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डिजिटल भारत I ट्यूनिशिया के राष्ट्रपति ने बुधवार को एक ऐतिहासिक ऐलान किया। उन्होंने देश की पहली महिला प्रधानमंत्री को नामित किया। राष्ट्रपति ने उनके पूर्वाधिकारी को बर्खास्त किए जाने के बाद एक अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने के लिए इंजीनियरिंग स्कूल की टीचर 63 साल की Najla Bouden Romdhane को इस पद के लिए चुना है। अरब देशों में यह पहली बार है जब किसी महिला को देश की कमान संभालने के लिए मिली है। शायद इसीलिए इन देशों में महिलाएं खुद पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं हैं क्योंकि उनका नेतृत्व हमेशा से पुरुषों ने किया। खैर.. जो सुर्खियां बनीं उनमें इसे ‘हैरान करने वाला फैसला’ बताया। आज जानेंगे कि क्या वाकई अरब की दुनिया में महिलाओं की स्थिति इतनी बुरी हो चुकी है कि एक महिला का प्रधानमंत्री बनना सभी को हैरान कर रहा है?

इंजीनिरिंग कॉलेज में प्रफेसर

पहली महिला पीएम Romdhane का जन्म देश के केंद्रीय प्रांत कैरौआन में हुआ था। वह नेशनल स्कूल ऑफ इंजीनियर्स में Geology की प्रफेसर हैं। आधिकारिक ट्यूनीशियाई न्यूज एजेंसी के मुताबिक प्रधानमंत्री बनने से पहले उच्च शिक्षा और वैज्ञानिक अनुसंधान मंत्रालय ने उन्हें विश्व बैंक के साथ मिलकर कार्यक्रमों को लागू करने की जिम्मेदारी सौंपी थी। 2011 में उन्हें उच्च शिक्षा मंत्रालय में ‘गुणवत्ता’ के लिए महानिदेशक के पद पर नियुक्त किया गया।

दुनिया के विकसित देशों के साथ कदमताल करने के लिए कुछ अरब देश महिलाओं के लिए अवसर के दरवाजे खोज रहे हैं। हालांकि इसके पीछे इन देशों का स्वार्थ भी छिपा हुआ है। कर्मचारियों और मजदूरों को लेकर अरब देश आत्मनिर्भर होना चाहते हैं। सऊदी अरब ने 2030 तक 30 फीसदी महिला कर्मचारियों का लक्ष्य रखा है ताकि इसके लिए उन्हें प्रवासियों पर निर्भर न होना पड़े। कुवैत में महिला कर्मचारियों की संख्या पुरुषों से ज्यादा है। वहीं खाड़ी में उच्च शिक्षा में महिलाएं की आबादी पुरुषों से अधिक है। महिलाओं की बेहतर स्थिति को लेकर जिस अरब की हम बात कर रहे हैं उसका मतलब खाड़ी क्षेत्र (GCC) से है। जहां महिलाएं सरकार में शामिल होती हैं और राजनीतिक फैसले लेती हैं।

महिलाओं की दूसरी तस्वीर जो मिडिल ईस्ट से नजर आती है वह इससे काफी अलग है। आज भी महिलाएं यहां कई तरह के सामाजिक और कानूनी प्रतिबंधों का सामना कर रही हैं। The Conversation की एक रिपोर्ट में पाया गया कि आज भी वे घरों पर ‘पारंपरिक महिलाओं’ की भूमिकाएं निभाने की मजबूर हैं। खाड़ी अरब में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए 1930 में हुई तेल की खोज को काफी हद तक जिम्मेदार माना जा सकता है।

2015 में मिला वोटिंग का अधिकार

भारत या अन्य लोकतांत्रिक देशों की तरह सऊदी अरब में मूलभूत अधिकार महिलाओं को जन्म से नहीं मिले। इसके लिए उन्हें लंबा संघर्ष करना पड़ा। 1961 में लड़कियों के लिए पहला सरकारी स्कूल खुला और 1970 में पहली यूनिवर्सिटी। 2005 में देश ने जबरन विवाद पर रोक लगाई और 2009 में पहली सरकारी मंत्री की नियुक्ति की गई। साल 2012 में ओलंपिक की टीम में महिला एथलीट्स को जगह दी गई और वे बिना स्कार्फ के मैदान पर उतरीं। 2013 में उन्हें साइकिल चलाने के लिए मंजूरी मिली लेकिन इस दौरान उनके साथ किसी पुरुष का होना और पूरे कपड़े पहने होना जरूरी था।

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