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किसान महापड़ाव का तीसरा दिन, नाक की लड़ाई में नुकसान किसका?

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कृषि कानून के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर जिस तरह किसान बैठे हुए है, उसी तरह किसानों ने करनाल के लघु सचिवालय के बाहर अपना डेरा जमा लिया है। तीसरे दिन भी किसान एसडीएम आयुष सिंह के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। हालांकि अधिकारी पर कार्रवाई की मांग अब किसानों के लिए नाक की लड़ाई बन चुकी है।दरअसल किसान नेताओं ने बुधवार प्रशासन के साथ बातचीत करने के बाद यह ऐलान किया कि, किसानों का धरना बदस्तूर जारी रहेगा। करनाल के सेक्टर 12 लघु सचिवालय के बाहर जिस तरह किसानों ने अपना पक्का मोर्चा करने की तैयारी कर ली है। उससे यह साफ हो चुका है कि किसान अपनी मांगों को लेकर अडिग है। आशंका है कि स्थानीय लोगों को कहीं आगामी दिनों में उसी तरह परेशानियां न उठानी पड़े, जिस तरह दिल्ली की सीमाओं के आस-पास निवासी लोग उठा रहे हैं।दरअसल सेक्टर-12 रोड पर अब किसान पक्का मोर्चा बना चुके हैं, इससे अब सरकारी काम के अलावा गैर सरकारी काम भी प्रभावित होगा। जानकारी के अनुसार, सचिवालय के अंदर करीब 40 विभाग है, वहीं सचिवालय के स्थानीय क्षेत्र में करीब 10 बीमा कंपनियां,15 से अधिक बैंक और करीब 40 निजी कार्यलय मौजूद हैं। वहीं हर दिन हजारों की संख्या में लोग यहां काम करने आते हैं। हालांकि किसान यह साफ कर चुके हैं, पक्का मोर्चा को इस तरह संचालित किया जाएगा जिससे आम लोगों को काम करने में कोई दिक्कत न आए, वहीं आवाजाही में किसी तरह की कोई समस्या खड़ी न हो।किसान बीते दो दिनों से धरना स्थल के आस पास ही सड़क पर दरी बिछा कर रात गुजार रहें हैं। बुजुर्ग किसान हुक्का पीने के साथ साथ ताश खेलते दिखे। दरअसल 28 अगस्त को करनाल में मुख्यमंत्री एक बैठक होने के कारण किसान अपना विरोध दर्ज कराने के आगे बढ़े तो पुलिस के साथ झड़प हुई। झड़प में कई किसान घायल हुए, वहीं एक किसान की मृत्यु भी हो गई।इसके अलावा ड्यूटी मजिस्ट्रेट आयुष सिन्हा की किसानों के सिर फोड़ने की वीडियो वायरल होने के बाद किसानों में आक्रोश दिखा, मामले ने इतना तूल पकड़ा की किसानों ने महापंचायत की और लघु सचिवालय घेराव कर दिया।

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फारूक अब्दुल्ला ने कहा- जम्मू-कश्मीर में जब भी चुनाव होंगे, नेशनल कॉन्फ्रेंस मैदान में उतरेगी

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नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने बुधवार को कहा कि उनकी पार्टी जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा और विशेष दर्जा बहाल करने के लिए संघर्ष की खातिर प्रतिबद्ध है तथा केंद्र शासित प्रदेश में जब भी चुनाव होंगे, उनकी पार्टी मैदान में उतरेगी। अब्दुल्ला श्रीनगर में पार्टी के संस्थापक और अपने पिता शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की 39वीं पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के बाद संवाददाताओं से बातचीत कर रहे थे। केंद्र ने 5 अगस्त, 2019 को संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों निरस्त कर दिया था और जम्मू-कश्मीर को 2 केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया था।बता दें कि अनुच्छेद 370 के तहत तत्कालीन राज्य को विशेष दर्जा प्राप्त था। अब्दुल्ला ने कहा कि उनकी पार्टी जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा और विशेष दर्जा बहाल करने के लिए संघर्ष की खातिर प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा, ‘हमें नहीं मालूम कि चुनाव कब होंगे, लेकिन इस संबंध में हमारी राय स्पष्ट है। जम्मू-कश्मीर में जब कभी चुनाव होंगे, हम चुनाव लड़ेंगे।’ तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर नियंत्रण किए जाने के संबंध में जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि वे (तालिबान) मानवाधिकारों का सम्मान करेंगे और सभी देशों के साथ मित्रतापूर्ण संबंधों पर जोर देंगे।अब्दुल्ला ने कहा, ‘तालिबान ने नियंत्रण कर लिया है, और अब उन्हें देश की देखभाल करनी है। मुझे उम्मीद है कि वे सभी के साथ न्याय करेंगे उन्हें सभी देशों के साथ मित्रतापूर्ण संबंधों पर जोर देना चाहिए।’ इस बीच अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार के गठन पर फारूक अब्दुल्ला ने कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि तालिबान इस्लामिक उसूलों के आधार पर अच्छी तरह से सरकार चलाएगा। उन्होंने कहा, ‘तालिबान को मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए और इस्लामी सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। इसके साथ ही बाकी दुनिया के साथ अच्छे संबंध बनाने चाहिए।’

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उत्तराखंड के निर्दलीय विधायक प्रीतम सिंह पवार ने धामा बीजेपी का दामन

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उत्तराखंड क्रांति दल के नेता और निर्दलीय विधायक प्रीतम सिंह पवार ने बुधवार को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का दामन थाम लिया। वह उत्तराखंड की यमुनोत्री विधानसभा क्षेत्र से 2 बार विधायक रह चुके हैं। वर्तमान में वह विधानसभा में धनोल्टी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। बीजेपी मुख्यालय में आयोजित एक प्रेस वार्ता में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी और उत्तराखंड बीजेपी के अध्यक्ष मदन कौशिक की मौजूदगी में पवार को पार्टी की सदस्यता दिलाई। ईरानी ने पवार का बीजेपी में स्वागत करते हुए कहा कि राष्ट्रहित में उनका भाजपा परिवार में शामिल होने का निर्णय सराहनीय है।वहीं, उत्तराखंड बीजेपी के चीफ कौशिक ने कहा कि पवार ने उत्तराखंड क्रांति दल के नेता के रूप में उत्तराखंड राज्य के लिए लड़ाई में बढ़-चढ़कर योगदान दिया। उन्होंने कहा कि पवार के बीजेपी में शामिल होने राज्य में पार्टी को मजबूती मिलेगी। वहीं, प्रीतम सिंह पवार ने कहा कि वह बीजेपी परिवार में शामिल होकर आज गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बेहद प्रभावित हैं क्योंकि वह उततराखंड के विकास के लिए लगातार प्रयासरत हैं। पवार ने कहा कि बहुत सोच समझकर उन्होंने बीजेपी में शामिल होने का निर्णय लिया है।

राज्यपाल ने दिया इस्तीफा

इसके बीच उत्तराखंड से बुधवार को ही एक और बड़ी खबर सामने आई है। उत्तराखंड की राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने बुधवार को पद से इस्तीफा दे दिया। राजभवन के एक अधिकारी ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि राज्यपाल ने अपना इस्तीफा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भेज दिया है। उन्होंने बताया कि राज्यपाल ने व्यक्तिगत कारणों के चलते इस्तीफा दिया है। बता दें कि बेबी रानी मौर्य ने 26 अगस्त, 2018 को उत्तराखंड के राज्यपाल पद की शपथ ली थी। उन्होंने तत्कालीन राज्यपाल केके पॉल की जगह ली थी।

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राहुल गांधी बिना किसी ज्ञान के खुद को हर चीज का एक्सपर्ट समझते हैं: शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान

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NEET परीक्षा स्थगित करने की कांग्रेस नेता राहुल गांधी की मांग और उस मांग के दौरान सरकार पर लगाए आरोपों का केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने उत्तर दिया है। धर्मेंद्र प्रधान ने कहा है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी बिना किसी ज्ञान के खुद को हर विषय का एक्सपर्ट समझते हैं। शिक्षा मंत्री ने कहा है कि राहुल गांधी की अतिमहत्वकांक्षा NEET परीक्षा के शेड्यूल का जवाब नहीं हो सकता। शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने राहुल गांधी को जवाब देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी NEET परीक्षा को पुनर्निर्धारित करने की याचिका पर विचार नहीं किया है, तो फिर राहुल गांधी किस आधार पर इस तरह के सवाल उठा रहे हैं। शिक्षा मंत्री ने तंज कसते हुए कहा, कि राहुल गांधी को इस तरह के विषयों में न पड़कर झूठ गढ़ने, आधे अधूरे सच बोलने और प्रगतिशील कामों में रुकावट डालने जैसे कामों लगे रहें।बता दें कि राहुल गांधी ने NEET को स्थगित करने की मांग करते हुए कहा था कि छात्रों को एक निष्पक्ष मौका मिलना चाहिए। उन्होंने ट्वीट किया था, “भारत सरकार को छात्रों की परेशानी नहीं दिख रही है। नीट परीक्षा को स्थगित करिये। छात्रों को निष्पक्ष मौका दीजिये।” कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा ने भी इस मुद्दे को लेकर सरकार पर निशाना साधा था और सवाल किया कि आखिर सरकार छात्रों को क्यों नहीं सुन रही है? उन्होंने कहा, ‘‘सरकार देश भर के छात्रों की वाजिब मांग के खिलाफ जा रही है। सत्ता में बैठे लोगों के लिए उन लोगों को सुनना और उनकी मदद करना मुश्किल क्यों है, जो हमारे देश का भविष्य हैं? क्या मानसिक स्वास्थ्य मायने नहीं रखता?’’ उल्लेखनीय है कि NEET (स्नातक) की परीक्षा 12 सितंबर को प्रस्तावित है।

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केरल में कोरोना वायरस के मामले फिर 30 हजार के पार, 181 लोगों की मौत

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केरल में कोरोना वायरस के मामले फिरे से एक बार 30 हजार का आंकड़ा पर कर लिया है। पिछले 24 घंटे में यहां कोविड-19 के 30,196 नये मामले सामने आए जिसके साथ ही कोरोना वायरस से संक्रमितों की कुल संख्या बढ़कर 42,83,494 हो गयी जबकि 181 और मरीजों की मौत के बाद मृतकों की तादाद 22,001 पर पहुंच गयी। राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने एक विज्ञप्ति में यह जानकारी दी। राज्य में लगातार पांच दिनों तक दैनिक नये मामलों की संख्या 30 हजार से कम रहने के बाद आज एक बार फिर वह 30 हजार को पार कर गयी। केरल में बीते 24 घंटे के दौरान 1,71,295 नमूनों की कोविड-19 जांच होने के साथ संक्रमण की दर बढ़कर 17.63 प्रतिशत हो गयी है। 

विज्ञप्ति के अनुसार राज्य में संक्रमण दर घटकर 16 फीसद के नीचे चली गयी थी जो बुधवार को बढ़कर 17.63 प्रतिशत हो गयी। राज्य में अब तक 3,28,41,859 नमूनों की कोविड-19 जांच हो चुकी है। बीते 24 घंटे के दौरान राज्य में कोविड-19 के 27,579 मरीज संक्रमण मुक्त भी हुए, जिससे राज्य में इस जानलेवा वायरस के संक्रमण को मात देने वालों की संख्या बढ़कर 40,21,456 हो गयी। राज्य में कोविड-19 के उपचाराधीन मरीज 2,39,480 हैं। 

विज्ञप्ति के मुताबिक, त्रिशूर जिले में कोविड-19 के सर्वाधिक 3,832 नये मरीज सामने आए। इसके बाद एर्णाकुलम में 3,611, कोझिकोड में 3,058, तिरुवनंतपुरम में 2,900, कोल्लम में 2,717, मलप्पुरम में 2,580, पलक्कड़ में 2,288, कोट्टयम में 2,214, अलाप्पुझा में 1,645, कन्नूर में 1,433, इदुक्की में 1,333 और पथनमथिट्टा में कोरोना वायरस संक्रमण के 1,181 नये मामले सामने आए। केरल के विभिन्न जिलों में इस समय 6,08,228 लोगों को निगरानी में रखा गया है, जिसमें से 32,817 लोग अस्पतालों में हैं। 

इससे पहले राज्य सरकार ने कोरोना मामलों के घटते मामलों को देखते हुए रात के कर्फ्यू और रविवार के लॉकडाउन जैसे प्रतिबंधों को हटाने का फैसला किया था। मुख्यमंत्री ने एक प्रेस वार्ता में कहा था कि रविवार के लॉकडाउन और रात के कर्फ्यू को वापस लेने का फैसला कोविड समीक्षा बैठक के दौरान किया गया था। ओणम त्योहार के बाद कोविड के दैनिक मामलों के 30,000 से अधिक हो जाने के बाद सरकार ने इस पर काबू के लिए सोमवार से शनिवार तक रात 10 बजे से सुबह छह बजे तक कर्फ्यू लगाया था।

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उत्तराखंड का युवा क्यों आंदोलित है? जानिए भू-कानून के बारे में

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उत्तराखंड में भू-अध्यादेश की मांग सोशल मीडिया पर तो ट्रेंड कर ही रही थी अब राजनीतिक गलियारों में इसकी फुसफुसाहट होने लगी है। कम ही नेता हैं जो इस वक्त भू-कानून की मांग पर खुलकर अपनी राय रख रहे हैं लेकिन जो चुप हैं वो ये जानते हैं कि देर सबेर उन्हें इसपर बात करनी ही पड़ेगी। उत्तराखंड के युवाओं का जो आक्रोश इस वक्त सोशल मीडिया पर उमड़ रहा है वो अगर सड़कों पर दिखा तो सरकार के लिए बड़ी मुसीबत बन सकता है। भू अध्यादेश आंदोलन को लेकर हर रोज़ हज़ारों ट्वीट किए जा रहे हैं, मुहिम रोज़ तेज़ी से बढ़ रही है इसलिए ये जानना ज़रूरी है कि आखिर भू अध्यादेश क्या है?

भू अध्यादेश आंदोलन के ज़रिए ये मांग की जा रही है कि पर्वतीय क्षेत्रों में बाहरी लोगों के द्वारा ज़मीन की बेहिसाब खरीद और बिक्री पर रोक लगे। इसके पीछे सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान लुप्त होने के साथ साथ पर्यावरण को होने वाले नुकसान गिनाए जा रहे हैं। सवाल ये है कि आखिर ये मांग क्यों उठ रही है, और अभी क्या स्थिति है। इसके लिए

पहले ये समझिए कि उत्तराखंड में बाहरी व्यक्तियों के लिए ज़मीन खरीद की व्यवस्था क्या है?

साल 2002 में नियम बना कि कोई भी बाहरी व्यक्ति उत्तराखंड में केवल 500 वर्ग मीटर ज़मीन ही खरीद सकता है, उसके बाद 2007 में इस नियम को और कठोर बनाया गया और तय किया गया कि कोई भी बाहरी व्यक्ति केवल 250 वर्ग मीटर ज़मीन ही खरीद सकता है। लेकिन भू माफियाओं के लिए सरकार ने दूसरे दरवाज़े खोल दिए। सरकार ने नियम बनाया कि उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में कोई भी बाहरी व्यक्ति उद्योग धंधे के नाम पर कितनी ही ज़मीन खरीद सकता है, उसके लिए कोई रोकटोक नहीं होगी। इतना ही नहीं अगर उद्योग के नाम पर कोई ज़मीन खरीदता है तो उसका लैंड यूज़ बदलवाने के लिए कोई प्रक्रिया नहीं होगी, इसका मतलब ये हुआ कि जैसे ही ज़मीन उद्योग के नाम पर खरीदी जाएगी उसका लैंड यूज़ खुद ब खुद बदल जाएगा। इस तरह से उत्तराखंड के पहाड़ों में बेहिसाब ज़मीन लेने का रास्ता साफ हो गया।

अब हिमाचल प्रदेश में क्या नियम है ये भी देख लीजिए

हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड का पड़ोसी राज्य है, वहां ज़मीन खरीद फरोख्त के नियम इतने सख्त हैं कि वहां बेहिसाब कृषि ज़मीन खरीदना लगभग नामुमकिन है। हिमाचल प्रदेश के कानूनों के मुताबिक कोई भी ऐसी ज़मीन जिस पर कृषि से जुड़ा कोई भी कार्य हो रहा है उसे गैर कृषि के काम के लिए नहीं बेचा जा सकता। ये नियम इतना सख्त है कि अगर किसी ने धोखे से ज़मीन बेच भी दी और जांच में दोष सिद्ध हुआ तो सारी ज़मीन सरकार की हो जाएगी। ऐसा नहीं कि आप हिमाचल में ज़मीन नहीं खरीद सकते लेकिन वहां पर भूमि खरीदने की सीमा निर्धारित है। जो व्यक्ति किसान नहीं है वो ज़मीन नहीं खरीद सकता,अगर किसी ऐसे शख्स को ज़मीन खरीदनी है जो किसान नहीं है तो उसे सरकार से इजाज़त लेनी होगी। इसके अलावा हिमाचल में बाहरी राज्यों से आकर नौकरी कर रहे सरकारी अधिकारी आर कर्मचारी अपने बच्चों के नाम पर जमीन नहीं खरीद सकेंगे। हिमाचल में वही शख्स ज़मीन खरीद सकता है जो बोनाफाइड हिमाचली हो या फिर कम से कम तीस साल हिमाचल में रह चुका हो।

इन राज्यों में भी भू-कानून

ऐसे सख्त नियम केवल हिमाचल जैसे राज्य में ही नहीं हैं बल्कि सिक्किम में भी कानून बेहद कड़े हैं। सिक्किम के नियमों के मुताबिक लिम्बू या तमांग समुदाय के लोग अपनी जमीन किसी दूसरे समुदाय को नहीं बेच सकते। ये लोग अगर ज़मीन बेचना भी चाहें तो उन्हें अपने ही समुदाय से कोई ग्राहक खरीदना होगा। वही शख्स ज़मीन बेच सकेगा जिसके पास कम से कम तीन एकड़ अपने पास रखने के लिए हो। सिक्किम में ओबीसी तभी ज़मीन बेच सकते हैं जब उनके पास 10 एकड़ खुद के पास रखने के लिए हो।

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खुले मैदान में मिला तेंदुए का शव, करंट से मौत की आशंका

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बहोरीबंद वन परिक्षेत्र के कुआं, खड़रा दुर्गा माता मंदिर के पास खुले मैदान में एक तेंदुए की लाश मिलने से हड़कंप मच गया।सूचना पर वन विभाग की टीम रेंजर रोहित जैन, डिप्टी रेंजर चंद्रशेखर नामदेव, वनरक्षक आकाश जगाते, वनरक्षक सुयोग्य उपाध्याय सहित अन्य वन कर्मी मौके पर पहुँचे। जहां तेंदुए का शव मिला है उस स्थान के पास ही बिजली के तार पड़े देखे गए। आशंका जताई जा रही है कि करंट से तेंदुए की मौत हुई है। तेंदुए के शव मिलने की सूचना के बाद से ही लोगो का हुजूम घटनास्थल पर लग गया। वन अमले द्वारा मौका स्थल पर किसी के भी जाने से रोक लगा दी गई है। डीएफओ आरसी विश्वकर्मा ने बताया कि प्रथम दृष्ट्वा तेंदुए के शिकार की जानकारी सामने आई है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद घटना के असल कारणों का खुलासा होगा।

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EPFO

EPFO जारी कर सकता है ब्याज की रकम

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कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) दिवाली से पहले अपने 6 करोड़ से अधिक सदस्यों को खुश होने का मौका दे सकता है। ईपीएफओ वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए ब्याज दर दिवाली से पहले जारी कर सकता है। नाम न बताने के शर्त पर अधिकारियों ने बताया यह सरकारी कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को उनके महंगाई भत्ते और महंगाई राहत वृद्धि के साथ मिल जाएगा।
लाइव मिंट की खबर के मुताबिक इनमें से एक अधिकारी ने कहा कि ईपीएफओ के केंद्रीय बोर्ड ने ब्याज में बढ़ोतरी को मंजूरी दे दी है और रिटायरमेंट फंड मैनेजर ने वित्त मंत्रालय की मंजूरी मांगी है और जल्द ही इसे मंजूरी मिलने की उम्मीद है। हालांकि कुछ लोगों का तर्क है कि वित्त मंत्रालय की मंजूरी सिर्फ प्रोटोकॉल का मामला है, ईपीएफओ इसकी मंजूरी के बिना ब्याज दर को क्रेडिट नहीं कर सकता है। दूसरे अधिकारी ने कहा, “पिछले डेढ़ साल वेतनभोगी वर्ग सहित मजदूर वर्ग के लिए कठिन रहे। अब दिवाली तक अपेक्षित भुगतान से उनका मूड खुश हो जाएगा।”
बोर्ड ने वित्त वर्ष 2021 के लिए 8.5% भुगतान की सिफारिश की थी। जब ब्याज के बारे में निर्णय किए गए, तो सभी कारकों को ध्यान में रखा गया। ईपीएफओ ने पिछले वित्त वर्ष में लगभग 70,300 करोड़ रुपये की इनकम का अनुमान लगाया है, जिसमें उसके इक्विटी निवेश के एक हिस्से को बेचने से लगभग 4,000 करोड़ रुपए शामिल हैं। 2020 में कोविड-19 के प्रकोप के बाद ईपीएफओ ने मार्च 2020 में पीएफ ब्याज दर को घटाकर 8.5 फीसद कर दिया था, जो पिछले 7 वर्षों में यह सबसे कम है। बता दें वित्त वर्ष 2018-19 में ब्याज दर 8.65 फीसद था, हालांकि वित्त वर्ष 2017-18 में यह महज 8.55 फीसद ही था, जबकि वित्त वर्ष 2019-20 के लिए यह 8.5 फीसद है।

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CORONA 3rd wave

तीसरी लहर की दस्तक महाराष्ट्र में कोरोना कहर, 7 जिलों ने बढ़ाई टेंशन

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महाराष्ट्र में कोरोना की मामूली राहत देखने के बाद एक बार फिर कोरोना का कहर बढ़ता हुआ देखा जा रहा है। यहां कोरोना मामले अब घटने की बजाय बढ़ते हुए दिख रहे हैं। उद्धव सरकार लगातार बैठकें करके आने वाली तीसरी लहर को रोकने की कोशिशों में लगी है। रविवार को सरकार ने एक बैठक की जिसमें बताया गया कि महाराष्ट्र में 7 जिले चिंता का सबब बने हुए हैं जहां कोरोना के सबसे ज्यादा मामले सामने देखे जा रहे हैं। इन राज्यों में पुणे, मुंबई, सांगली आदि शामिल हैं। कुछ ही दिनों में राज्य में गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाना शुरू हो जाएगा, जिसको लेकर विशेषज्ञों ने चिंता जाहिर की है। यहां कोरोना मामले अब घटने की बजाय बढ़ते हुए दिख रहे हैं। उद्धव सरकार लगातार बैठकें करके आने वाली तीसरी लहर को रोकने की कोशिशों में लगी है। रविवार को सरकार ने एक बैठक की जिसमें बताया गया कि महाराष्ट्र में 7 जिले चिंता का सबब बने हुए हैं जहां कोरोना के सबसे ज्यादा मामले सामने देखे जा रहे हैं। इन राज्यों में पुणे, मुंबई, सांगली आदि शामिल हैं। कुछ ही दिनों में राज्य में गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाना शुरू हो जाएगा, जिसको लेकर विशेषज्ञों ने चिंता जाहिर की है।
सात पश्चिमी जिलों को “चिंता के क्षेत्र” कहा है। सरकार को डर है मामलों में जो उछाल देखने को मिल रहा है वह तीसरी लहर की दस्तक हो सकती है। पिछले 10 दिनों में मामलों की संख्या में कोई गिरावट नहीं देखी गई है; इसके बजाय, नए संक्रमणों में मामूली उछाल आया है। राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों ने मुंबई में हुए सम्मेलन में यह जानकारी दी है।
डेटा से पता चला है कि भले ही पिछले कई हफ्तों से सभी जिलों में साप्ताहिक सकारात्मकता दर 5% से नीचे रही, अहमदनगर जैसे कुछ जिलों में यह आंकड़ा क्रमशः 6.58% और 5.08% देखा गया। नुंबई वापस उन टॉप 5 जिलों में शामिल हो गया है जहां कोरोना के सबसे ज्यादा मामले रिपोर्ट किए जा रहे हैं ।

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भाजपा के लिए खतरे की घंटी: किसान महापंचायत एक दिलचस्प इतिहास अगर भाकियू ने दोहराया तो

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किसान महापंचायत के बाद एक बड़ा इतिहास सामने आया है। खास बात यह है कि अगर इस बार भी भाकियू ने अपना इतिहास दोहरा दिया तो भाजपा के लिए खतरे की घंटी है। जिससे यूपी में सत्ता परिवर्तन हो सकता है।

अब देखना यह है कि 2021 में हुई इस महापंचायत के 2022 के चुनाव में क्या परिणाम होंगे। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में किसानों की महापंचायत जिस सरकार के खिलाफ हुई, वह सरकार चली गई। 2003 से लेकर 2013 की पंचायतों का यही इतिहास है।
किसान जिस सरकार के खिलाफ एकजुट हुए हैं, वह सरकार सत्ता से बाहर होती रही है। कारण कुछ भी बना हो, लेकिन इतिहास यही है। चार फरवरी 2003 में जीआईसी के मैदान पर भाकियू की महापंचायत बसपा की मायावती सरकार के खिलाफ हुई थी। भाकियू अध्यक्ष चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत पर कलेक्ट्रेट में हुए लाठीचार्ज के विरोध में किसान जुटे थे। इसके बाद हुए चुनाव में मायावती सत्ता से बाहर हो गई थीं।
वहीं आठ अप्रैल 2008 को जीआईसी के मैदान में बसपा सरकार के खिलाफ बड़ी पंचायत हुई थी। भाकियू अध्यक्ष चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के बयान के बाद उन्हें सिसौली से गिरफ्तार किया गया था, जिसके बाद इस पंचायत का आयोजन हुआ था।
अब 2022 में चुनाव होने हैं और एक बार फिर यह महापंचायत हुई है। किसान संगठन भाजपा की योगी सरकार को उखाड़ने की बात भी कर रहे हैं। अब देखना यह है कि भाकियू अपना इतिहास दोहराती है, या भाजपा फिर से अपनी सरकार बना पाती है।

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