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डिजिटल भारत I एंग्जाइटी  ये एक ऐसा शब्द है, जिसको आजकल हम लोगों को मुंह से खूब सुनते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये छोटा सा शब्द कितनी बड़ी बीमारी होती है.अक्सर लोग एंग्जाइटी को हल्के में लेते हैं, लेकिन ऐसा कभी नहीं करना चाहिए, ये एक बड़ी बीमारी होती है. आजकल के युवाओं में ये बीमारी तेजी से फैलती जा रही है. कई रिचर्स में ये बात सामने आई है, जो लोग खुलकर अपनी बात किसी से नहीं कह पाते या फिर किसी हादसे को दिल में बैठा लेते हैं, वो ही एंग्जाइटी के शिकार ज्यादा होते हैं.

 एंग्जायटी अटैक में व्यक्ति हर वक्त चिंता, डर और बेचैनी का अनुभव करता है। उसकी दिल की धड़कन तेज होने लगती है और घुटन की हद तक सांस फूलने लगती है।

शरीर में अन्य तरह के बदलाव भी देखने को मिलते हैं। इस समय मन और शरीर कुछ अलग ही तरह से प्रतिक्रिया करते हैं। हालांकि चिंता के लक्षण बहुत आसानी से नजर नहीं आते, इन्हें पहचानना थोड़ा मुश्किल है। इसलिए हम यहां आपको कुछ ऐसे संकेतों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन पर अगर आप थोड़ा ध्यान दें, तो एंग्जायटी अटैक से बच सकते हैं।

व्यक्ति को कभी न कभी किसी भी चीज को लेकर घबराहट हो सकती है। लेकिन जब घबराहट बहुत ज्यादा हो और लंबे समय तक बनी रहे, तो आप एंग्जायटी अटैक की गिरफ्त में आ सकते हैं। याद रखें, एंग्जायटी अटैक आने पर संभावना है कि बहुत पसीना आएगा या ठंड से कंपकपी होगी।

पैनिक अटैक को कैसे करें नियंत्रित

काउंसिलिंग या परामर्श- पहली बार में शायद आपको यह समझ न आए कि अचानक आपको क्या हुआ था लेकिन दूसरी-तीसरी बार में आपको यह समझ में आने लगेगा कि आपके व्यवहार में परिवर्तन हुआ था और आपका मन और शरीर दोनों ही नियंत्रण से बाहर थे। इसके बाद लक्षणों को जानकर और समझकर तुरन्त डॉक्टर से परामर्श करें और काउंसिलिंग शुरू करें। ध्यान रखें कि यह प्रक्रिया लम्बी होगी इसलिए इलाज कभी भी बीच में न छोड़ें।

सांस वाले व्यायाम- गहरी सांस लेना और छोड़ना यानी डीप ब्रीदिंग एक बहुत ही अच्छा तरीका है दिमाग को संतुलित बनाए रखने का। इसके साथ ही यह शरीर को भी स्वस्थ बनाने में मददगार है। मानसिक स्तर पर चल रही उथल-पुथल में यह काफी राहत पहुंचा सकती है। इसलिए गहरी सांस लेने का अभ्यास निरंतर करें। इससे फेफड़ों को भी मजबूती मिलेगी और दिल भी स्वस्थ रहेगा।

नियमित फिजिकल एक्टिविटी- रेग्युलर एक्सरसाइज से मिलने वाला फायदा दीर्घकालिक होता है। यह एक दिन या एक महीने की बात नहीं है, इसलिए अपने एक्सरसाइज रूटीन को नियमित रखें। इससे शरीर के साथ-साथ दिमाग को भी ऊर्जा मिलती है जिससे वह विपरीत परिस्थितियों में भी एकदम से नियंत्रण नहीं खोता।

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