट साहिब: नर्मदा नदी के किनारे स्थित, जबलपुर में यह भ्रमण का स्थान आध्यात्मिक शांति और संस्कृति का संगम प्रदान करता है। यहाँ का वातावरण भक्तिमय और प्रेरणादायक है।
पिसनहारी की मडिया: जबलपुर के इस पर्यटन आकर्षण में जैन धर्म की गहराई और ऐतिहासिक महत्व को देखा जा सकता है। यह जगह शांति और ध्यान के लिए आदर्श है।
तिलवाड़ा घाट: जबलपुर में यह पर्यटन स्थल महात्मा गांधी की अस्थियों को विसर्जित करने के लिए प्रसिद्ध है। इस अवलोकन स्थल से नर्मदा नदी का मनोहर दृश्य देखा जा सकता है।
भवारतल उद्यान: जबलपुर के इस भ्रमण स्थल पर विभिन्न प्रकार की स्लाइड्स, झूले और खिलौना ट्रेनें हैं। उद्यान योग और फिटनेस सत्रों के लिए लोकप्रिय है।
श्री विष्णु वराह मंदिर: जबलपुर में स्थित, यह धार्मिक स्थल भक्तों के लिए एक शांतिपूर्ण जगह है। मंदिर में भगवान विष्णु की आदमकद मूर्ति है।
भेड़ाघाट: यह पर्यटन आकर्षण नर्मदा नदी के किनारे स्थित है और संगमरमर की चट्टानों के लिए प्रसिद्ध है। यहां नाव की सवारी और चांदनी रात में दृश्य विशेष रूप से मनमोहक होते हैं।
कचनार सिटी शिव मंदिर: जबलपुर में यह टूरिस्ट स्पॉट 76 फुट ऊँची शिव मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर अपने धार्मिक महत्व और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है।

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कल रात जब आप नींद में थे तब छा गया आसमान में घाना साया

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डिजिटल भारत l उत्तरी अमेरिका में दोपहर में ही अचानक से रात हो गई। सात सालों बात ऐसा हुआ कि इस महाद्वीप में सूर्य ग्रहण को लोगों ने इतने करीब से एक्सपीरिएंस किया। सूरज पर छा रहे इस अंधेरे को लाइव देखने के लिए लोगों ने काफी इंतजाम किया। देखिए महाद्वीप के अलग-अलग शहरों से सूर्य ग्रहण का नजारा-
Megan McBride ने सूर्य ग्रहण को बेहद करीब से देखा। वो Choctaw Nation ट्रेडिशन में हिस्सा लेने के लिए Wheelock Academy ओक्लाहोमा में आए थे। जहां सभी मिलकर शोर मचाते हैं Fvni Lusa और काली गिलहरी को सूरज खाने से रोकते हैं।

मैक्सिको के पश्चिमी तट पर स्थित माजात्लान में स्थानीय समयानुसार दिन में 11:07 बजे यहां सूर्य ग्रहण पहली बार देखा गया.

सूर्य ग्रहण के दौरान वो पल भी आया, जिसे रिंग कहा जाता है. यानी आकार कुछ ऐसा बनता है कि लगता है आसमान में कोई अंगूठी चमक रही है.

चंद्रमा सूरज की तुलना में पृथ्वी से 400 गुना ज़्यादा क़रीब है, लेकिन चंद्रमा आकार में सूरज से 400 गुना छोटा भी है.

टोटलिटी नाम की किताब में लेखक मार्क लिटमैन लिखते हैं कि अगर चंद्रमा डायमीटर में 273 किलोमीटर छोटा होता या दूर होता तो लोग अभी इस तरह का सूर्य ग्रहण देख ही नहीं पाते.

इसके चलते ही जब चंद्रमा एक सीधी रेखा के बिंदू के तौर पर सूर्य और पृथ्वी के बीच आता है, तो यह सूर्य को ढक लेता है और हमें ग्रहण दिखाई देता है.

सूर्य ग्रहण को देखने वालों में हर उम्र के लोग रहे. इसमें बुजुर्गों से लेकर बच्चे तक शामिल थे.

भारत में कुछ लोगों की मान्यताएं हैं कि सूर्य ग्रहण में शुभ काम नहीं करना चाहिए और ईश्वर का नाम लेना चाहिए.

मगर पश्चिम में कुछ लोगों की मान्यताएं इससे एकदम अलग हैं.

जैसे अमेरिका के राज्य आर्कन्सा में 300 कपल ने तय किया कि जब सूर्य ग्रहण होगा और आसमान में अंधेरा छा जाएगा, ठीक तभी ब्याह करेंगे.

लिहाज़ा जैसे ही सूर्य ग्रहण पूरा हुआ, कितने ही लोगों ने शादी का केक काटा, डांस किया

कुछ लोग ऐसे भी रहे, जो सूर्य ग्रहण का नज़ारा देखने के लिए अपने घर से दूर की किसी जगह गए थे.

डैरकी हॉवर्ड कहती हैं- मैं दो सूर्यग्रहण देख चुकी हूं, हर सूर्य ग्रहण की एक अपनी छाप होती है.

वो बोलीं, ”मैं अपने टेलीस्कोप से ज्यूपिटर, सैटर्न को देख सकती हूं. मैं जब अंतरिक्ष की ओर देखती हूं तो लगता है दुनिया में सब सही है.”

ओहायो के क्लीवलैंड में सूर्य ग्रहण का बढ़िया नज़ारा देखने को मिला.

हालांकि कुछ अमेरिकी शहर ऐसे भी रहे, जहां ये नज़ारा देखा नहीं जा सका.

नियाग्रा फॉल्स में पर्यटकों की भीड़ इस अद्भुत क्षण को देखने के लिए जुटी थी

सूर्यग्रहण और इसका असर?
पूरे उत्तरी अमेरिका में पड़ने वाले पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान हमें शायद इतनी नाटकीय प्रतिक्रिया न नज़र आए, लेकिन हाल में हुए शोध बताते हैं कि इसके बाद भी विस्मय की भावना पैदा कर यह हमारे मनोविज्ञान पर तगड़ा प्रभाव डाल सकता है.

खगोलीय संयोगों से इतर अधिक विस्मयकारी कुछ घटनाए हैं जो हमें पूर्ण सूर्य ग्रहण का अनुभव करने की इजाज़त देती हैं. पूर्ण सूर्य ग्रहण चंद्रमा के सटीक आकार और पृथ्वी से उसकी दूरी पर निर्भर करता है.

सूर्य के सामने से गुज़रने और कुछ क्षणों के लिए उसके प्रकाश को पूरी तरह से रोक देने के लिए चंद्रमा सही कक्षा में होता है. शोध के मुताबिक़, ऐसी आश्चर्यजनक घटना का साक्षी बनना, हम सभी को अधिक विनम्रता और दूसरों की देखभाल करने के लिए प्रेरित कर सकता है.

जॉन्स हॉपकिंस विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक शॉन गोल्डी ने 2017 के ग्रहण के मनोवैज्ञानिक प्रभावों की जांच की थी.

वो कहते हैं, “लोग अधिक जुड़ सकते हैं, वे कह सकते हैं कि उनके दूसरों लोगों के साथ घनिष्ठ सामाजिक संबंध हैं. इसके साथ ही वे अपने समुदाय से अधिक जुड़ाव महसूस करते हैं.”

वैज्ञानिकों की ओर से लंबे समय से उपेक्षित रहा यह क्षेत्र पिछले दो दशक में वैज्ञानिक अध्ययन का फैशनेबल क्षेत्र बन गया है. इसे आश्चर्य और विस्मय की भावना के रूप में परिभाषित किया गया है.

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सीएम अरविंद केजरीवाल को नैतिकता के कारण पहले ही दे देना चाहिए था इस्तीफा

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डिजिटल भारत l आम आदमी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता, दिल्ली के मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी के खिलाफ आज सामूहिक उपवास रखेंगे. बता दें कि दिल्ली शराब नीति से जुड़े भ्रष्टाचार मामले में सीएम अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार किया गया है और फिलहाल वह न्यायिक हिरासत में हैं.
कुमार महानिदेशक (जेल) के पद पर भी काम किया. कुमार ने शुक्रवार को ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि उन्हें तिहाड़ जेल में अपने कार्यकाल के दौरान ‘‘अधिकतम संख्या में वीवीआईपी के ध्यान रखने” का मौका मिला था.

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे अधिकतम संख्या में वीवीआईपी का ध्यान रखने का मौका मिला था. उस समय राष्ट्रमंडल खेल घोटाला हुआ था. सुरेश कलमाड़ी, कनिमोइ, ए राजा (2जी स्पेक्ट्रम घोटाला) से लेकर, रिलायंस के लोग, सीडब्ल्यूजी, अमर सिंह, आईएएस अधिकारी, आईपीएस अधिकारी वहां थे.”
हिंदू सेना की याचिका में क्या कहा गया है?

हिंदू सेना ने याचिका में एलजी को यह आदेश जारी करने की मांग की है कि वे केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त करें. इसके साथ ही यह भी तय किया जाए कि दिल्ली की सरकार एलजी के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा चले. याचिका में कहा गया है कि देश के संविधान में ऐसी कोई कल्पना नहीं है कि एक मुख्यमंत्री गिरफ्तारी की स्थिति में न्यायिक या पुलिस हिरासत से सरकार चला सकें.
कुमार की याचिका को न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की अदालत में आज सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था. इस याचिका में कुमार ने कहा है कि दिल्ली के लिए अब रद्द की गई आबकारी नीति से जुड़े धनशोधन के मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने केजरीवाल को गिरफ्तार किया है और वह संविधान के तहत मुख्यमंत्री के कार्यों को करने में ‘अक्षमता’ महसूस कर रहे हैं. याचिका में कहा गया है कि आप नेता की ‘अनुपलब्धता’ संवैधानिक तंत्र को जटिल बनाती है और वह संविधान के निर्देश के अनुसार जेल से कभी भी मुख्यमंत्री के रूप में कार्य नहीं कर सकते हैं.

नैतिकता के कारण पहले ही दे देना चाहिए था इस्तीफा
याचिका हिंदू सेना के वकील बरुण सिन्हा ने दायर की है, जिसमें कहा गया है, “दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में अरविंद केजरीवाल ने संविधान द्वारा उन पर जताए गए संवैधानिक विश्वास का उल्लंघन किया है. धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत ईडी द्वारा उन्हें गिरफ्तार किया गया है.” याचिका में कहा गया है, “इसलिए, संवैधानिक नैतिकता के कारण, उन्हें जांच एजेंसी द्वारा हिरासत में लिए जाने से पहले इस्तीफा दे देना चाहिए था.”

इस याचिका में कहा गया, ‘‘संविधान का अनुच्छेद 239एए(4) उपराज्यपाल को उनके उन कार्यों को करने में सहायता और सलाह देने के लिए मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिपरिषद का प्रावधान करता है जिनके संबंध में विधानसभा के पास कानून बनाने की शक्ति है. उपराज्यपाल को सहायता और सलाह व्यावहारिक रूप से तब तक संभव नहीं है जब तक मुख्यमंत्री संविधान के तहत अपनी सहायता और सलाह देने के लिए स्वतंत्र व्यक्ति उपलब्ध न हो.”

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कुमार गंधर्व आधुनिक समय के सर्वश्रेष्ठ गायक: कुमार गंधर्व की 100वीं जयंती

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डिजिटल भारत I 1935 की बात है. सारा हॉल खचाखच भरा हुआ था. कहीं खड़े रखने की जगह नहीं थी. रसिकों की भारी भीड़. गुणों को हाथों-हाथ झेल लेने वालों की सभा थी वह. ऐसी स्थिति में उम्र से बारह किंतु दीखने में नौ वर्ष का बाल कुमार स्टेज पर आ बैठा और उसने सभा पर अपनी आवाज़ का सम्माेहन अस्त्र चला दिया. एक क्षण में वह सारी सभा जैसे उसकी पकड़ में आ गई. हर जगह प्रत्येक हरकत पर दाद दी जा रही थी. सभा का उत्साह जैसे उबला जा रहा था. गाना थोड़ी ही देर चला, लेकिन हर चेहरे पर विस्मय अंकित था. हर उपस्थित रसिक एवं कलाकार में इस लड़के की सराहना करने की लहरें उठ रही थीं. लिहाजा वहां पुरस्कारों की झड़ी लग गई. देने वालों में खां साहेबान थे, पंडित जी थे, गायिकाएं थीं. हर एक को यह फ़िक़्र भी थी कि इस लड़के के असामान्य गुणों की देखभाल और विकास कौन करेगा?” – वामनराव देशपांडे
कुमार गंधर्व की प्रतिभा कुछ ऐसी ही थी. जन्‍मजात थी. लेकिन कुमार के पहली बार गाने का किस्‍सा भी बड़ा रोचक है, जिसका जिक्र वामनराव देशपांडे उस किताब की भूमिका में करते हैं, “कुमार जी के घर में उनके जन्म से ही संगीत का वातावरण था और इसीलिए तभी से उन पर संगीत के संस्कार होने लगे. अनजाने ही सुनने की प्रक्रिया निरंतर जारी थी. लेकिन उन्होंने कभी मुंह नहीं खोला. घर भर में किसी को ज़रा भी संदेह तक नहीं था कि इस लड़के के मन में कुछ संस्कार हो रहे हैं या जम रहे हैं. और ऐसी में एक दिन उम्र के छठवें वर्ष में जैसे गीली जमीन को फाड़कर अंकुर बाहर आ जाए, कुमार जी एकदम गाने लगे. उस गायन से सबको इतना अचरज हुआ कि कहा नहीं जा सकता क्योंकि कुमार जी वझेबुआ (उस जमाने के ख्यात शास्त्रीय गायक) का एक ग्रामोफोन रिकॉर्ड सुनकर उसकी हूबहू नक़ल उतार रहे थे…. इस तरह कुमार जी गाने लगे और धीरे-धीरे उनके पिता ने गाना छोड़ दिया.”

वह 11 बरस के थे, जब उनके पिता ने उन्‍हें संगीत सीखने बी.आर. देवधर के पास महाराष्‍ट्र भेज दिया. बी.आर. देवधर अपने जमाने के जाने- माने शास्‍त्रीय गायक और शिक्षक थे. उन्‍होंने संगीत घरानों की परंपरा को तोड़ते हुए मुंबई में देवधर स्‍कूल ऑफ म्‍यूजिक की स्‍थापना की. इसी स्‍कूल में 11 बरस का बालक शिवपुत्र 1934 में संगीत सीखने के लिए भेजा गया.
आठ अप्रैल, 2024 को उनकी जन्म शताब्दी मनाई जा रही है. इसको लेकर संगीत प्रेमियों में काफ़ी उत्साह दिख रहा है.
अपने माता-पिता के दांपत्‍य के बारे में उसी इंटरव्‍यू में कलापिनी कोमकली ने कहा था कि मेरे माता-पिता का संबंध पारंपरिक पति-पत्नी की तरह नहीं था, लेकिन वो दोनों एक-दूसरे में इस तरह एकाकार हो चुके थे कि दो लगते ही नहीं थे. उन्‍हें संवाद के लिए शब्दों की जरूरत नहीं थी. वो बिना कहे ही एक-दूसरे की बात समझ जाते. उन दोनों को साथ गाते देखना ईश्‍वरीय साक्षात्कार की तरह था. वह संगत, वह संतुलन, वह शिखर, जहां दोनों साथ-साथ पहुंचते थे.

कुमार गंधर्व को गुज़रे तीन दशक से ज़्यादा हो चुके हैं लेकिन उनके गीतों का जादू कायम है.

कुमार गंधर्व के गाए कबीर और सूरदास के भजनों और सृजित नए रागों के बारे में आज भी बात होती है.

उनके गाए गीतों को सुनना हर बार नएपन का एहसास कराता है. कुमार गंधर्व का गाना सुनकर वे लोग भी मंत्रमुग्ध हो जाते हैं, जिन्हें शास्त्रीय संगीत की समझ नहीं है.

पंडित कुमार गंधर्व का जन्म 8 अप्रैल 1924 को कर्नाटक के बेलगाम के पास सुलेभावी गांव में हुआ था. उनका मूल नाम शिवपुत्र सिद्धारमैया कोमकली था. वे चार भाई-बहनों में तीसरे नंबर की संतान थे.

घर में थोड़ा बहुत संगीत का माहौल था क्योंकि पिता सिद्धारमैया की दिलचस्पी गाने में थी.

लेकिन एक दिन अचानक सात साल की उम्र में नन्हें शिवपुत्र ने गाना शुरू कर दिया और उन्होंने ऐसा गाना शुरू किया कि हर कोई हैरान रह गया.

बच्चे की प्रतिभा को भांपते हुए पिता उन्हें अपने गुरु के पास ले गए. उनके स्वामीजी ने कहा, ‘ओह, यह तो सचमुच गंधर्व है.’ तभी से उन्हें कुमार गंधर्व की उपाधि मिल गई और वे इसी नाम से जाने जाने लगे.

इसके बाद ही कुमार गंधर्व ने अपने पिता के साथ जलसों में गाना शुरू कर दिया. महज़ सात-आठ साल की उम्र से. उनके गाने के शो जल्दी ही लोकप्रिय होने लगे. हर किसी को अचरज होता था कि यह लड़का बिना कुछ सीखे इतना मधुर कैसे गा रहा है.

टीबी की बीमारी उस समय लाइलाज थी. इसके चलते डॉक्टरों ने कुमार गंधर्व को ऐसी जगह जाकर रहने की सलाह दी जहां वातावरण शुष्क हो. इसलिए उन्होंने देवास को चुना.

भानुमति की बहन त्रिवेणी कंस देवास में रहती थीं. कुमारजी को पुत्र के समान प्रेम करने वाला रामुभैया दाते का परिवार भी देवास में रहता था. इसलिए कुमार गंधर्व ने रहने के लिए देवास को चुना.

कुमार गंधर्व पर लिखी किताब ‘कालजयी’ की लेखिका और सह-संपादक रेखा इनामदार साने कहती हैं, ”कुमारजी की पहली पत्नी भानुमति भी एक गायिका थीं. लेकिन जब कुमारजी तपेदिक से पीड़ित हुए तो भानुमती ने कुमारजी की देखभाल की. कहा जा सकता है कि उनकी वजह से कुमार जी बच गए. इस दौरान भानुमती ने स्वयं काम करके परिवार को आर्थिक सहायता भी प्रदान की.”

”भानुमती से कुमारजी को दो पुत्र हुए, मुकुल शिवपुत्र और यशोवर्धन. यशोवर्धन के जन्म के बाद 1961 में भानुमति का निधन हो गया. फिर कुमारजी ने 1962 में वसुन्धरा ताई से शादी कर ली. वसुन्धरा से उनकी एक बेटी कलापिनि थी. 1962 से 1992 तक यानि कुमारजी के जाने तक उन्हें वसुन्धरा ताई का साथ मिला. वे कुमार जी के साथ स्टेज पर भी दिखाई देती थीं.”

कुमार गंधर्व के पोते और मुकुल शिवपुत्र के बेटे भुवनेश कोमकली कहते हैं, “वसुंधरा ताई ने न केवल कुमारजी के जीवन और परिवार की देखभाल की, बल्कि उनकी संगीत परंपरा को मुझे, कलापिनि ताई और अन्य छात्रों तक पहुंचाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.”

जब कुमार गंधर्व देवास आए, तो उन्हें लगभग पांच साल तक बीमारी के चलते गाने की इजाज़त नहीं दी गई. वह समय कितना कठिन रहा होगा?

इसका वर्णन भुवनेश ने सटीक शब्दों में किया है. वह कहते हैं, ”हाल ही में हमें कोविड महामारी का सामना करना पड़ा. इस बीमारी के कारण कई लोगों की ज़िंदगी में 15-15 दिन का आइसोलेशन, कुछ महीनों का लॉकडाउन जैसी नौबत आई. यह कितना कठिन था?”

”फिर मेरे मन में सवाल आता है कि कुमार जी पांच साल तक एकांतवास में थे. उस दौरान उन्होंने वो पांच साल कैसे बिताए होंगे? तब संचार के माध्यम बहुत उन्नत नहीं थे. इस माहौल में भी, मुझे लगता है कि संगीत के बारे में, अपने जीवन के बारे में सकारात्मक सोचना बहुत महत्वपूर्ण है.”

उनका गाना बंद हो गया, लेकिन सुनना बंद नहीं हुआ था.

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8 अप्रैल को उत्तरी अमेरिका महाद्वीप बनेगा पूर्ण सूर्य ग्रहण का साक्षी

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डिजिटल भारत I वॉशिंगटन: 8 अप्रैल को उत्तरी अमेरिका महाद्वीप पूर्ण सूर्य ग्रहण का साक्षी बनने वाला है। ग्रहण के दौरान अमेरिका, उत्तरी मेक्सिको और कनाडा के कई इलाकों में कुछ मिनटों के लिए अंधेरा भी छा जाएगा। इस अद्वितीय खगोलीय घटना को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग अमेरिका का रुख कर रहे हैं। अमेरिका में भी सूर्य ग्रहण के रास्तों पर इस नजारे को देखने के लिए खास प्रबंध किए गए हैं। नियाग्रा फॉल प्रशासन ने तो सूर्य ग्रहण देखने आए लोगों को सुविधा देने के लिए आपातकाल का ऐलान कर दिया है। ऐसे में जानें कि पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान वो कौन सी छह अजीब घटनाएं होने वाली हैं, जिन पर सभी लोगों की नजर होगी।

1- बेलीज़ बीड्स: इसे डायमंड रिंग इफेक्ट के नाम से भी जाना जाता है। यह घटना तब होती है,जब सूर्य की रोशनी संद्रमा के किनारे पर किसी हीरे की अंगूठी की तरह नजर आती है। सही उपकरण से देखने पर यह नजारा अद्भुत लगता है। इस दौरान सूर्य का सिर्फ बाहरी सिरा ही गोल छल्ले के आकार में नजर आता है।
चंद्रमा, सूर्य की तुलना में पृथ्वी से 400 गुना अधिक निकट है, लेकिन चंद्रमा आकार में सूर्य से 400 गुना छोटा भी है. इसके चलते ही जब चंद्रमा एक सीधी रेखा के बिंदू के तौर पर सूर्य और पृथ्वी के बीच आता है, तो यह सूर्य को ढक लेता है और हमें ग्रहण दिखाई देता है.

कई बार ये सूर्य ग्रहण दिखाई देता है और कई बार नहीं भी दिखता है. हालांकि, इस बार का सूर्य ग्रहण महत्वपूर्ण है क्योंकि लाखों लोग इस घटना को देख सकेंगे. एक अनुमान के मुताबिक इस ग्रहण को 31 लाख लोग देख सकेंगे.

अमेरिका के उत्तरी कैरोलिना में एनसी स्टेट यूनिवर्सिटी ग्रहण के दौरान पता लगाएगी कि इसका वन्य जीवों पर क्या असर होगा. इस प्रयोग में टेक्सास राज्य चिड़ियाघर में 20 जानवरों के व्यवहार का अध्ययन किया जाएगा.

नासा का एक्लिप्स साउंडस्केप प्रोजेक्ट भी जानवरों के व्यवहार का अध्ययन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है.
जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच एक पूर्ण संरेखण बनाते हुए गुजरता है तो उसे पूर्ण सूर्य ग्रहण कहते है. इस दौरान चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह से ढक लेता है. जिससे सूर्य की किरणें पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाती हैं. ऐसा कुछ समय के लिए ही होता है. ग्रहण के दिन पृथ्वी और चंद्रमा की सूर्य से औसत दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर होगी. यह पिछले 50 सालों का सबसे लंबा सूर्य ग्रहण होगा. पूर्ण सूर्य ग्रहण का ऐसा नजारा 50 साल पहले देखने को मिला था. अब ऐसा दुर्लभ संयोग इस साल दोबारा देख सकते हैं. 8 अप्रैल को लगने वाला सूर्य ग्रहण साल का सबसे लंबा सूर्य ग्रहण होने की उम्मीद जताई जा रही है. यह पूर्ण सूर्य ग्रहण करीब 7.5 मिनट तक चलेगा. यह दोपहर 2:14 से शुरू होकर 2:22 तक चलेगा. पिछली बार साल 2017 में सूर्य ग्रहण लगा था. लेकिन साल 2017 का सूर्य ग्रहण इस बार के सूर्य ग्रहण के मुकाबले काफी अलग है.

पूर्ण सूर्य ग्रहण कहां दिखाई देगा

2024 का यह पहला सूर्य ग्रहण अमेरिका में दिखाई देगा. नासा के मुताबिक, यह शानदार खगोलीय घटना पूरे उत्तरी अमेरिकी महाद्वीप में दिखाई देगी. ये सबसे पहले मैक्सिको के प्रशांत तट पर सुबह 11.07 पर दिखेगा. अमेरिका,कनाडा और मैक्सिको में सूरज को काला होते हुए देख सकेंगे. घनी आबादी वाला क्षेत्र होने के कारण लाखों लोग इस ग्रहण को देख सकते हैं. यह सूर्य ग्रहण कनाडा, मैक्सिको, उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों में और संयुक्त राज्य अमेरिका में दिखाई देगा.

2150 तक नहीं देखा जा सकेगा ऐसा ग्रहण
एक्सपर्ट्स के मुताबिक प्रशांत महासागर के ऊपर 2150 तक ऐसा दोबारा नहीं देखा जा सकेगा इस पूर्ण सूर्य ग्रहण को मैक्सिको, अमेरिका और कनाडा के कुछ हिस्सों में रहने वाले लोग अनुभव कर सकेंगे. मोंटाना, नॉर्थ डकोटा और साउथ डकोटा में इसे नग्न आंखों से साफ देखा जा सकेगा. हालांकि, ग्रहण को देखने के लिए एक्सपर्ट कुछ थोड़े समय को छोड़कर विशेष चश्मे के उपयोग की सलाह देते हैं.

परियोजना में ग्रहण के कारण पूर्ण अंधेरे के दौरान जानवरों की आवाज़ और जानवरों की प्रतिक्रियाओं को रिकॉर्ड करने के लिए माइक्रोफ़ोन जैसे छोटे उपकरण लगाए गए हैं.

वहीं अमेरिका के वर्जीनिया में नासा के वॉलॉप्स बेस से तीन साउंडिंग रॉकेट, एक्लिप्स बेल्ट से दूर लॉन्च किए जाएंगे.

एम्ब्री रिडल एयरोनॉटिकल यूनिवर्सिटी के आरोह बड़जात्या इस प्रयोग का नेतृत्व कर रहे हैं. रॉकेट सूर्य ग्रहण के दौरान वातावरण में होने वाले बदलावों को रिकॉर्ड करेगा.

तीनों साउंडिंग रॉकेट धरती से 420 किलोमीटर की ऊंचाई तक जाएंगे और फिर धरती पर क्रैश हो जाएंगे. पहला रॉकेट ग्रहण से 45 मिनट पहले, दूसरा रॉकेट ग्रहण के दौरान और तीसरा रॉकेट ग्रहण के 45 मिनट बाद लॉन्च किया जाएगा.

पृथ्वी की सतह से 80 कि.मी. ऊपर से शुरू होने वाली वायुमंडल की परत को आयनमंडल कहा जाता है. इस परत में आयन और इलेक्ट्रॉन होते हैं.

यह अंतरिक्ष और वायुमंडल के बीच पृथ्वी की एक प्रकार की सुरक्षात्मक परत है. यह एक परत है जो रेडियो तरंगों को परावर्तित करती है. ध्वनि रॉकेट की मदद से ग्रहण के दौरान इस परत में होने वाले बदलावों का एक महत्वपूर्ण अध्ययन किया जाएगा.

सामान्य तौर पर, आयनोस्फेरिक उतार-चढ़ाव उपग्रह संचार को प्रभावित करते हैं. सूर्य ग्रहण इस परिवर्तन का विस्तार से अध्ययन करने का एक दुर्लभ अवसर प्रदान करता है. क्योंकि इस अध्ययन से पता चलेगा कि कौन सी चीज़ें हमारे संचार तंत्र को प्रभावित कर सकती हैं.

नासा का हाई एल्टीट्यूड रिसर्च प्लेन 50,000 फीट की ऊंचाई से ग्रहण की तस्वीर लेगा. जैसे-जैसे ग्रहण मेक्सिको से आगे बढ़ेगा, वैसे-वैसे विमान भी आगे बढ़ेगा और इन विमानों में कई अन्य उपकरण भी लगाए गए हैं.

इसके अलावा, ग्रहण के दौरान वायुमंडलीय और जलवायु परिवर्तनों को रिकॉर्ड करने के लिए एक एक्लिप्स बैलून प्रोजेक्ट भी लागू किया जाएगा।

करीब 600 गुब्बारे वायुमंडल में छोड़े जाएंगे. पृथ्वी की सतह से 35 किलोमीटर ऊपर तक उड़ने में सक्षम इन गुब्बारों से विभिन्न उपकरण रिकॉर्ड बनाएंगे.

इसके अलावा, पार्कर सोलर प्रोब, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और नासा के सोलर ऑर्बिटर और अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर सवार अंतरिक्ष यात्री भी इस ग्रहण के प्रभाव का अध्ययन करेंगे.

कनाडा में नियाग्रा फ़ॉल्स के पास सूर्य ग्रहण देखने के लिए दस लाख से ज़्यादा लोगों के जमा होने की उम्मीद की जा रही है.
2150 तक नहीं देखा जा सकेगा ऐसा ग्रहण
एक्सपर्ट्स के मुताबिक प्रशांत महासागर के ऊपर 2150 तक ऐसा दोबारा नहीं देखा जा सकेगा . इस पूर्ण सूर्य ग्रहण को मैक्सिको, अमेरिका और कनाडा के कुछ हिस्सों में रहने वाले लोग अनुभव कर सकेंगे. मोंटाना, नॉर्थ डकोटा और साउथ डकोटा में इसे नग्न आंखों से साफ देखा जा सकेगा. हालांकि, ग्रहण को देखने के लिए एक्सपर्ट कुछ थोड़े समय को छोड़कर विशेष चश्मे के उपयोग की सलाह देते हैं.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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कांग्रेस पार्टी ने जारी किया अपना घोषणापत्र जाने क्या है? वादे

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डिजिटल भारत l लोकसभा चुनाव 2024 के लिए कांग्रेस पार्टी ने अपना घोषणापत्र (Congress Manifesto 2024) जारी कर दिया है. कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे, सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने इसे ‘न्याय पत्र’ नाम दिया है. इस मेनिफेस्टो में कांग्रेस ने जनता को 25 गारंटियां दी हैं, जिसमें सबसे अहम गरीब परिवार की महिलाओं को सालाना 1 लाख रुपए की मदद देने का वादा है.

इतना ही नहीं, अपने मेनिफेस्टो में कांग्रेस पार्टी ने वादा किया है कि देश में उसकी सरकार बनने पर वह जाति आधारित जनगणना कराएगी और आरक्षण की अधिकतम सीमा को बढ़ा कर 50 प्रतिशत से ज्यादा करेगी. कांग्रेस ने यह भी कहा है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को मिलने वाले 10 प्रतिशत आरक्षण को वह सभी वर्गों के गरीबों के लिए बिना भेदभाव के लागू करेगी. घोषणा पत्र में कांग्रेस ने यह भी कहा है कि सरकार में आने के बाद वह नई शिक्षा नीति को लेकर राज्य सरकारों के साथ परामर्श करेगी और इसमें संशोधन करें करेगी.
कांग्रेस ने जिन मुद्दों को अपने घोषणापत्र में उठाया है, उनकी अहमियत समझाते हुए राजनीतिक विश्लेषक और अंग्रेज़ी अख़बार ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ के राजनीतिक संपादक विनोद शर्मा कहते हैं, ”लोकतंत्र का मतलब महज़ वोट डालना नहीं है, और इसके बहुत सारे हिस्से हैं जिन्हें संविधान निर्माताओं ने मौलिक अधिकारों की श्रेणी में रखा है.”

केरल और तमिलनाडु का उदाहरण देते हुए विनोद शर्मा कहते हैं, ”दोनों प्रदेशों में राज्यपाल राज्य सरकार के बीच लगातार टकराव के हालात बने रहे हैं और दूसरी सरकारें भी जीएसटी के पैसे समय पर न मिलने जैसी शिकायतें करती हैं.”

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को ही उत्तर प्रदेश में मदरसों पर आए हाई कोर्ट के एक ऑर्डर पर रोक लगा दी है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मदरसा क़ानून को ग़लत बताया था. लेकिन सर्वोच्च अदालत ने हाईकोर्ट के इस फ़ैसले पर स्टे लगा दिया है.
विनोद शर्मा कहते हैं कि ‘वर्तमान केंद्र और कई राज्यों की सरकारें कभी नागरिकता क़ानून संशोधन, और ‘लव जिहाद’ जैसे मुद्दे लाकर लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता पर बराबर हमले करती रहती हैं. साथ ही वोटरों को ये जानने का अधिकार है कि उसका मत सही व्यक्ति को गया है या नहीं.’

वहीं केरल में कांग्रेस पार्टी की नेता शमा मोहम्मद का कहना था कि नरेंद्र मोदी सरकार नागरिकता क़ानून लाती है लेकिन उसमें वो श्रीलंका के तमिल हिंदुओं, म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों और अन्य को क्यों भूल जाती है? आख़िर इन लोगों को भी तो भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है.

कांग्रेस के घोषणापत्र में जिसे ‘न्याय पत्र’ बताया गया है, उसमें ईवीएम के साथ वीवीपैट के इस्तेमाल की बात कही गई है ताकि वोटरों के वोटों का मिलान किया जा सके और वोटर ये जान सकें कि उनका वोट किसको गया है.
कांग्रेस ने युवाओं के रोज़गार के संबंध में ट्रेनिंग के लिए लाख रुपये प्रति युवा देने का वादा किया है. उसने यह भी कहा है कि अग्निपथ योजना को ख़त्म कर दिया जाएगा और उसकी जगह बहाली की पुरानी व्यवस्था क़ायम की जाएगी.

नरेंद्र मोदी सरकार की फौज में बहाली की अग्निपथ स्कीम बेहद विवादास्पद रही है. इसको लेकर फौज के पूर्व अफ़सर भी हैरत जताते रहे हैं.युवाओं में भी फौज में चंद सालों की भर्ती स्कीम को लेकर बेहद नाराज़गी दिखी थी हालांकि धीरे-धीरे ये शांत पड़ गई.

कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता आलोक शर्मा का कहना है कि फौज में भर्ती को दूसरे क्षेत्रों में नौकरियों की तरह नहीं देखा जा सकता है, क्योंकि ये देश की रक्षा का सवाल है.

आलोक शर्मा से जब ये पूछा गया कि युवाओं को एक लाख की राशि देने की उनकी योजना क्या नरेंद्र मोदी सरकार की योजना की नकल नहीं है जो इस तरह की राशि युवाओं को रोज़गार के लिए देती है. इस सवाल पर उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार की योजना क़र्ज है जिसे चुकाना पड़ता है जबकि हम युवाओं के प्रशिक्षण के लिए ये राशि देंगे, और उन्हें ये पैसे वापस नहीं करने होंगे.

ग़रीब महिलाओं को एक लाख रुपये प्रति परिवार देने का वादा किया गया है.

कृषि के क्षेत्र में कांग्रेस के बड़े वादों में से एक है किसानों की क़र्ज़ माफ़ी का वादा और न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर गारंटी देने वाला क़ानून.

अभी भी पंजाब के किसानों के कई समूह पंजाब-हरियाणा बॉर्डर पर एमएसपी पर क़ानून की मांग को लेकर धरने पर बैठे हैं. 2020 में भी दिल्ली के पांच बॉर्डरों पर किसानों ने चौदह माह तक धरना दिया था.

कांग्रेस की छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने भी किसानों को देश में सबसे अधिक धान का मूल्य दिया था, साथ ही क़र्ज़ माफ़ी भी की थी. लेकिन पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में इन वादों के बावजूद कांग्रेस पार्टी को बीजेपी से हार का सामना करना पड़ा था.

न्यूनतम मज़दूरी को कम से कम 400 रुपये रोज़ाना करने का वायदा भी कांग्रेस के घोषणा पत्र में है.

‘न्याय के दस्तावेज’ के रूप में याद रखेगी जनता
कांग्रेस के घोषणापत्र पर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, ‘हमारा घोषणा पत्र देश के राजनीतिक इतिहास में ‘न्याय के दस्तावेज’ के रूप में याद किया जाएगा. राहुल गांधी के नेतृत्व में चलाई गई भारत जोड़ो न्याय यात्रा पांच स्तंभों पर केंद्रित थी. यात्रा के दौरान युवा न्याय, किसान न्याय, नारी न्याय, श्रमिक न्याय और हिसदारी न्याय की घोषणा की गई. इन पांच स्तंभों में से 25 गारंटियां निकलती हैं और हर 25 गारंटियों में किसी न किसी को लाभ मिलेगा.’

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कोविड से भी कई गुना ज्यादा खतरनाक है – बर्ड फ्लू

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डिजिटल भारत l कोरोना महामारी के बाद दुनिया पर एक और महामारी का खतरा मंडरा रहा है। यह बीमारी कोरोना से 100 गुना अधिक घातक साबित हो सकती है। ग्लोबल एक्सपर्ट्स बर्ड फ्लू महामारी की आशंका जता रहे हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह कोविड-19 संकट से कहीं अधिक विनाशकारी हो सकती है। खास बात है कि इस महामारी में H5N1 स्ट्रेन विशेष रूप से गंभीर खतरा पैदा कर सकता है। हालिया ब्रीफिंग के अनुसार, वायरस रिसर्चर्स ने संकेत दिया है कि H5N1 एक वैश्विक महामारी को बढ़ाने के लिए ‘खतरनाक रूप से करीब’ पहुंच रहा है।

पिछले साल 23 देशों से बर्ड फ्लू के 882 मामलों के साथ मानव मामले भी सामने आए हैं, जिससे मृत्यु दर 52 फीसदी हो गई है। हालांकि, अभी तक कोविड-19 की उत्पत्ति अनिश्चित बनी हुई है। इसे बर्ड फ्लू के जैसा बताया जा रहा है, क्योंकि दोनों की उत्पत्ति जूनोटिक स्पिलओवर से हुई है, जहां वायरस पशुओं से मनुष्य में फैलता है। हालांकि, बर्ड फ्लू का मानव से मानव संचरण नहीं हुआ है, लेकिन फिर भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बर्ड फ्लू को खतरा बताया है।

क्यों होता है H5N1 का संक्रमण
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, प्रभावित क्षेत्र में H5N1 का संक्रमण तेजी से बढ़ने का खतरा हो सकता है। घरेलू मुर्गीपालन वाले स्थानों पर ये आसानी से फैल सकता है। यह रोग संक्रमित पक्षी के मल, नाक के स्राव या मुंह या आंखों से निकलने वाले स्राव के संपर्क से मनुष्यों में फैलता है। इसके अलावा अधपके मांस खाने से भी बीमारी का खतरा हो सकता है, पर इसके मामले कम देखे जाते रहे हैं।
डेथ रेट कितनी है?
H5N1 मृत्यु दर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2003 से एकत्र किए गए आंकड़ों के आधार पर H5N1 के लिए मृत्यु दर 52 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया है। इसके विपरीत, व्यापक H5N1 प्रकोप की संभावित गंभीरता पर जोर देते हुए, कोविड -19 की मृत्यु दर काफी कम है। 2020 के बाद से हाल के मामलों से पता चलता है कि H5N1 के नए स्ट्रेन से संक्रमित लगभग 30 प्रतिशत व्यक्तियों की मृत्यु हो गई है। जैसे-जैसे स्थिति सामने आ रही है, वाइट हाउस और हेल्थ एक्सपर्ट सतर्कता और तैयारी बढ़ाने का आग्रह कर रहे हैं। वाइट हाउस के प्रेस सचिव ने जनता को आश्वासन दिया कि अमेरिकियों का स्वास्थ्य और सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है। बर्ड फ्लू के प्रकोप की निगरानी और समाधान के लिए उपाय किए जा रहे हैं।

तात्कालिक हेल्थ रिस्क के अलावा, H5N1 के प्रसार का व्यापक आर्थिक प्रभाव है। विशेषकर डेयरी और पोल्ट्री उद्योगों पर। संक्रमित मवेशियों में लक्षण दिखने और संक्रमित पक्षियों को मारने की आवश्यकता के साथ, दूध और अंडों की आपूर्ति और मूल्य निर्धारण पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
एक्सपर्ट्स ने दी चेतवानी

पिट्सबर्ग में एक प्रमुख बर्ड फ्लू रिसर्चर डॉ. सुरेश कुचिपुड़ी ने चेतावनी दी कि H5N1 में महामारी पैदा करने की क्षमता है, क्योंकि यह मनुष्यों सहित कई स्तनधारियों को संक्रमित करने की क्षमता रखता है. कनाडा स्थित फार्मास्युटिकल कंपनी बायोनियाग्रा के फाउंडर जॉन फुल्टन ने भी इस वायरस को लेकर चिंता जताई. उन्होंने H5N1 पर कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि यह कोविड से 100 गुना अधिक ख़राब है या यह तब हो सकता है, जब यह म्यूटेट हो और अपनी उच्च मृत्यु दर को बनाए रखे.

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जाने क्यों मनाया जाता अप्रैल का पहला दिन अप्रैल फूल के नाम पर

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डिजिटल भारत l अप्रैल फूल दिवस ओडेसा में व्यापक रूप से मनाया जाता है और इसका विशेष स्थानीय नाम ह्यूमोरिना है । यह अवकाश 1973 में शुरू हुआ था। [25] एक अप्रैल फूल शरारत का खुलासा प्राप्तकर्ता को कहकर किया जाता है, जिसका अनुवाद “पहली अप्रैल, मुझे किसी पर भरोसा नहीं है. उत्सव में शहर के केंद्र में एक बड़ी परेड, मुफ्त संगीत कार्यक्रम, सड़क मेले और प्रदर्शन शामिल हैं। महोत्सव में भाग लेने वाले विभिन्न प्रकार की पोशाकें पहनते हैं और शहर में घूमते हुए राहगीरों को बेवकूफ बनाते हैं और उनके साथ मजाक करते हैं। अप्रैल फूल दिवस पर परंपराओं में से एक शहर के मुख्य स्मारक को अजीब कपड़े पहनाना है। ह्यूमोरिना का अपना लोगो भी है – लाइफबेल्ट में एक हंसमुख नाविक – जिसके लेखक कलाकार अरकडी त्सिकुन थे।उत्सव के दौरान, लोगो वाले विशेष स्मृति चिन्ह मुद्रित और बेचे जाते हैं। 2010 से, अप्रैल फूल दिवस समारोह में एक अंतर्राष्ट्रीय जोकर महोत्सव शामिल है, और दोनों को एक के रूप में मनाया जाता है। 2019 में, यह महोत्सव ओडेसा फिल्म स्टूडियो की 100वीं वर्षगांठ को समर्पित था और सभी कार्यक्रम सिनेमा पर जोर देने के साथ आयोजित किए गए थे

दुनिया भर में अप्रैल फूल दिवस
फ्रांस
हम पहले ही अप्रैल फूल्स डे की संभावित उत्पत्ति का पता लगा चुके हैं, जो फ्रांस में शुरू हो सकती थी। फ़्रांसीसी आज इसे कैसे मनाते हैं?

फ्रांस में अप्रैल फूल डे को अप्रैल फिश के नाम से जाना जाता है ।

लोग अपने दोस्तों और परिवार के साथ हानिरहित शरारत करने के लिए कागज़ की मछली का उपयोग करते हैं। वे यथासंभव अधिक से अधिक लोगों की पीठ पर कागज़ की मछली चिपका देते हैं। उसके बाद, वे “पॉइसन डी’एविल!” वाक्यांश चिल्लाते हैं। जिसका अनुवाद “अप्रैल फिश” होता है।

स्कॉटलैंड
हम जानते हैं कि यूनाइटेड किंगडम को वास्तव में महाकाव्य अप्रैल फूल्स डे प्रैंक (जैसे 1957 में स्पेगेटी हार्वेस्ट) बनाने में आनंद आता है, लेकिन स्कॉटलैंड की अपनी ऐतिहासिक परंपराएं भी हैं।

स्कॉटलैंड में अप्रैल फूल दिवस दो दिनों तक मनाया जाता था। उनमें से एक को गौक दिवस के नाम से जाना जाता था । स्कॉट्स में “गौक” के दो अर्थ हैं: यह कोयल या मूर्ख को संदर्भित कर सकता है।

अप्रैल फूल दिवस पर किसी को मूर्ख बनाना “हंटिंग द गॉक” के रूप में जाना जाता था। एक पारंपरिक मज़ाक में किसी को एक संदेश के साथ एक सीलबंद पत्र देने के लिए कहा जाता है। इस संदेश ने प्राप्तकर्ता को संदेशवाहक को एक और मूर्खतापूर्ण काम पर भेजने के लिए प्रोत्साहित किया, फिर एक और… जब तक कि किसी को उन पर दया न आ जाए।

आजकल? लोग अपने अनजाने पीड़ितों को “टार्टन पेंट” या “लॉन्ग स्टैंड” जैसी चीज़ें लाने के लिए किसी काम पर भेज देते हैं। हम आपको इसका स्वयं पता लगाने देंगे।

पुर्तगाल
पुर्तगाल में, लोग लेंट से दो दिन पहले अप्रैल फूल दिवस का एक अनोखा संस्करण मनाते हैं ।

दुर्भाग्यवश उन मूर्खों के लिए, जिन पर पहले से संदेह नहीं होता, अप्रैल फूल्स डे का पुर्तगाली संस्करण गन्दा हो जाता है। शरारत सरल है:

आटे की एक बोरी प्राप्त करें.
अपने दोस्तों पर उक्त आटा तब फेंकें जब उन्हें इसकी बिल्कुल भी उम्मीद न हो।
सरल!

ब्राज़िल
19वीं सदी की शुरुआत में, एक व्यंग्यात्मक समाचार पत्र ने ब्राज़ील के सम्राट डॉन पेड्रो की मृत्यु की घोषणा करते हुए एक चिंताजनक शीर्षक प्रकाशित किया। यह अप्रैल फ़ूल दिवस का एक यादगार मज़ाक था जिसने ब्राज़ील में इस परंपरा को लोकप्रिय बना दिया!

इस दिन को दीया दास मेंतिरास (झूठ का दिन) या दीया डॉस बोबोस (मूर्खों का दिन) के नाम से जाना जाता है

कई लोगों का मानना है कि 14वीं सदी में इंग्लिश कवि जियोफी चौसर ने एक कहानी कही थी. इसमें एक लोमड़ी मुर्गे के साथ शरारत करती है. पहली अप्रैल को शरारत के मामले में इसे पहला संदर्भ माना जाता है.

हालांकि कवि ने सीधे पहली अप्रैल का ज़िक्र नहीं किया है. कविता में 32 दिनों की बात है. मार्च महीने की शुरुआत से पहली अप्रैल तक का ज़िक्र है.

हालांकि जो इस पर भरोसा नहीं करते हैं उनका कहना है कि कवि ने लोगों के मज़े लेने के लिए भ्रम में डालने वाले शब्दों का इस्तेमाल किया था.

दूसरी थ्योरी
कई लोगों का मानना है कि इस परंपरा की शुरुआत कैलेंडर में वाकयों के कारण हुई.

इसमें रोमन काल के त्योहारों को याद किया जाता है. यह नए साल के उत्सव के साथ ही शुरू हो जाता था.

मार्च में वसंत होता है इसलिए लोगों को लगता है कि शरारत करने की परंपरा इसी वक़्त शुरू हुई.

वसंत के आगमन के बाद से नए साल की तैयारी शुरू हो जाती थी.

कैलेंडर के तर्क को आगे बढ़ाते हुए एक और बात कही जाती है कि नए साल का जश्न जनवरी की शुरुआत से मार्च के आख़िर तक चलता था. जो मार्च तक नया साल मनाते थे उन्हें बेवकूफ समझा जाता था और लोग उनका मज़ाक बनाते थे.

एंड्रिया का कहना है, ”फ्रांस और हॉलैंड में पहली अप्रैल का ठोस रिकॉर्ड 1500 के दशक में मिलता है. लोगों का मानना है कि यह उत्तरी यूरोप की परंपरा थी जो ब्रिटेन तक आई. यूरोप के कुछ इलाक़ों में इसे अप्रैल फ़िश डे के रूप में मनाया जाता है.”

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