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‘मन की बात’ करने में आसानी होती है..


भारत में होली ऐसा इकलौता त्यौहार है ,जिसका मूलमंत्र ही है कि -‘ बुरा न मानो ‘ और यकीन मानिये कि हम हिंदुस्तानी अक्सर ही होली मनाते हैं और किसी बात का बुरा नहीं मानते .होली मेल-मिलाप और रंगों का त्यौहार है. हमारे देश में जमकर होली खेली जाती है. आम आदमी से लेकर ख़ास आदमी तक होली के रंगों में सराबोर होना चाहता है. होली पर हमें सबसे ज्यादा याद अपने लालू प्रसाद यादव की आती है, न कि माननीय प्रधानमंत्री मोदी की भारत में एक जमाना था जब होली खेलने वाले ख़ास आदमियों की लम्बी फेहरिस्त हुआ करती थी. धीरे-धीरे ये फेहरिस्त छोटी होती गयी और अब तो ये अदृश्य होती दिखाई दे रही है. लालू जी बीमार हैं, इसलिए शायद अब वे भी पहले की तरह होली न खेल पाएं .सुषमा स्वराज रहीं नहीं, अन्यथा वे होली पर नाचती-जाती नजर आतीं थी .होली पर राहुल गांधी विदेश में हैं और वहीं से हमारी लोकप्रिय सरकार पर कीचड़ उछाल रहे हैं. पूरी सरकारी पार्टी राहुल की इस हरकत से परेशान है, लेकिन चूंकि होली है इसलिए बुरा नहीं मान रही, होली पर अब पहले जैसा माहौल नहीं रहा, लेकिन रंग एकदम फीके भी नहीं हुए हैं, भले ही रसोईगैस के दाम फिर से बढ़ गए हैं. रसोई गैस के दाम बढ़ने से गुझिया,पपरिया ही तो नहीं बनेंगी ? भांग घोंटने से तो किसी ने मना नहीं किया. ठंडाई बनाइये,पीजिये,पिलाइये. अपनों को भी और गैरों को भी. होली पर अपना-पराया होतो ही कहाँ है ? होना भी नहीं चाहिए. होली आम आदमी का ही नहीं हमारी सरकारों का भी प्रिय शौक है . सरकार जब चाहे तब किसी के साथ भी होली खेल सकती है. सरकार का हर खेल ‘होली’ [पावन] होता है. इस बार सरकार ने दिल्ली से ही होली खेलने की शुरुवात की और दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को होली खेलने जेल भेज दिया. अब उनके साथ जांच एजेंसियां होली खेल रहीं हैं. सत्येंद्र जैन तो पहले से जेल की होली का आनंद ले रहे हैं. जेल की होली का अलग ही आनंद है. जिन्होंने जेल की होली खेली है वे ही इसे समझ सकते हैं .जेल की होली हर किसी के नसीब में नहीं होती. ये तो उसे ही नसीब होती है जिसके ऊपर सरकार की कृपा हो.

आज से पचास साल पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कल के जनसंघ के नेताओं समेत पूरे विपक्ष को जेल की होली खेलने का मौक़ा दिया था, लेकिन आज की भाजपा कभी भी इंदिरा गांधी से इस होली का बदला नहीं ले पायी . खमियाजा इंदिरा गाँधी के पौत्र राहुल गांधी को भुगतना पड़ रहा है. राहुल यानी भाजपा के लिए ‘पप्पू’ लगातार सरकार के निशाने पर हैं. गनीमत है कि अभी जेल नहीं भेजे गए.कायदे से उन्हें केम्ब्रिज में होली खेलने के बजाय बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय में होली खेलना चाहिए थी. कोई बुरा नहीं मानता की उन्होंने वहां क्या कहा ? केम्ब्रिज में कहे का बुरा सभी मान रहे हैं .राहुल को समझना चाहिए औरों के मन की बात. होली पर अक्सर सरकारें फुहारें छोड़तीं हैं. हमारे सूबे में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने बहनों को होली गिफ्ट के तौर पर हजार रूपये महीने देने के लिए ‘लाड़ली बहना योजना’ बना डाली है .लाड़ली लक्ष्मी तो पहले से ही थी ही.देश भर में किसी ने बहनों को होली पर ऐसा उपहार दिया क्या ? ये भाजपा वाले ही कर सकते हैं. कांग्रेस वाले करें भी तो कैसे करें ,उनके पास तो ज्यादा सरकारें भी नहीं हैं .कांग्रेस की सरकारों में कांग्रेसी आपस में ही होली खेलते रहते हैं.जैसे राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सचिन पायलट से और छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल राजा साहब से हिमाचल में भी कमोवेश ये ही हालात हैं .वहां की जनता ने इस बार भाजपा के साथ होली खेली.
होली पर मै अक्सर अपने माननीय प्रधानमंत्री जी की रंग-बिरंगी होली वाली तस्वीरें खोजता हूँ,किन्तु वे मिलती नहीं. शायद उन्हें चाय बेचने से कभी फुरसत मिली ही नहीं होली खेलने के लिए. वे होली खेलते भी तो आखिर किसके साथ? जशोदा बहन से तो उन्होंने पहले ही दूरी बना ली थी. इस बार तो वैसे भी उनके यहां होली ‘अनरहे ‘ की है. हमारे बुंदेलखंड में ऐसी होली पर उत्साह का प्रदर्शन नहीं किया जाता. बल्कि दिवंगत के प्रति श्रृद्धांजलि अर्पित की जाती है. केवल रंग डालने की औपचारिकता की जाती है .
तमाम मुसीबतों के बावजूद जनता होली खेलने को आतुर रहती है. उसे फर्क नहीं पड़ता की देश में लोकतंत्र या स्वतंत्रता को खतरा है या नहीं ? जनता इन खतरों को पहचानती नहीं,ये खतरे तो केवल विपक्ष को नजर आते हैं ,इसीलिए विपक्षलागतार जनता को इन खतरों के प्रति आगाह करता रहता है. कांग्रेस ने तो होली से ठीक पहले रायपुर अधिवेशन में ‘ लोकतंत्र और आजादी’ के नवीनीकरण का नारा दिया है .कांग्रेस का ये नारा भी जनता की समझ में आएगा या नहीं, कहना कठिन है.

अखबार वाले हमेशा की तरह सूखी होली खेलने का राग अलापते हैं. अखबार वालों को गीली होली से पता नहीं क्या ‘अनुख’ [ एलर्जी ] है. अरे भाई होली भी अगर गीली नहीं होगी तो फिर क्या गीला होगा ? आम आदमी की जिंदगी में वैसे ही अब सब सूखा ही सूखा है. मै तो कहता हूँ कि हम हिन्दुस्तानियों को होली दोगुना ज्यादा उमंग के साथ मनाना चाहिए, क्योंकि हम लगातार ‘विश्व गुरु’ बनने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. हम विश्व के गुरु बनें या न बनें लेकिन ‘गुरुघंटाल’ तो बन ही सकते हैं. हमारे पास क्षमता है, जनसंख्या बल है. अकेले 80 करोड़ लोग तो अकेले सरकार की कृपा पर पल रहे हैं हमारे यहां. दुनिया में कोई और सरकार है जो ये सब कर सके ?


होली भारत का राष्ट्रीय त्यौहार है इसलिए हमारे राष्ट्रीय नेताओं का ये नैतिक दायित्व बनता है कि वे लालू जी की तरह खुलकर जनता कि साथ होली खेलें. कंजूसी न करें. होली खेलने से ‘मन का मैल ‘ धुल जाता है. ‘ मन की बात ‘ करने में आसानी होती है. जिन्हें रेग्युलर ‘ मन की बात ‘ करना पड़ती है उनके लिए तो होली कि रंग रामबाण का काम करते हैं. होली पर मन को मारना नहीं चाहिए. मन का कहना भी नहीं टालना चाहिए. होली पर जिसका मन रंगों से खेलने का न होता हो तो समझ लीजिये कि वो दुनिया का सबसे ज्यादा नीरस आदमी है. बहरहाल आप सब खुलकर होली खेलिए. वास्तविक दुनिय में भी और आभासी दुनिया में भी. मेरी और से सभी को होली की ढेरों शुभकामनाएं और हार्दिक बधाइयां ।

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