डिजिटल भारत l ग्लोबल वार्मिंग ऐसी कोई चीज नहीं है, जो रातों-रात होकर दुनिया का वातावरण खराब कर रही है। ये पृथ्वी को वार्म करने की एक क्रमिक (Gradual) प्रक्रिया है। लेकिन पिछली शताब्दी से, पृथ्वी के तापमान में यह वृद्धि काफी बढ़ गई है, जिसकी वजह से ये हर देश के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। जीवाश्म ईंधन को जलाने में वृद्धि से और वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा बढ़ने से, ग्लोबल वार्मिंग का असर काफी देशों में अब दिखने लगा है।
स्विट्जरलैंड का इंटरलेकन शहर इन दिनों जलवायु परिवर्तन के संकट पर मंथन का अहम केंद्र बना हुआ है। वहां 195 देशों के प्रतिनिधि जलवायु परिवर्तन के संकट पर संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी संस्था IPCC की सिंथेसिस रिपोर्ट को अंतिम रूप दे रहे हैं। रविवार तक चलने वाली इन बैठकों का नतीजा सोमवार को रिपोर्ट के रूप में सामने आएगा। इस रिपोर्ट का प्रभाव इसी साल दिसंबर में दुबई में होने वाले संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन COP28 पर भी दिखेगा। इंटरलेकन के तुरंत बाद डेनमार्क के कोपेनहेगन में मंत्रिस्तरीय बैठक होगी, जहां पिछले साल इजिप्ट के शर्म अल-शेख में हुए COP27 में लिए गए फैसलों को लागू करने के तरीकों पर चर्चा होगी। खासकर ग्लोबल वॉर्मिंग से जुड़ी आपदा से प्रभावित देशों को मदद के लिए फंड बनाने पर चर्चा होगी। यह बैठक साल के अंत में दुबई में होने वाले COP28 के लिए उत्साहजनक माहौल बनाएगी। फिर संयुक्त राष्ट्र में जल सम्मेलन होगा। उदयपुर और गांधीनगर में जलवायु परिवर्तन से जुड़ी G20 की बैठकें होंगी
संयुक्त राष्ट्र की इकाई है जो जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और भविष्य में आने वाले इनके खतरों का आकलन करती है। साथ ही, इससे होने वाले नुकसान को कम करने और दुनिया के तापमान को स्थिर रखने के विकल्पों को भी सुझाती है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने 1988 में इसे स्थापित किया था। यह संगठन जलवायु परिवर्तन पर कुछ-कुछ साल में रिपोर्ट जारी करता है।
क्या आज की रिपोर्ट चौंकाएगी?
सोमवार को जारी होने वाली रिपोर्ट बहुत चौंकाएगी इसके आसार कम हैं, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पहले से दिखने लगे हैं। धरती को इन परिवर्तनों से होने वाले खतरे के बारे में पहले ही काफी कुछ कहा जा चुका है। हालांकि सिंथेसिस रिपोर्ट बस पिछली बातों को सार रूप में ही कह देने से कुछ ज्यादा होगी। लेखकों को अपनी इस रिपोर्ट में सरकारों और समाज की चिंताओं को समाहित करना होगा। हर बार के ऐसे सम्मेलनों की तरह इस बार भी रिपोर्ट की भाषा पर तकरार होना और कुछ वाक्यांश पर जोर देना तय है।
ग्लोबल वॉर्मिंग का असर दिखने लगा?
ग्लोबल वॉर्मिंग आबादी पर असर डालने लगी है। भारत में इस साल का फरवरी अब तक का सबसे गर्म महीना रहा। देश के अन्य हिस्सों में भी असामान्य रूप से पहले गर्मी आ चुकी है। दुनिया के कई अन्य हिस्सों में ऐसी ही स्थिति है। चरम मौसमी घटनाएं अब आम बात हो चुकी हैं। तूफानी बारिश, बाढ़, कड़कड़ाती सर्दी और चिलचिलाती गर्मी जैसी ये चरम मौसमी घटनाएं अब 15 गुना ज्यादा जानें ले रही हैं। पिछला दशक 1.25 लाख साल में सबसे गर्म रहा था।
अध्ययनों से पता चलता है कि 2050 तक बांग्लादेश की राजधानी का एक बड़ा हिस्सा पानी के नीचे चला जाएगा। इतना ही नहीं, बढ़ते समुद्र के स्तर के कारण देश के 70% से अधिक हिस्से को विनाशकारी बाढ़ का सामना करना पड़ेगा। शहर पहले से ही जलभराव की एक बड़ी समस्या का सामना कर रहा है, जो लोगों की समस्याओं को और बढ़ा देगा