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जाने क्यों है रक्षा के बंधन का ये त्यौहार खास, व कब हैं रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त

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डिजिटल भारत l यह एक हिन्दू व जैन त्योहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं।[3] रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है। रक्षाबंधन भाई बहन के रिश्ते का प्रसिद्ध त्योहार है, रक्षा का मतलब सुरक्षा और बंधन का मतलब बाध्य है। रक्षाबंधन के दिन बहने भगवान से अपने भाईयों की तरक्की के लिए भगवान से प्रार्थना करती है
रक्षाबंधन हिन्दुओं का महत्वपूर्ण पर्व है, जो भारत के कई हिस्सों में मनाया जाता है. भारत के अलावा भी विश्व भर में जहाँ पर हिन्दू धर्मं के लोग रहते हैं, वहाँ इस पर्व को भाई बहनों के बीच मनाया जाता है. इस त्यौहार का आध्यात्मिक महत्व के साथ साथ ऐतिहासिक महत्त्व भी है.
रक्षाबंधन कब मनाया जाता हैं
भाई बहन का यह त्यौहार प्रति वर्ष मनाया जाता हैं जिसे हिन्दू पचांग के अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता हैं जो कि ज्यादातर अंग्रेजी पंचाग के अनुसार अगस्त माह में आता हैं . यह एक धार्मिक त्यौहार हैं जिस पर छुट्टी दी जाती हैं .

2023 में रक्षाबंधन कब हैं शुभ मुहूर्त क्या हैं
रक्षा बंधन का त्यौहार कब है 30 अगस्त 2023
दिन बुधवार
राखी बांधने का शुभ मुहुर्त 30 अगस्त को सुबह 10:58 बजे से 31 अगस्त को रात 7:05 बजे तक
कुल अवधि 20 घंटे 7 मिनट
रक्षाबंधन पर कहानी
रक्षाबंधन सम्बंधित कुछ पौराणिक कथाएं जुडी हुईं है. इन कथाओं का वर्णन नीचे किया जा रहा है.

इंद्रदेव सम्बंधित मिथक :
भविष्यत् पुराण के अनुसार दैत्यों और देवताओं के मध्य होने वाले एक युद्ध में भगवान इंद्र को एक असुर राजा, राजा बलि ने हरा दिया था. इस समय इंद्र की पत्नी सची ने भगवान विष्णु से मदद माँगी. भगवान विष्णु ने सची को सूती धागे से एक हाथ में पहने जाने वाला वयल बना कर दिया. इस वलय को भगवान विष्णु ने पवित्र वलय कहा. सची ने इस धागे को इंद्र की कलाई में बाँध दिया तथा इंद्र की सुरक्षा और सफलता की कामना की. इसके बाद अगले युद्द में इंद्र बलि नामक असुर को हारने में सफ़ल हुए और पुनः अमरावती पर अपना अधिकार कर लिया. यहाँ से इस पवित्र धागे का प्रचलन आरम्भ हुआ. इसके बाद युद्द में जाने के पहले अपने पति को औरतें यह धागा बांधती थीं. इस तरह यह त्योहार सिर्फ भाइयों बहनों तक ही सीमित नहीं रह गया.

राजा बलि और माँ लक्ष्मी :
भगवत पुराण और विष्णु पुराण के आधार पर यह माना जाता है कि जब भगवान विष्णु ने राजा बलि को हरा कर तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया, तो बलि ने भगवान विष्णु से उनके महल में रहने का आग्राह किया. भगवान विष्णु इस आग्रह को मान गये. हालाँकि भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी को भगवान विष्णु और बलि की मित्रता अच्छी नहीं लग रही थी, अतः उन्होंने भगवान विष्णु के साथ वैकुण्ठ जाने का निश्चय किया. इसके बाद माँ लक्ष्मी ने बलि को रक्षा धागा बाँध कर भाई बना लिया. इस पर बलि ने लक्ष्मी से मनचाहा उपहार मांगने के लिए कहा. इस पर माँ लक्ष्मी ने राजा बलि से कहा कि वह भगवान विष्णु को इस वचन से मुक्त करे कि भगवान विष्णु उसके महल मे रहेंगे. बलि ने ये बात मान ली और साथ ही माँ लक्ष्मी को अपनी बहन के रूप में भी स्वीकारा.

संतोषी माँ सम्बंधित मिथक :
भगवान विष्णु के दो पुत्र हुए शुभ और लाभ. इन दोनों भाइयों को एक बहन की कमी बहुत खलती थी, क्यों की बहन के बिना वे लोग रक्षाबंधन नहीं मना सकते थे. इन दोनों भाइयों ने भगवान गणेश से एक बहन की मांग की. कुछ समय के बाद भगवान नारद ने भी गणेश को पुत्री के विषय में कहा. इस पर भगवान गणेश राज़ी हुए और उन्होंने एक पुत्री की कामना की. भगवान गणेश की दो पत्नियों रिद्धि और सिद्धि, की दिव्य ज्योति से माँ संतोषी का अविर्भाव हुआ. इसके बाद माँ संतोषी के साथ शुभ लाभ रक्षाबंधन मना सके.

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जोर सोर से चल रही दीवली की तैयारी जाने शुभ मुहरत और पूजन विधि

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इस वर्ष दिवाली 4 नवंबर गुरुवार को मनाई जाएगी। दिवाली का पर्व कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष  की अमावस्या को  मनाया जाता है। इस पर्व के दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा होती है। भक्त लोग मां लक्ष्मी और श्री गणेश जी से शांति, तरक्की और समृद्धि का वरदान मांगते हैं। भगवान गणेश और माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए भक्त तन-मन-धन से पूजा करते हैं। माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी अपने भक्तो पर कृपा बरसाती हैं।

दिवाली का महत्व

दिवाली का पर्व लक्ष्मी जी को समर्पित है. इस दिन लक्ष्मी जी की आरती, स्तुति आदि की जाती है. मान्यता है कि ऐसा करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और धन से जुड़ी समस्याओं को दूर करती हैं. दिवाली का पर्व लक्ष्मी जी की पूजा के लिए सबसे उत्तम माना गया है. शुभ मुहूर्त और विधि पूर्वक पूजा करने से लक्ष्मी जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है.

दिवाली 2021

पंचांग के अनुसार दिवाली का पर्व कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है. हिंदू कैंलेडर के अनुसार इस वर्ष कार्तिक अमावस्या 4 नवंबर 2021 को है. इस दिन चंद्रमा का गोचर तुला राशि में होगा.

दिवाली 2021, शुभ मुहूर्त

दिवाली पर्व: 4 नवंबर, 2021, गुरुवार

अमावस्या तिथि का प्रारम्भ: 4 नवंबर 2021 को प्रात: 06:03 बजे से.

अमावस्या तिथि का समापन: 5 नवंबर 2021 को प्रात: 02:44 बजे तक.

लक्ष्मी पूजन मुहूर्त

4 नवंबर 2021, गुरुवार, शाम 06 बजकर 09 मिनट से रात्रि 08 बजकर 20 मिनट

अवधि: 1 घंटे 55 मिनट

प्रदोष काल: 17:34:09 से 20:10:27 तक

वृषभ काल: 18:10:29 से 20:06:20 तक

दिवाली की पूजा विधि

दिवाली की सफाई करने के बाद घर के हर कोने को साफ करने के बाद गंगाजल छिड़कें।

लकड़ी की चौकी पर लाल सूती कपड़ा बिछाएं और बीच में मुट्ठी भर अनाज रखें।

कलश को अनाज के बीच में रखें।

कलश में पानी भरकर एक सुपारी, गेंदे का फूल, एक सिक्का और कुछ चावल के दाने डाल दें।

कलश पर 5 आम के पत्ते गोलाकार आकार में रखें।

बीच में देवी लक्ष्मी की मूर्ति और कलश के दाहिनी ओर भगवान गणेश की मूर्ति रखें।

एक छोटी थाली लें और चावल के दानों का एक छोटा सा पहाड़ बनाएं, हल्दी से कमल का फूल बनाएं, कुछ सिक्के डालें और मूर्ति के सामने रखें।

इसके बाद अपने व्यापार/लेखा पुस्तक और अन्य धन/व्यवसाय से संबंधित वस्तुओं को मूर्ति के सामने रखें।

अब देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश को तिलक करें और दीपक जलाएं। इसके साथ ही कलश पर भी तिलक लगाएं।

अब भगवान गणेश और लक्ष्मी को फूल चढ़ाएं। इसके बाद पूजा के लिए अपनी हथेली में कुछ फूल रखें।

अपनी आंखें बंद करें और दिवाली पूजा मंत्र का पाठ करें।

हथेली में रखे फूल को भगवान गणेश और लक्ष्मी जी को चढ़ा दें।

लक्ष्मीजी की मूर्ति लें और उसे पानी से स्नान कराएं और उसके बाद पंचामृत से स्नान कराएं।

इसे फिर से पानी से स्नान कराएं, एक साफ कपड़े से पोछें और वापस रख दें।

मूर्ति पर हल्दी, कुमकुम और चावल डालें। माला को देवी के गले में लगाएं,अगरबत्ती जलाएं।

नारियल, सुपारी, पान का पत्ता माता को अर्पित करें।

देवी की मूर्ति के सामने कुछ फूल और सिक्के रखें।

थाली में दीया लें, पूजा की घंटी बजाएं और लक्ष्मी जी की आरती करें।

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धनतेरस का पर्व आज, बाजारों की चमक देखने लायक है , जोर सोर से होगी खरीदारी

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धनतेरस का पर्व मंगलवार को धूमधाम से मनाया जाएगा, जिसकी तैयारियां पूर्ण हो गई हैं। शुभ मुहूर्त में खरीदारी के लिए जहां लोगों ने कई योजनाएं बनाई हैं वहीं दुकानदारों ने भी ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए कमर कस ली है। मंगलवार को धनतेरस पर लोग दीपावली के लिए शुभ खरीदारी करेंगे। उधर, आकर्षक रोशनी और सामान से बाजार सज गए हैं। पर्व को लेकर लोगों और दुकानदारों में काफी उत्साह है।

कोविड के कारण दो साल बाद दीपावली पर्व पर बाजारों में उत्साह और तेजी दिख रही है। इससे कारोबारियों को काफी उम्मीद है। दीपवाली के लिए लोग ड्राई फ्रूट, गिफ्ट आईटम, मिठाइयां, कपड़े और इलेक्ट्रॉनिक सामान की खरीदारी कर रहे हैं।

ग्राहकों को आकर्षित करने दे रहे हैं लुभावने आफर

दीपावली, धनतेरस पर्व को लेकर व्यापारियों ने अपनी दुकानें सजा ली है। वहीं ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए दुकानदारों द्वारा तरह-तरह के लुभावने आफर भी ग्राहकों को दिए जा रहे हैं। इलेक्ट्रानिक सामग्री की खरीदी पर गिफ्ट दिया जा रहा है। तो अन्य सामग्री भी दुकानदारों ने आफर में रखी है।

धनतेरस के लिए सज गए बाजार धनतेरस पर सराफा, कपड़ा, बर्तन, टू व्हीलर शोरूम, इलेक्ट्रानिक की दुकानों पर जमकर खरीदी होगी। कोई नई बाईक खरीदेगा तो उसे उपहार दिया जाएगा। इसी प्रकार सोने-चांदी के सिक्के व प्रतिमाओं की भी जमकर खरीदी होगी।

शोरूम संचालक ने बताया कि दीपावाली से काफी उम्मीद है। लोगों को प्री-बुकिंग की सुविधा दी है, जिससे कारोबार में तेजी आने की उम्मीद है। रघुनाथ बाजार में ड्राई फ्रूट विक्रेता रोहित शर्मा ने बताया कि मार्केट में थोड़ी तेजी आई है। ऑनलाइन बुकिंग के तरफ लोगों का रूझान ज्यादा है। व्हट्सएप के माध्यम से ऑनलाइन बुकिंग ली जा रही है।

अब कोरोना महामारी का असर नहीं के बराबर है। इसके चलते लोग त्योहार मना रहे हैं। बाजारों में भीड़ है। व्यापारियों को मुताबिक लोग खरीदारी की तैयारियां कर रहे हैं। पिछले साल महामारी का असर था। इसके पहले नवरात्रि पर भी लोगों ने खरीदारी की। बाजार में पर्व को लेकर काफी चहल-पहल है। इससे अभी भी संक्रमण फैलने का डर सता रहा है। लोगों को अभी भी कोरोना गाइडलाइन का पालन करना चाहिए, ताकि इस वायरस से बचे रहें।

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