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एक भारत उत्कृष्ट भारत

मोहन की लीलाएं कृपा शिवराज पर पड़ेगी भारी

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डिजिटल भारत I मध्यप्रदेश में बीजेपी की प्रचंड जीत के बाद सरकार में नए नेतृत्व का उदय हुआ है. इसके बाद अनपेक्षित पॉलिटिकल मैसेजिंग का दौर चल पड़ा है. नए मुख्यमंत्री मोहन यादव की भाषण शैली, संवेदनशीलता, गवर्नेंस कैपेसिटी, लोकप्रियता और कार्यक्षमता का आकलन और विश्लेषण किया जा रहा है. यह सारा विश्लेषण 17 साल तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान के पैमाने पर किया जा रहा है. भले ही यह दोनों नेता तुलनात्मक आकलन के समर्थक और पक्षधर ना हों लेकिन प्रशंसक और अनुयायी तो इसी दिशा में जुटे हुए हैं.

सोशल मीडिया पर हर दिन नए-नए वीडियो और रील्स सामने आ रही हैं. इनमें निवर्तमान मुख्यमंत्री की संवेदनशीलता और लोकप्रियता को हिमालय की ऊंचाई देते हुए नए नेतृत्व को जमीन पर भी नहीं मानने की भूल की जा रही है. मध्यप्रदेश में 2005 की परिस्थितियां फिर से दोहराई गई हैं. जब शिवराज सिंह चौहान को वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर प्रदेश का मुख्यमंत्री चुना गया था, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती बगावत के रास्ते पर आगे बढ़ गई थीं. उमा भारती को राज्य की राजनीति से बाहर जाना पड़ा था. समर्थक और प्रशंसक तो ऐसा ही माहौल बना रहे हैं कि मध्यप्रदेश में विजय के शिल्पकार को उसका हक नहीं दिया गया.

शिवराज सिंह चौहान लोकप्रियता के शिखर पर हैं. संगठन शक्ति के जीवंत स्वरूप शिवराज सिंह नई राजनीतिक परिस्थितियों में जिस राह पर आगे बढ़ रहे हैं, उसे कई लोग अस्वाभाविक मान रहे हैं. अगर 2005 में पहली बार सीएम बने शिवराज सिंह के शुरुआती कार्यकाल की तुलना नए मुख्यमंत्री मोहन यादव के शुरुआती कार्यकाल से की जाएगी, तब ही सही आकलन हो सकेगा.

मोहन यादव में मौलिकता दिखती है. भले ही वे बहुत लच्छेदार भाषण शैली के धनी ना हों लेकिन उनका ठेठ गंवईपन उनकी बड़ी ताकत दिखाई पड़ती है. मरीजों और रैनबसेरों में गरीबों से मिलने की उनकी शैली मौलिक और जीवन ऊर्जा से मेल खाती हुई देखी जा सकती है. जिस नेता ने मध्यप्रदेश की सत्ता की राजनीति में हिमालय की चोटी जैसा रिकॉर्ड स्थापित कर दिया है, उसकी तुलना नए नेतृत्व से करना उनके साथ नाइंसाफी होगी. हिमालय की चोटी पर चढ़ने के बाद सब को उतरना ही पड़ता है.

इसमें कोई संदेह नहीं है कि शिवराज सिंह की लोकप्रियता आज चरम पर है. सीएम पद पर उन्होंने अपनी कार्यशैली से जनता के बीच रिश्ते कायम किए हैं, जो भी रिश्ते हैं उनमें व्यक्तित्व के साथ ही पद का तेज भी शामिल रहा है. पद जाने के बाद पद की निस्तेज पीड़ा कई बार दिशाभ्रम पैदा कर देती है. एमपी की 16वीं विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण के कृतज्ञता प्रस्ताव पर चर्चा के समय शिवराज सिंह चौहान सदन से अनुपस्थित रहे. हाल ही में हुई भाजपा विधायक दल की बैठक में भी उनकी अनुपस्थिति चर्चा का विषय रही थी. अपनी शैली के मुताबिक, वे जनता के बीच लगातार जा रहे हैं. उनके बयान भी जिस तरह से सामने आ रहे हैं वे जाने अनजाने ऐसे संदेश दे रहे हैं जो पार्टी लाइन से थोड़े अलग दिखाई पड़ते हैं.

उनका पहला बयान ही कि ‘कुछ मांगने के लिए दिल्ली जाने से पहले मरना पसंद करेंगे’ सही परिक्षेप्य में नहीं लिया गया है. हो सकता है शिवराज सिंह चौहान जनप्रियता की अपनी लोकशैली के कारण स्वाभाविक रूप से यह सब कर रहे हों लेकिन विश्लेषण में तो इन्हें अस्वाभिक ही लिया जा रहा है. मध्यप्रदेश में इतने लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड अगर शिवराज चौहान ने बनाया है तो इसमें बीजेपी शीर्ष नेतृत्व खासकर नरेंद्र मोदी और अमित शाह का योगदान निश्चित रूप से है.

2005 के बाद हुए चुनाव में जीत के कारण चौहान को नेतृत्व दिया जाना तो स्वाभाविक था लेकिन 2018 में चुनावी पराजय के बाद भी कांग्रेस में बगावत के कारण जब सरकार बनाने का बीजेपी को मौका मिला उस समय भी भाजपा नेतृत्व ने शिवराज सिंह चौहान को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया था. इसलिए ऐसा विचार तो शायद सही नहीं होगा कि भाजपा नेतृत्व शिवराज को कमजोर करना चाहता है.

वक्त के साथ नेतृत्व में बदलाव और नयापन संगठन की ताकत होता है. जब शिवराज सिंह को मध्यप्रदेश का नेतृत्व दिया गया था तब तो परिस्थितियां और विकट थीं. उमा भारती की बगावत तक पार्टी को झेलनी पड़ी थी. फिर भी पार्टी चट्टान की तरह शिवराज सिंह चौहान के साथ खड़ी रही थी. ऐसे हालात में शिवराज के समर्थकों और प्रशंसकों को उनके भविष्य के प्रति चिंतित होकर जल्दबाजी में ऐसा कोई भी काम नहीं करना चाहिए जिसका पॉलीटिकल मैसेज किसी भी तरह से पार्टी के खिलाफ जाता हो.

कार्यकर्ता आधारित राजनीतिक दल में कोई वरिष्ठता और कनिष्ठता का प्रश्न नहीं होता. जो भी नेता चुन लिया जाता है वही सबका नेता होता है. जब बीजेपी ने 2005 में पिछली पायदान पर खड़े शिवराज सिंह चौहान की क्षमता और योग्यता को पहचान लिया था तब आज उनकी लोकप्रियता के शिखर पर होने के बाद क्या पार्टी उनकी सेवाओं का समुचित महत्व और उपयोग नहीं करेगी? ऐसा संभव नहीं है लेकिन राजनीति धैर्य का नाम है. सोशल मीडिया के कारण आजकल सारी गतिविधियां मूलरूप में प्रमाणिकता के साथ सार्वजनिक हो जाती हैं. इसके कारण राजनेताओं को ज्यादा संयम रखने की जरूरत है.

मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री मोहन यादव ने अब तक कामकाज से जो प्रशासनिक मैसेज दिया है, वह आशाजनक है. उनकी शैली आक्रामक हिंदुत्व की दिखाई पड़ रही है. बीजेपी की राष्ट्रीय लाइन को मजबूती के साथ आगे बढाने का उनका संकल्प साफ नजर आ रहा है. लाउडस्पीकर और मांस विक्रय की दुकानों के संबंध में जिस तरह के आदेश निकले हैं उससे यही संदेश जा रहा है कि मध्यप्रदेश में मोहन स्टाइल योगी स्टाइल से ही प्रेरित रहेगी.

विधानसभा में कृतज्ञता ज्ञापन में अपने पहले भाषण में उन्होंने यह साफ संदेश दिया है कि हिंदुत्व उनका एजेंडा होगा. राम मंदिर और कृष्ण जन्मभूमि पर जितनी स्पष्टता के साथ मोहन यादव ने अपना पक्ष रखा है, इस तरह पहले मध्यप्रदेश में किसी नेता ने अपनी बात नहीं कही. उनका व्यक्तित्व और छवि हिंदुत्व की लाइन से मेल खा रहा है.

सरकार में ब्यूरोक्रेट्स के फेरबदल से भी जो संकेत मिल रहे हैं उससे तो यही लगता है कि मोहन यादव ताकत के साथ सरकार चलाएंगे. पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विश्वसनीय अफसरों को जिस तरह से पदों से हटाया गया है उससे भी यही पॉलिटिकल मैसेज जा रहा है कि सरकार पर मोहन यादव का ही नियंत्रण होगा. जो ब्यूरोक्रेट पॉलिटिकल रिलेशनशिप का उपयोग करना चाहेंगे उन्हें निराशा ही हाथ लगेगी.

नए मुख्यमंत्री शिवराज मंत्रिमंडल में उच्च शिक्षामंत्री रहे हैं. मंत्री के रूप में उनकी खींची गई कोई भी लकीर राजनीतिक हलकों में स्थापित नहीं रही है. यह भी हो सकता है कि मंत्री के रूप में विश्लेषकों की नजर उनके कामकाज पर नहीं रही हो लेकिन अब तो सारी नजरें मोहन यादव की तरफ ही देख रही हैं. इसमें समर्थकों की भी नजरें हैं और विरोधियों की टेढ़ी नज़रें भी हैं. उनके सामने शिवराज की लोकप्रियता और छवि की चुनौती तो हमेशा बनी रहेगी. उन्हें अपना मार्ग स्वयं बनाना होगा.

वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय ने विधानसभा में नए मुख्यमंत्री की शैक्षणिक योग्यता, संगठन क्षमता और कर्मठता को लेकर बेहतर ढंग से विचार व्यक्त किए हैं. नए मुख्यमंत्री को वक्त के साथ अपने को साबित करना होगा. देश और राज्य के राजनीतिक हालातों में ओबीसी पॉलिटिक्स मोहन यादव के पक्ष में है. उत्तर भारत में यादव समुदाय खासकर उत्तरप्रदेश और बिहार में बीजेपी का समर्थक नहीं माना जाता है. बीजेपी को एक बड़े रीजनल यादव नेता की जरूरत थी. मोहन यादव के रूप में पार्टी ने वह तलाश पूरी कर ली है.

नए मुख्यमंत्री पर न सिर्फ मध्य प्रदेश में लोकसभा की सभी सीट जिताने का बड़ा दायित्व है. बल्कि उत्तर भारत के दोनों बड़े राज्यों में यादव मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में लाने की बड़ी भूमिका भी निभानी होगी. मोहन यादव को भाजपा शीर्ष नेतृत्व, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और संगठन का संपूर्ण समर्थन प्राप्त दिखाई पड़ रहा है.

हालात मोहन यादव के उज्जवल भविष्य का इशारा कर रहे हैं. देश की धार्मिक नगरी उज्जैन की तासीर भी मोहन यादव के व्यक्तित्व में दिखाई पड़ रही है. उन्होंने मध्यप्रदेश में भगवान कृष्ण से जुड़े स्थानों को तीर्थ स्थल के रूप में विकसित करने का ऐलान करके अयोध्या काशी मथुरा के एजेंडे को ही आगे बढ़ाने का काम किया है. वक्त के पहले मोहन यादव का बेमेल आकलन करने वाले निराश होंगे. वक्त के साथ मोहन का सम्मोहन मध्यप्रदेश की राजनीति को भगवामय बनाने में बड़ी भूमिका निभा सकता है.

संपादक – नलिन कांत बाजपेयी

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क्या है आंवला नवमी, जाने इसके महत्त्व व क्यों करनी चाहिए यह पूजा

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डिजिटल भारत l आज है कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि यानी कि आंवला नवमी। इसे कूष्मांड नवमी और अक्षय नवमी भी कहा जाता है। इस दिन आंवला वृक्ष की पूजा कर घी का दीपक लगाकर आंवला वृक्ष की कम से कम 21 परिक्रमा कर कच्चा सूत लपेटा जाता है। इसके बाद आंवला वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन किया जाता है और आंवले को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
क्यों की जाती है आंवले के पेड़ की पूजा?
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार मां लक्ष्मी भ्रमण करने के लिए पृथ्वी लोक पर आईं। रास्ते में उन्हें भगवान विष्णु और शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई। माता लक्ष्मी ने विचार किया कि एक साथ विष्णु एवं शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय होती है और बेलपत्र भगवान शिव को। मां लक्ष्मी को ख्याल आया कि तुलसी और बेल का गुण एक साथ आंवले के पेड़ में ही पाया जाता है।
ऐसे में आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिन्ह मानकर मां लक्ष्मी ने आंवले की वृक्ष की पूजा की। कहा जाता है कि पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन करवाया। इसके बाद स्वयं भोजन किया, जिस दिन मां लक्ष्मी ने शिव और विष्णु की पूजा की थी, उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि थी। तभी से कार्तिक शुक्ल की नवमी तिथि को आंवला नवमी या अक्षय नवमी के रूप में मनाया जाने लगा।
आंवला नवमी से द्वापर युग का प्रारंभ आंवला या अक्षय नवमी के दिन से द्वापर युग का प्रारंभ माना जाता है। इस युग में भगवान श्रीहरि विष्णु के आठवें अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। आंवला नवमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन-गोकुल की गलियों को छोड़कर मथुरा प्रस्थान किया था। यही वो दिन था जब उन्होंने अपनी बाल लीलाओं का त्याग कर कर्तव्य के पथ पर कदम रखा था। इसीलिए आंवला नवमी के दिन से वृंदावन परिक्रमा भी प्रारंभ होती है। आंवला नवमी के दिन ही आदि शंकराचार्य ने एक वृद्धा की गरीबी दूर करने के लिए स्वर्ण के आंवला फलों की वर्षा करवाई थी।

आंवला नवमी का महत्व
कहा जाता है कि आंवला वृक्ष के मूल में भगवान विष्णु, ऊपर ब्रह्मा, स्कंद में रुद्र, शाखाओं में मुनिगण, पत्तों में वसु, फूलों में मरुद्गण और फलों में प्रजापति का वास होता है। ऐसे में आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही इसकी पूजा करने वाले व्यक्ति के जीवन से धन, विवाह, संतान, दांपत्य जीवन से संबंधित समस्या खत्म हो जाती है। मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए अक्षय नवमी का दिन सबसे उत्तम माना जाता है।
इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करने, ब्राह्मणों को भोजन कराने तथा आंवले के दान का भी महत्व है। आंवला नवमी के दिन जो भी शुभ कार्य किया जाता है उसमें सदा लाभ व उन्नति होती है। उस काम का कभी क्षय नहीं होता इसलिए इस दिन की पूजा से अक्षय फल का वरदान मिलता है। मान्यता है कि इसी दिन द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था। वृंदावन में होने वाली परिक्रमा इसी दिन से प्रारम्भ होती है। मान्यता है उस परिक्रमा में श्रद्धालुओं का साथ देने स्वयं श्रीकृष्ण आते हैं। आंवला नवमी के दिन पूजा करने के लिए सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लेना चाहिये। फिर आंवले के पेड़ की पूजा करनी चाहिए। पेड़ पर कच्चा दूध, हल्दी रोली लगाने के बाद परिक्रमा की जाती है। महिलाएं आंवले के वृक्ष की 108 परिक्रमा करती हैं।
लोकप्रिय आयुर्वेदिक ग्रंथ भेषज्य रत्नावली में 20 से अधिक योग आंवले के नाम से बताये गये हैं। ग्रंथों में आंवले को रक्तषोधक, रुचिकारक, ग्राही एवं मूत्रल बताया गया है। जिससे यह रक्त पित्त, वातावरण, रक्तप्रदर, बवासीर, अजीर्ण, अतिसार, प्रमेह ,श्वास रोग, कब्ज, पांडु रोग एवं क्षय रोगों का शमन करता है। मानसिक श्रम करने वाले व्यक्तियों को वर्ष भर नियमित रूप से किसी भी रूप में आंवले का सेवन करना चाहिये। आंवले का नियमित सेवन करने से मानसिक शक्ति बनी रहती है। आंवला विटामिन-सी का सर्वोतम प्राकृतिक स्रोत है। इसमें विद्यमान विटामिन-सी नष्ट नहीं होता। विटामिन-सी एक ऐसा नाजुक तत्व होता है जो गर्मी के प्रभाव से समाप्त हो जाता है, लेकिन आंवले का विटामिन-सी नष्ट नहीं होता। ताजा आंवला खाने में कसैला, मधुर, शीतल, हल्का एवं मृदु रेचक या दस्तावर होता है। आंवले का प्रयोग सौंदर्य प्रसाधन के रूप में भी होता है। आंवले की चटनी, मुरब्बा तो बनता ही है, आंवले का उपयोग च्यवनप्राश बनाने में भी किया जाता है। हिंदू धर्म में आंवले का पेड़ व फल दोनों ही पूज्य हैं, अतः एक प्रकार से आंवला नवमी का यह पर्व पर्यावरण संरक्षण के लिये भी प्रेरित करता है।

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हस्ताक्षर के पहले लगाई जायेगी मतदाता की बायीं तर्जनी पर अमिट स्याही, इंकार करने पर मतदान नहीं करने दिया जायेगा

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डिजिटल भारत l भारत निर्वाचन आयोग के निर्देशों के मुताबिक विधानसभा चुनाव में मतदान केन्द्र पर वोट डालने पहुंचे
मतदाता की बायीं तर्जनी पर अमिट स्याही का निशान मतदाता रजिस्टर पर उसके हस्ताक्षर करने के पहले लगाया
जायेगा। ऐसा इसलिए किया जायेगा ताकि मत देने के बाद मतदाता के मतदान केन्द्र छोड़ने तक अमिट स्याही को
सूखने और एक सुस्पष्ट अमिट चिन्ह बनने के लिए पर्याप्त समय मिल जाये। मतदाता की अंगुली पर अमिट
स्याही नाखून से लेकर अंगुली के पहले पोर तक लगायी जायेगी।
निर्वाचन आयोग के निर्देशानुसार अमिट स्याही लगाने के पहले मतदान अधिकारियों द्वारा मतदाता की बायीं
तर्जनी का निरीक्षण भी किया जायेगा। यदि निरीक्षण में यह देखने में आता है कि किसी मतदाता ने अमिट स्याही
के चिन्ह को प्रभावहीन करने के लिए अपनी अंगुली पर तैलीय या चिकनाईयुक्त पदार्थ लगा लिया है तो मतदान
अधिकारी द्वारा उस मतदाता की अंगुली पर अमिट स्याही का चिन्ह लगाने के पहले किसी कपड़े के टुकड़े की
सहायता से ऐसा तैलीय या चिकनाईयुक्त पदार्थ को हटा दिया जायेगा ।
आयोग के निर्देशों में मतदान अधिकारियों से स्पष्ट कहा गया है कि यदि कोई मतदाता निर्देशों के
विपरीत अपनी बायीं तर्जनी का निरीक्षण करने या अमिट स्याही लगाने से इंकार करे या उसकी बायीं तर्जनी पर
ऐसा कोई चिन्ह पहले से ही हो अथवा वह स्याही को हटाने की दृष्टि से कोई भी कृत्य करे तो उसे मत देने के
लिए अनुमति नहीं दी जाये।
आयोग ने यह भी कहा है कि मतदाता को अपना मत रिकार्ड करने के लिए मतदान कक्ष में जाने की अनुमति
देने के पहले नियंत्रण यूनिट के प्रभारी मतदान अधिकारी द्वारा भी उसकी अंगुली की दुबारा जांच की जानी चाहिए।
यदि मतदाता ने स्याही को हटा दिया है या स्याही का चिन्ह अस्पष्ट है तो उसकी बायीं तर्जनी पर दुबारा अमिट
स्याही का चिन्ह लगा दिया जाये।
आयोग के मुताबिक मतदान कर चुके मतदाता की पहचान के लिए अमिट स्याही का चिन्ह मतदाता की
बायीं तर्जनी की अंगुली पर लगाया जायेगा। लेकिन यदि किसी मतदाता की बायीं तर्जनी न हो तो अमिट स्याही
उसकी ऐसी किसी भी अंगुली में लगाई जायेगी जो उसके बायें हाथ में हो । यदि उसके बाये हाथ में कोई भी अंगुली
न हो तो स्याही उसकी दायें हाथ की तर्जनी पर लगाई जायेगी और यदि उसके दायें हाथ की तर्जनी भी न हो तो
उसकी दायीं तर्जनी से प्रारंभ करते हुए उसके दायें हाथ की किसी भी अन्य अंगुली पर स्याही लगाई जायेगी ।
परन्तु यदि किसी मतदाता के किसी भी हाथ में कोई भी अंगुली न हो तो स्याही उसके बायें या दायें हाथ के ऐसे
सिरे (ठूंठ) पर जो भी उसके हो लगायी जायेगी।

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125वर्षों से भी ज्यादा का है मनकेडी चंडी मेले का इतिहास, मुस्लिम परिवार द्वारा निभाई जा रही परंपरा

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डिजिटल भारत l हिंनदोस्तान गंगा जमिनी तहजीब के लिए विख्यात यूं ही नहीं माना जाता यहां पर बसने वाले ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी तहजीब की महक बरकरार है जिसमें धर्म से ऊपर इंसानियत और भाईचारे को माना जाता है प्रेम सौहार्द ही जिनके लिए सबसे बड़ा धर्म है। ऐसा ही कुछ बरगी नगर के छोटे से ग्राम मनकेडी में पिछले 100 वर्षों से भी ज्यादा लंबे समय से देखने मिल रहा है जहां 99.9% हिंदू आबादी के बीच में रहने वाला रहने वाला एक मुस्लिम परिवार अपने बाप दादा के समय से इस परंपरा को बखूबी निभा रहे हैं और अपने पुरखों की इस रवायत को आज भी नई पीढ़ियां निभा रही हैं।

✳️ भाई दूज पर भरता है प्रेम का मेला मनकेडी ग्राम के ग्राम प्रमुख हफीज खान मालगुजार ने बताया कि दीपावली के भाई दूज के अवसर पर हमारे गांव में पिछले 125 वर्षों से भी ज्यादा समय से हमारे परिवार के स्वर्गीय खुदा बख्श, स्वर्गीय शेख कल्लू तथा स्वर्गीय शेख अहमद खान मालगुजार द्वारा ग्राम में भाई दूज के अवसर पर आपसी प्रेम के लिए चण्डी मड़ई मेले का आयोजन किया जाता रहा है जिसे हम भी उसी परंपरा के अनुसार इसका निर्वहन कर रहे हैं।

✳️ दर्जन भर गांवों को भेजते हैं न्योता ग्राम के (बैगा) पंडा प्रहलाद आदिवासी तथा सूरज आदिवासी ने बताया कि मालगुजार परिवार द्वारा चंडी मेला कार्यक्रम के लिए आसपास के दर्जन भर ग्राम सहजपुरी,चौरई, रीमा, नयागांव, टेमर गुल्ला पाठ, भोंगा तथा हरदुली ग्रामों के ग्राम प्रमुख को हल्दी चावल तथा सुपारी भेज कर पारंपरिक न्योता दिया जाता है । तत्पश्चात ग्राम की ग्वालटोली द्वारा शाम 4:00 बजे मालगुजार परिवार के घर पहुंच कर नाचते गाते हुए समूचे गांव के साथ मालगुजार परिवार के प्रमुख को लेकर ग्वालटोली मेला स्थल तक पहुंचती है यहां पर पूरी विधि विधान से चंडी माता की पूजा अर्चना के बाद ग्राम के बैगा द्वारा मढईको ब्याहने की प्रक्रिया पूरी की जाती है और इस तरह से सभी मेले में शामिल होते हैं।

✳️पान खिलाकर होता है स्वागत आसपास के गांव से आमंत्रित की गई सभी ग्वालटोलियों को मेला स्थल में पहुंचने के बाद पान खिलाकर स्वागत किया जाता है तथा मालगुजार परिवार द्वारा विशेष नृत्य प्रस्तुति पर सभी ग्वालटोलियों को सम्मान स्वरूप प्रसाद और बख्शीश (पुरस्कार) हर टोली को दी जाती है तथा आसपास के सभी आमंत्रित अतिथि गणों को पान खिलाकर स्वागत किया जाता है इस अवसर पर ग्राम के दिमाग प्रसाद, डुमारी लाल सोनी ,डुमारी लाल झरिया, प्रहलाद आदिवासी, विमल नेताम, रामाधार आदिवासी, संतोष आदिवासी, सूरज प्रसाद, कृपाल आदिवासी, भूरा झरिया, रोशनी झरिया मुकेश तथा समस्त ग्रामीण का विशेष सहयोग रहता है

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दिव्यांग और अस्सी वर्ष से अधिक मतदाताओं से डाकमत से मतदान कराने आज से घर-घर जायेंगे मतदान दल

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डिजिटल भारत l भारत निर्वाचन आयोग द्वारा दिव्यांग एवं अस्सी वर्ष से अधिक आयु के मतदाताओं को डाकमत पत्र के
माध्यम से घर से ही मतदान करने की दी गई सुविधा के मुताबिक जबलपुर जिले की सभी आठ विधानसभा क्षेत्रों
के ऐसे 1 हजार 891 मतदाताओं से मतदान कराने मंगलवार 7 नवंबर से मतदान दल उनके घर पहुंचेंगे। डाकमत
पत्र से घर से मतदान करने की फार्म 12-डी में सहमति देने वाले इन मतदाताओं से मतदान कराने कुल 69 दलों
का गठन किया गया है। प्रत्येक दल में एक पीठासीन अधिकारी और एक मतदान अधिकारी क्रमांक एक होगा।
इनके अलावा एक माइक्रो आब्जर्वर, एक सुरक्षा कर्मी, एक वीडियोग्राफर भी दल के साथ मौजूद रहेगा।
जिला निर्वाचन कार्यालय के मुताबिक दिव्यांग और अस्सी वर्ष से अधिक आयु के मतदाताओं को घर से
डाकमत पत्र से मतदान की दी गई सुविधा के तहत मतदान दल पहले चरण में 7 और 8 नवंबर को इन
मतदाताओं के घर पहुंचेंगे और मतदान करायेंगे। इस दौरान यदि वे अनुपस्थित रहे तो 9 और 10 नवंबर को दूसरे
चरण में मतदान दल दोबारा उनके घर पहुंचेंगे। इसकी बकायदा घर में मौजूद परिवार के सदस्यों को सूचना दी
जायेगी जिसमें दिन और समय का उल्लेख भी रहेगा। दुबारा भी घर में अनुपस्थित रहने पर ऐसे मतदाताओं को
मतदान की सुविधा नहीं होगी वे मतदान केन्द्र पर जाकर भी अपना वोट नहीं डाल सकेंगे।
जिला निर्वाचन कार्यालय के मुताबिक दिव्यांग और अस्सी वर्ष से अधिक आयु के मतदाताओं से घर-घर
जाकर डाकमत पत्र से मतदान कराये जाने वाले मतदान दलों के रूट चार्ट की सूचना चुनाव लड़ रहे सभी
उम्मीदवारों को दी जा चुकी है। मतदान के दौरान उम्मीदवारों के मतदान अभिकर्ता अथवा राजनैतिक दलों के बूथ
लेवल अभिकर्ता भी दिव्यांग एवं अस्सी प्लस मतदाताओं के घर पर मौजूद रह सकेंगे। मतदान की इस समूची
प्रक्रिया की वीडियो ग्राफी भी कराई जायेगी। जिला निर्वाचन कार्यालय के अनुसार विधानसभा क्षेत्र पाटन में दिव्यांग एवं अस्सी वर्ष से अधिक आयु के 356 मतदाताओं से घर से मतदान कराने 10 मतदान दल गठित किये गये हैं। इसी प्रकार विधानसभा क्षेत्र बरगी में 236 मतदाताओं से मतदान कराने दस, जबलपुर पूर्व के 197 मतदाताओं से मतदान कराने सात, जबलपुर उत्तर
के 268 मतदाताओं से मतदान कराने दस, जबलपुर केण्ट के 219 मतदाताओं से मतदान कराने आठ, जबलपुर
पश्चिम के 220 मतदाताओं से मतदान कराने आठ, पनागर के 140 मतदाताओं से मतदान कराने छह तथा
विधानसभा क्षेत्र सिहोरा के दिव्यांग एवं अस्सी वर्ष से अधिक आयु के 255 मतदाताओं से घर से डाकमत पत्र के
जरिये मतदान कराने दस मतदान दलों का गठन किया गया

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अब बिना प्रमाण नहीं फैला सकते सोशल मीडिया पर कोई भी खबर

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डिजिटल भारत l विधानसभा चुनाव लड़ रहे 13 प्रत्याशियों को पूर्व प्रमाणन कराये बिना सोशल मीडिया के विभिन्न
प्लेटफार्म पर विज्ञापन प्रसारित करने के कारण जिला स्तरीय मीडिया सर्टिफिकेशन एवं मॉनिटरिंग कमेटी ने नोटिस
जारी करने की अनुशंसा रिटर्निंग अधिकारियों से की है।
बता दें कि जिला स्तरीय मीडिया सर्टिफिकेशन एवं मॉनिटरिंग कमेटी के सोशल मीडिया सेल द्वारा
फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स, यू-ट्यूब् जैसे सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर प्रसारित राजनैतिक विज्ञापनों पर
चौबीस घण्टे नजर रखी जा रही है।
जिला स्तरीय एमसीएमसी समिति द्वारा जिन उम्मीदवारों को नोटिस जारी करने की अनुशंसा रिटर्निंग
अधिकारियों को की गई है, उनमें पाटन विधानसभा क्षेत्र के दो, बरगी का एक, जबलपुर पूर्व के दो, जबलपुर उत्तर के
दो, जबलपुर केण्ट के दो, जबलपुर पश्चिम के दो एवं पनागर विधानसभा क्षेत्र के दो उम्मीदवार शामिल हैं। जिला
स्तरीय मीडिया सर्टिफिकेशन एवं मॉनिटिरंग कमेटी द्वारा रिटर्निंग अधिकारियों को सोशल मीडिया की करीब 50
लिंक्स भी भेजी गई र्है जिनमें पूर्व प्रमाणन कराये बिना राजनैतिक विज्ञापन प्रसारित किये जा रहे हैं। बिना पूर्व
प्रमाणन के प्रसारित राजनैतिक विज्ञापनों का खर्च भी चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों के निर्वाचन व्यय लेखा में जोड़ा
जायेगा।

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बिना अनुमति के रैली निकालने एवं अनुमति की शर्त का उल्लंघन करने पर दो प्रत्याशियों के विरूद्ध एफआईआर दर्ज

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डिजिटल भारत l चुनाव आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन कर बिना अनुमति रैली निकालने तथा आमसभा के लिये दी गई
अनुमति की शर्तों का उल्लंघन करने पर विधानसभा क्षेत्र जबलपुर पूर्व से चुनाव लड़ रहे दो प्रत्याशियों के खिलाफ
एफआईआर दर्ज कराई गई है।
अनुविभागीय अधिकारी आधारताल अनुराग सिंह के मुताबिक जबलपुर पूर्व विधानसभा क्षेत्र से
एआईएमआईएम के प्रत्याशी गजेन्द्र सोनकर द्वारा 3 नवम्बर को शाम 5.30 बजे भानतलैया से मंडी मदार टैकरी
तरफ 40 से 50 साथियों के साथ पैदल रैली निकाली जा रही थी। रैली में ई-रिक्शा क्रमांक एमपी 20 आर.ए.
1223 भी था जिसमें गजेन्द्र सोनकर के बैनर-पोस्टर लगे थे। उन्होंने बताया कि मौके पर एफएसटी दल क्रमांक
पांच के प्रमुख सहायक प्राध्यापक पशु चिकित्सा एवं पशु पालन महाविद्यालय अनिल शिंदे द्वारा रैली की अनुमति
के बारे में पूछे जाने पर प्रत्याशी गजेन्द्र सोनकर द्वारा कोई अनुमति नहीं होना बताया गया। ई-रिक्शा की विंड
स्क्रीन पर भी कोई अनुमति नहीं लगी थी।
अनुविभागीय अधिकारी आधारताल ने बताया कि बिना अनुमति रैली निकालकर आदर्श आचार संहिता का
उल्लंघन करने के इस मामले में एफएसटी दल प्रमुख अनिल शिंदे द्वारा हनुमानताल थाने में एफआईआर दर्ज
कराई गई। बिना अनुमति निकाली जा रही रैली की वीडियोग्राफी भी एफएसटी दल द्वारा कराई गई है। हनुमानताल
थाना द्वारा इस मामले में भारतीय दण्ड संहिता 1860 की धारा 171-एच एवं धारा 188 के तहत प्रकरण कायम
कर लिया गया है।
एसडीएम आधारताल के मुताबिक आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के दूसरे मामले में जबलपुर
विधानसभा के भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी अंचल सोनकर के विरूद्ध एफएसटी दल क्रमांक आठ के प्रमुख
सहायक प्राध्यापक पशु चिकित्सा डॉ. मनीष जाटव द्वारा रिटर्निंग अधिकारी कार्यालय से मिली आमसभा की
अनुमति की शर्तों के उल्लंघन के मामले में बेलबाग थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई है। उन्होंने बताया कि एफ
एस टी दल को 3 नवंबर की शाम लगभग 6.30 बजे सूचना प्राप्त हुई थी कि प्रत्याशी अंचल सोनकर के संबंध
में अंबेडकर चौक से घमापुर चौक के बीच का आधे एक तरफ के मुख्य मार्ग को टेंट लगाकर बाधित किया जा रहा
है। एफएसटी दल द्वारा मौके पर पहुंचकर वीडियो ग्राफी कराई गई। आयोजन के संबंध में मौके पर रिटर्निंग
अधिकारी कार्यालय जबलपुर पूर्व द्वारा जारी अनुमति देखने पर पाया गया कि इसमें कार्यक्रम स्थल पाण्डेय
अस्पताल के सामने मेन रोड घमापुर का उल्लेख है जबकि अनुमति में दी गई शर्तो का उल्लंघन कर सम्पूर्ण सड़क
(एक तरफ) में मंच बना लिया गया जिससे बाधा उत्पन्न हुई। बेलबाग थाने ने इस मामले में भारतीय दण्ड संहिता
की धारा 188 के तहत प्रकरण पंजीवद्ध किया है।

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ताई ची मार्शल आर्ट की ही एक ऐसी विधा है, कर सकती है बीमारी की गति को धीमा

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डिजिटल भारत l पार्किंसन एक दिमाग़ी बीमारी है, जिसमें मरीज की स्थिति धीरे-धीरे बिगड़ती चली जाती है. इससे पीड़ित व्यक्ति के लिए वक़्त के साथ अपनी शारीरिक गतिविधियों पर नियंत्रण बनाए रखना मुश्किल होता जाता है. लेकिन जर्नल ऑफ न्यूरोलॉजी न्यूरोसर्जरी एंड साइकाइट्रिक में प्रकाशित हुए अध्ययन में दावा किया गया है कि ताई ची पार्किंसंन बीमारी की गति को धीमा कर सकती है. इस अध्ययन में पार्किंसन बीमारी से पीड़ित 334 मरीज़ों को शामिल किया गया था. इनमें से 147 मरीज़ों के समूह ने हफ़्ते में दो बार एक घंटे के लिए ताई ची का अभ्यास किया.
पार्किंसंस रोग एक दुर्बल करने वाला और प्रगतिशील न्यूरोडीजेनेरेटिव विकार है, जो गति की धीमी गति, आराम करने वाले कंपकंपी और कठोर और अनम्य मांसपेशियों की विशेषता है। यह दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली न्यूरोलॉजिकल स्थिति है। अभी तक, पार्किंसंस का कोई इलाज नहीं है, और हालांकि दवाएं नैदानिक ​​लक्षणों को कम कर सकती हैं, लेकिन वे रोग की सभी अभिव्यक्तियों का इलाज नहीं करती हैं। अध्ययन में जनवरी 2016 से जून 2021 तक पांच साल से अधिक समय तक पार्किंसंस रोग के रोगियों के दो समूहों की निगरानी की गई। 147 रोगियों के एक समूह ने एक घंटे के लिए सप्ताह में दो बार ताई ची का अभ्यास किया, जिससे उनकी तकनीक में सुधार करने के लिए कक्षाओं के प्रावधान से सहायता मिली।

187 रोगियों के दूसरे समूह ने अपनी मानक देखभाल जारी रखी, लेकिन ताई ची का अभ्यास नहीं किया। ताई ची समूह में सभी निगरानी बिंदुओं पर रोग की प्रगति धीमी थी, जैसा कि समग्र लक्षणों, गति और संतुलन का आकलन करने के लिए तीन मान्य पैमानों द्वारा किया गया था। तुलनात्मक समूह में जिन रोगियों को अपनी दवा बढ़ाने की आवश्यकता थी, उनकी संख्या भी ताई ची समूह की तुलना में काफी अधिक थी: 2019 में 83.5 प्रतिशत और 2020 में 71 प्रतिशत और 87.5 प्रतिशत की तुलना में सिर्फ 96 प्रतिशत से अधिक। क्रमश। अन्य गैर-गतिशील लक्षणों की तरह ताई ची समूह में संज्ञानात्मक कार्य अधिक धीरे-धीरे खराब हुए, जबकि नींद और जीवन की गुणवत्ता में लगातार सुधार हुआ। और तुलनात्मक समूह की तुलना में ताई ची समूह में जटिलताओं का प्रसार काफी कम था: डिस्केनेसिया 1.4 प्रतिशत बनाम 7.5 प्रतिशत; डिस्टोनिया 0 प्रतिशत बनाम 1.6 प्रतिशत; मतिभ्रम 0 प्रतिशत बनाम केवल 2 प्रतिशत से अधिक; हल्की संज्ञानात्मक हानि 3 प्रतिशत बनाम 10 प्रतिशत; रेस्टलेस लेग सिंड्रोम 7 प्रतिशत बनाम 15.5 प्रतिशत। पार्किंसन बीमारी को समझने के लिए दुनिया भर में शोध जारी हैं. लेकिन अब तक जो कुछ पता है, उसके मुताबिक़ इस बीमारी से पीड़ित शख़्स का अपनी शारीरिक गतिविधियों पर नियंत्रण कम होता जाता है.

उदाहरण के लिए, उसे कंपन और मांसपेशियों में अकड़न होने जैसी दिक्कतें होती हैं. इसके साथ ही इस बीमारी से जूझ रहे शख़्स को शारीरिक संतुलन एवं समन्वय बनाने में भी परेशानी आती है. चीन की शंघाई जिओ टोंग यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ़ मेडिसिन के अध्ययन में पांच साल तक पार्किंसन के सैकड़ों मरीज़ों के स्वास्थ्य पर नज़र रखी गई. इसमें एक समूह जिसमें 147 लोग थे उन्होंने नियमित रूप से ताई ची का अभ्यास किया जबकि 187 लोगों के समूह ने अभ्यास नहीं किया. इस पारंपरिक चीनी कसरत में धीमे और सौम्य मूवमेंट के साथ साथ गहरी सांस लेना शामिल था. द चैरिटी पार्किंसन यूके ने ताई ची को धीमे मूवमेंट वाली शारीरिक गतिविधि बताया है जो जिंदगी और मूड को बेहतर बनाने में मदद करती है.

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प्रदेश में 17 नवंबर को सुबह 7 से शाम 6 बालाघाट, मंडला और डिंडोरी जिले के कुछ विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में सुबह 7 से दोपहर 3 होगा मतदान

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डिजिटल भारत l मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी अनुपम राजन ने बताया कि प्रदेश में 17 नवंबर को सुबह 7 से शाम 6
बजे तक मतदान प्रक्रिया चलेगी। इस संबंध में भारत निर्वाचन आयोग द्वारा अधिसूचना जारी कर दी गई है।
राजन ने बताया कि मतदान शुरू होने के डेढ़ घंटे पहले सुबह 5:30 बजे से मॉकपोल की प्रक्रिया प्रारंभ होगी। यह
प्रक्रिया अभ्यर्थी या उसके अधिकृत एजेन्ट की उपस्थिति में होगी। यदि कोई अभ्यर्थी या उसका एजेन्ट 5:30 बजे
मतदान केन्द्र पर उपस्थित नहीं होता है, तो 15 मिनट तक उसका इंतजार किया जाएगा। इसके बाद मतदान दलों
और अन्य सदस्यों की उपस्थिति में मॉकपोल की प्रक्रिया प्रारंभ की जायेगी। न्यूनतम 50 वोट से मॉकपोल किये
जाने का प्रावधान है, जिसमें नोटा भी शामिल होगा। मॉकपोल की प्रक्रिया प्रारंभ करने से पूर्व बैलेट यूनिट एवं
वीवीपीएटी को वीवीपीएटी कम्पार्टमेंट में रखा जाएगा। कंट्रोल यूनिट को पीठासीन अधिकारी की टेबल या मतदान
अधिकारी के टेबल पर रखना होगा।
राजन ने बताया कि प्रदेश के बालाघाट, मंडला और डिंडोरी जिलों के कुछ विधानसभा क्षेत्रों में सुबह 7
से दोपहर 3 बजे तक मतदान प्रक्रिया चलेगी। इसमें बालाघाट जिले के तीन विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र 108-बैहर
(अ.ज.जा.), 109-लांजी और 110 -परसवाड़ा के सभी मतदान केंद्र, मंडला जिले के 105-बिछिया विधानसभा निर्वाचन
क्षेत्र के-47 मतदान केंद्रों पर, 107-मंडला विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले 8 मतदान केंद्रों तथा
डिण्डोरी जिले के विधानसभा क्षेत्र क्रमांक-104 डिण्डोरी के 40 मतदान केंद्रों पर सुबह 7 से दोपहर 3 बजे तक
मतदान प्रक्रिया चलेगी। समस्‍त श्रमिकों को 17 नवम्‍बर मतदान के दिन सवैतनिक अवकाश के निर्देश
विधानसभा आम निर्वाचन 2023 का निर्वाचन कार्यक्रम जारी किया गया है, जिसमें 17 नवम्‍बर को
मतदान किया जाना निर्धारित है। उक्‍त दिशा निर्देशों के अनुसार श्रमायुक्‍त के निर्देश तथा लोक प्रतिनिधित्‍व
अधिनियम 1951 की धारा 135 (ग) के प्रावधान अनुसार प्रदेश की समस्‍त विधानसभाओं के क्षेत्रों में आने वाले
सभी कारोबार, व्‍यवसाय, उद्योगिक उपक्रम या किसी अन्‍य स्‍थापना में नियोजित प्रत्‍येक श्रमिक को चाहे वह
दैनिक मजदूर या आकस्मिक श्रेणी का ही हो उसे विधानसभा निर्वाचन 2023 में मतदान करने का अधिकार है।
ऐसे समस्‍त श्रमिकों को 17 नवम्‍बर मतदान के दिन सवैतनिक अवकाश मंजूर किया जाना आवश्‍यक है। साथ
ही यह भी उल्‍लेख किया गया है कि यदि कोई कामगार किसी ऐसे उद्योग या स्‍थापना में नियोजित है जो उस
विधानसभा क्षेत्र के बाहर है जहां आम निर्वाचन हो रहें है। तब भी उन्‍हें मतदान के लिये सवैतनिक अवकाश की
पात्रता होगी। प्रभारी सहायक श्रमायुक्‍त ने जिले के सभी कारोबार, व्‍यवसाय, उद्योगिक उपक्रम या अन्‍य
स्‍थापना के प्रबंधकों या नियोजकों को निर्देशित किया है कि वे कार्यरत सभी कामगारों को विधानसभा निर्वाचन में
मताधिकार का उपयोग सुविधाजनक एवं निर्बाध रूप से सुनिश्चित करने की दृष्टि से लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम
1951 के उक्‍त प्रावधान का पालन सुनिश्चित करते हुये मतदान दिवस को समस्‍त श्रेणी के कामगारों को
सवैतनिक अवकाश अनिवार्यत: प्रदान करें।

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कम महिला वोटर टर्नआउट को शत प्रतिशत मतदान में बदलने आयोजित किये गये जागरूकता के कार्यक्रम

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डिजिटल भारत l विधानसभा के 17 नवंबर को होने वाले चुनाव में शत-प्रतिशत मतदान के उद्देश्य से पिछले निर्वाचनों के
कम वोटर टर्न आउट वाले चिन्हित किये गये मतदान केंद्रो में आयोजित की जा रही गतिविधियों के तहत आज
बुधवार को जिला निर्वाचन कार्यालय के स्वीप सेल द्वारा शहरी विधानसभा क्षेत्रों में जागरूकता के विभिन्न कार्यक्रम
आयोजित किये गये।
इन कार्यक्रमों में जबलपुर पूर्व विधानसभा क्षेत्र के मतदान केंद्र क्रमांक-40 में महिला वोटर टर्न आउट
शत-प्रतिशत पहुँचाने का लक्ष्य लेकर जिला स्वीप शाखा द्वारा एपीसी तरुण राज दुबे के नेतृत्व में संबंधित बीएलओ
संभागीय अधिकारी नगर निगम तथा प्रियदर्शनी अंजुमन महाविद्यालय की समेकित जिम्मेदारी तय की गई । इसे
अभियान बनाते हुए अंजुमन महिला महाविद्यालय की प्राचार्य शबाना अंजुम, निर्वाचन साक्षरता क्लब की
नोडल अधिकारी रेशमा शेख के समन्वय में महाविद्यालय के विद्यार्थियों ने “डाले वोट, बूथ पर जायें,
लोकतंत्र का पर्व मनाए” थीम पर रोचक नुक्कड़ नाटक मतदान केंद्र पर किया गया तथा नागरिकों को मतदान करने
तथा अन्य को भी वोट डालने प्रेरित करने का संकल्प दिलाया गया।
विधानसभा क्षेत्र जबलपुर उत्तर में जागरूकता कार्यक्रम में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक वार्ड स्थित मतदान
केंद्र क्रमांक -216 से सबंधित क्षेत्र की महिला मतदाताओं को वोट के प्रति जागरूक करने एपीसी राजेश तिवारी,
मानकुँवर बाई महिला महाविद्यालय प्राचार्य डॉ संध्या चौबे, ईएलसी नोडल श्रद्धा तिवारी द्वारा समन्वित
प्रयास कर नुक्कड़ नाटक का आयोजन कर शत-प्रतिशत मतदान का स्पष्ट संदेश प्रसारित कर उपस्थित महिलाओं
से अनिवार्य मतदान हेतु संकल्प लिया गया।


विधानसभा क्षेत्र जबलपुर पश्चिम के मतदान केंद्र क्रमांक-149 से सबंधित क्षेत्र के मतदाताओं को जागरूकता
करने हेतु संकल्प लिया गया अपील की गई तथा शपथ दिलवाई गई तथा इससे जुड़े क्षेत्र का हवाबाग महिला
महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. सैयद सहेवार, ईएलसी नोडल अधिकारी रुचि केसरवानी एपीसी मोनिका लकड़ा, सेक्टर
अधिकारी माधव सिंह यादव एवं महाविद्यालय के छात्रों द्वारा हाथों में तख्ती लेकर व्यापक भ्रमण कर क्षेत्र में
जागरूकता की लहर फैलाई गई|
विधानसभा क्षेत्र जबलपुर केंट के अंतर्गत सेंट अलायसियस महाविद्यालय के संयोजन में विद्यार्थियों
द्वारा अपने अभिभावकों को वोट देने हेतु संकल्प लिया गया। महाविद्यालय के प्राचार्य द्वारा समस्त स्टाफ तथा
अन्य सभी को अधिक से अधिक मतदान करने हेतु प्रेरित किया गया।
जिला निर्वाचन कार्यालय के स्वीप समन्वयक प्रमोद श्रीवास्तव ने बताया कि मतदाता जागरूकता के
कार्यक्रम व्यापक रूप से निरंतर जारी रहेंगे।

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