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डिजिटल भारत l नवरात्रि का प्रत्येक दिन देवी मां के विशेष रूप को समर्पित होता है और हर स्वरूप की उपासना करने से अलग-अलग प्रकार के मनोरथ पूर्ण होते हैं। नवरात्रि के पहला दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की उपासना की जाती है।
आज से चैत्र नवरात्रि शुरू हो गए हैं। चैत्र नवरात्रि के शुरू होते ही अगले 9 दिनों तक घर और मंदिरों में मां दुर्गा की पूजा-उपासना और मंत्रों की गूंज सुनाई देने लगेगी। हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्रि शुरू हो जाते हैं। नवरात्रि का पर्व मां दुर्गा की आराधना और फल पाने का सबसे बढ़िया दिन होता है। चैत्र नवरात्रि के शुरू होते ही हिंदू नववर्ष विक्रम संवत 2080 भी शुरू हो जाएगा। इसी के साथ पूरे महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा का त्योहार भी धूमधाम के साथ मनाया जाएगा। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करते हुए मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की उपासना की जाती है।

शारदीय नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा से पहले शुभ मुहूर्त में घटस्थापना करें. अखंड ज्योति प्रज्वलित करें और भगवान गणेश का अव्हान करें.
मां शैलपुत्री की पूजा में सफेद रंग की वस्तुओं का प्रयोग करें. सफेद मां शैलपुत्री का प्रिय रंग है. स्नान के बाद सफेद वस्त्र धारण करें.
पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके पूजा की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं मां दुर्गा की तस्वीर स्थापित करें. मां शैलपुत्री को कुमकुम, सफेद चंदन, हल्दी, अक्षत, सिंदूर, पान, सुपारी,
लौंग, नारियल 16 श्रृंगार का सामान अर्पित करें.
मां शैलपुत्री की पूजा का लाभ

मां शैलपुत्री की पूजा से जातक के मूलाधार चक्र जागृत होते हैं.
देवी शैलपुत्री के पूजन से व्यक्ति में स्थिरता आती है.
मां शैलपुत्री को देवी सती का ही रूप माना जाता है. देवी सती ने भोलेनाथ को कठोर तप से पति के रूप में पाया था. नवरात्रि में इनकी साधना से कुंवारी कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है.
मां शैलपुत्री की कथा

पौराणिका कथाओं के अनुसार राजा दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया गया. राजा दक्ष ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए शिव जी को यज्ञ में नहीं बुलाया. देवी सती यज्ञ में जाना चाहती लेकिन शिव जी ने वहां जाना उचित नहीं समझा. सती के प्रबल आग्रहर पर उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी. यहां सती ने जब पिता द्वारा भगवान शंकर के लिए अपशब्द सुने तो वह पति का निरादर सहन नहीं कर पाईं और यज्ञ की वेदी में कूदकर देह त्याग दी.इसके बाद मां सती ने पर्वतराज हिमालय के घर शैलपुत्री के रूप में जन्म लिया. देवी शैलपुत्री अर्थात पार्वती का विवाह भी भोलेनाथ के साथ हुआ.

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