डिजिटल भारत l 40 दिनों की लंबी यात्रा के बाद चंद्रयान-3 का लैंडर सतह पर उतरने की तैयारी करेगा. लेकिन इसकी सबसे अहम प्रक्रिया लैंडिंग की है, जो बहुत नाज़ुक और जटिल है.
इसमें सबसे अहम अंतिम 15 मिनट होते हैं. चंद्रयान -2 की लॉन्चिंग में यही 15 मिनट अहम साबित हुए थे और तब इसरो के अध्यक्ष रहे के. सिवन ने मिशन की नाकामी को 15 मिनट का आतंक बताया था.
2019 में चंद्रयान- 2 की लॉन्चिंग में लैंडर मॉड्यूल चंद्रमा की सतह पर 2.1 किमी की ऊंचाई तक पहुंच गया था, यहां तक तो सब कुछ ठीक रहा, लेकिन इसके बाद एक छोटी सी तकनीकी गड़बड़ी के कारण लैंडर मॉड्यूल क्रैश हो गया.
पृथ्वी पर उतरने जैसा नहीं है, चंद्रमा पर उतरना
आप किसी विमान या वस्तु को धरती पर उतरते हुए दृश्य को याद कीजिए. विमान ऊंचाई से धीरे-धीरे आगे और नीचे सरकता है और रनवे पर उतरता है. हवाई जहाज से कूदने वाले स्काई डाइवर्स पैराशूट की मदद से ज़मीन पर सुरक्षित उतरते हैं.
ये दोनों प्रक्रियाएं पृथ्वी पर संभव हैं लेकिन चंद्रमा पर संभव नहीं हैं. चूंकि चंद्रमा पर कोई वायुमंडल नहीं है इसलिए लैंडर को हवा में उड़कर नहीं बल्कि पैराशूट की मदद से उतारना संभव है.
इसके लिए चंद्रयान-3 के लैंडर में रॉकेट लगाए गए. उन्हें प्रज्वलित करने के बाद लैंडर की गति को नियंत्रित करके वैज्ञानिक से धीमी गति से सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास करते हैं.
जिस क्षण से चंद्रयान-3 ने उड़ान भरी है, तब से लेकर चंद्रमा की सतह पर उतरने तक इसकी दिशा और गति को बूस्टर जलाकर इसरो के वैज्ञानिक नियंत्रित करते रहे हैं.
हालांकि लैंडिंग के दौरान इसे इस तरह नियंत्रित नहीं किया जा सकता. इसीलिए इसे स्वचालित रूप से अपने आप उतरने के लिए प्रोग्राम किया गया है. चंद्रयान 2 में भी ऐसी ही व्यवस्था की गई थी.
चंद्रयान-3 का लैंडर एक लंबी गोलाकार कक्षा में चंद्रमा की परिक्रमा कर रहा है. चंद्रमा की सतह से सौ किलोमीटर ऊपर से गुजरने के बाद, इसे चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव में लाने के लिए अपने बूस्टर को प्रज्वलित करता है. इसके बाद यह चंद्रमा की सतह की ओर तेज़ी से गिरने लगता है.
जब यह गिरने लगता है, तब इसका वेग बहुत अधिक होता है. पृथ्वी से चंद्रमा तक एक रेडियो सिग्नल भेजने में लगभग 1.3 सेकंड का समय लगता है. उसी सिग्नल को दोबारा ज़मीन तक पहुँचने में 1.3 सेकंड का समय लगता है.
इस प्रकार, चंद्रयान लैंडर पृथ्वी पर एक सिग्नल भेजता है और प्रतिक्रिया में दूसरे सिग्नल को उस तक पहुँचने में 1.3 सेकंड का समय लगता है. इसका मतलब है कि इसे पूरा होने में लगभग ढाई सेकंड का समय लगता है. मतलब कई सौ किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चंद्रमा पर गिरने वाले लैंडर को नियंत्रित करने में ढाई सेकंड का समय लगता है. इस अतिरिक्त समय के कारण ही लैंडर को ऐसा बनाया जाता है कि लैंडर अपने निर्णय ख़ुद लेता है.
ऐसे प्रयासों में तकनीकी रूप से सब कुछ ठीक होना चाहिए नहीं तो एक छोटा सा अंतर भी मुश्किलों का कारण बन सकता है.
चंद्रयान-3 पहले अपने बूस्टर को फायर करके सौ किलोमीटर की ऊंचाई पर परिक्रमा करता है ताकि वह चंद्रमा की सतह की ओर गिर सके. वहां से यह तेज़ी से चंद्रमा की सतह पर गिरेगा.
साफ्ट लैंडिंग की प्रक्रिया तब शुरू होगी जब वह 100 किमी से 30 किमी की ऊंचाई से नीचे नहीं उतर जाता. तब तक लैंडर के पैर चंद्रमा की सतह के क्षैतिज स्थिति में होते हैं. फिर गति को और कम करने के लिए लैंडर में रॉकेट दागे जाएंगे.
जब लैंडर 30 किमी की ऊंचाई पर होता है तो उसकी गति बहुत अधिक होती है. उस गति को नियंत्रित करते हुए यह चंद्रमा की सतह से 7.4 किमी की ऊंचाई तक पहुंचता है. सौ किलोमीटर की ऊंचाई से यहां पहुंचने में दस मिनट लगते हैं. इसे पहला क़दम कहा जा सकता है.
दूसरे चरण से लेकर लैंडिंग तक
7.4 किमी की ऊंचाई से यह चरण दर चरण 6.8 किमी की ऊंचाई तक उतरता है. तब तक, लैंडर के पैर, जो क्षैतिज थे, चंद्रमा की सतह की ओर 50 डिग्री तक घूमेंगे.
फिर लैंडर पर लगे उपकरण इस बात की पुष्टि करेंगे कि यह उस स्थान पर जा रहा है, जहां इसे उतरना है या नहीं. तीसरे चरण में लैंडर को 6.8 किलोमीटर की ऊंचाई से 800 मीटर की ऊंचाई तक उतरना है.
इस स्तर पर, लैंडर 50 डिग्री के क्षैतिज कोण पर चंद्रमा की सतह पर लंबवत होगा. इसके अलावा रॉकेट की गति भी कम हो जाती है. वहां से चौथे चरण में यह 150 मीटर की ऊंचाई तक उतरती है.
इस ऊंचाई पर, लैंडर यह सुनिश्चित करेगा कि लैंडिंग साइट पूरी तरह से समतल हो. वहां से पांचवें चरण में यह 150 मीटर से 60 मीटर तक नीचे उतरती है. वहां से लैंडर की स्पीड और कम हो जाती है. छठे चरण में ऊंचाई 60 मीटर से बढ़कर 10 मीटर हो जाएगी.
इस बार इसरो ने लैंडर में लेजर डॉपलर वेलोसीमीटर नामक एक नया उपकरण जोड़ा, जो चंद्रमा की सतह पर लेजर पल्स भेजता है. यह वापस उस तक पहुंच जाएगा. तो यह पल-पल हिसाब लगाता है कि यह कितनी तेज़ी से नीचे जा रहा है.
लैंडर में एक कंप्यूटर आवश्यक गति से लैंडिंग का ध्यान रखता है. छठा चरण इसे 60 से 10 मीटर की ऊंचाई पर लाना है. अगला क़दम दस मीटर की ऊंचाई से चंद्रमा पर लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग कराना है.
यहां तक कि अगर कोई तकनीकी त्रुटि होती है और लैंडर 100 मीटर प्रति सेकंड की गति से गिरता है, तो भी उपकरण के पैरों को इतना मजबूत बनाया गया है कि वे काम करते रहें. लैंडर को 800 मीटर की ऊंचाई से 10 मीटर की ऊंचाई तक पहुंचने में साढ़े चार मिनट का समय लगता है.
इस समय चाहे कुछ भी हो जाये, कोई कुछ नहीं कर सकता. लैंडर के सुरक्षित रूप से उतरने के बाद रैंप खुलता है, रोवर प्रज्ञान बाहर आता है और चंद्रमा पर उतरता है, यह लैंडर की तस्वीरें लेता है और उन्हें वापस पृथ्वी पर भेजता है. यह आठवां चरण है. वहां से लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान 14 दिनों तक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर शोध करेंगे.
चंद्रयान-2 लैंडिंग के दौरान नाकाम हो गया था, इसलिए ऐसी विफलताओं से बचने के लिए चंद्रयान-3 उन्नत तकनीक से लैस है. ये लैंडर को सुरक्षित लैंडिंग में मदद करते हैं. इनमें लैंडर मॉड्यूल में स्थापित सात मुख्य टेक्नॉलॉजी शामिल हैं.
इनमें सबसे पहले अल्टीमीटर हैं. ये चंद्रयान-3 के उतरने के दौरान उसकी ऊंचाई को नियंत्रित करेंगे. ये लेजर और रेडियो फ्रीक्वेंसी की मदद से काम करते हैं. दूसरा है वेलोसिटी मीटर. ये चंद्रयान-3 की गति को नियंत्रित करते हैं. इसमें लेजर डॉपलर वेलोसिटी मीटर और लैंडर हॉरिजॉन्टल वेलोसिटी कैमरा शामिल है. ये दोनों चंद्रमा की सतह की तस्वीरें लेते हैं और लगातार उनका निरीक्षण करते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लैंडर मॉड्यूल सुरक्षित रूप से उतर सके.
तीसरी टेक्नॉलॉजी यह लैंडर जड़त्व की गणना करने से संबंधित है, यह एक्सेलेरोमीटर के साथ-साथ लेजर जाइरोस्कोप पर आधारित टेक्नॉलॉजी है.
चौथा प्रणोदन प्रणाली है. इसमें अत्याधुनिक 800N थ्रॉटलेबल लिक्विड इंजन, 58N एटीट्यूड थ्रस्टर्स और थ्रॉटलेबल इंजन कंट्रोल इलेक्ट्रॉनिक्स की सुविधा है. ये किसी भी ऊंचाई पर लैंडर मॉड्यूल की गति को नियंत्रित करने के लिए बाक़ी सेंसर से जानकारी प्राप्त करके काम करते हैं.
समस्या उत्पन्न होने पर क्या होगा
चंद्रयान 2 में उत्पन्न हुई तकनीकी त्रुटियों का पूरी तरह से विश्लेषण करने के बाद लैंडर मॉड्यूल में ऐसी व्यवस्था की गई है कि यदि दोबारा ऐसी समस्या आए तो उसका हल निकल आए.
इसरो के अध्यक्ष सोमनाथ ने कहा कि जब चंद्रयान-3 उतरेगा, उस वक्त क्षैतिज स्थिति से 90 डिग्री ऊर्ध्वाधर स्थिति प्राप्त करना महत्वपूर्ण होगा और सॉफ्ट लैंडिंग तक उसी स्थिति को बनाए रखना होगा.
सोमनाथ ने कहा कि चंद्रयान-3 लैंडर के इंजन फेल होने या कुछ सेंसर काम नहीं करने की स्थिति में भी सुरक्षित सॉफ्ट लैंडिंग के लिए सभी आवश्यक इंतज़ाम किए गए हैं.