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महाराष्ट्र चुनाव: एनसीपी में शामिल हुए पूर्व भाजपा सांसद, नए गठबंधन से बढ़ी राजनीति की गर्मी

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डिजिटल भारत I महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों की सुगबुगाहट के बीच राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। प्रमुख पार्टियां अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर रही हैं और गठबंधन की रणनीतियों को अंतिम रूप दे रही हैं। अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने पूर्व भाजपा सांसदों को अपने पाले में लाकर इस चुनावी जंग को और रोमांचक बना दिया है।

प्रताप चिखलीकर और संजय पाटिल का एनसीपी से जुड़ना
नांदेड़ से लोकसभा चुनाव हारने वाले पूर्व भाजपा सांसद प्रताप चिखलीकर को अब एनसीपी ने लोहा विधानसभा सीट से उम्मीदवार घोषित किया है। इसी प्रकार, सांगली के पूर्व भाजपा सांसद संजय काका पाटिल, जिन्होंने आम चुनाव में हार का सामना किया था, एनसीपी में शामिल हो गए हैं और उन्हें तासगांव-कवठे महांकाल विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया गया है। संजय पाटिल का मुकाबला एनसीपी (एसपी) के उम्मीदवार रोहित पाटिल से होगा, जो दिवंगत नेता आर. आर. पाटिल के पुत्र हैं। यह मुकाबला सांगली जिले के तासगांव-कवठे महांकाल निर्वाचन क्षेत्र में होगा, जिससे यह सीट बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

एनसीपी की पहली सूची
अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी ने एक दिन पहले ही 38 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की थी। इस सूची में पार्टी के वरिष्ठ नेता और प्रमुख नाम शामिल हैं, जैसे कि अजित पवार खुद बारामती सीट से चुनाव लड़ेंगे, छगन भुजबल येवला से, और दिलीप वाल्से पाटील आंबेगाव से उम्मीदवार होंगे। पार्टी ने धनंजय मुडे को परली और नरहरी झिरवाल को दिंडोरी सीट से उम्मीदवार बनाया है। एनसीपी का यह कदम दर्शाता है कि पार्टी आगामी चुनावों में वरिष्ठ नेताओं के अनुभव और कद का भरपूर फायदा उठाने की कोशिश में है।

गठबंधन की स्थिति
गुरुवार को देवेंद्र फडणवीस ने घोषणा की कि महायुति (भाजपा, शिवसेना, और एनसीपी) ने राज्य की 288 विधानसभा सीटों में से 278 सीटों के बंटवारे को अंतिम रूप दे दिया है। इस गठबंधन में भाजपा ने अब तक 99 सीटों पर, शिवसेना ने 40 सीटों पर, और अजित पवार की एनसीपी ने 45 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। भाजपा की दूसरी सूची भी शुक्रवार को जारी की जाएगी।

शिवसेना की सूची
एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने 45 उम्मीदवारों की सूची जारी की थी। सीएम एकनाथ शिंदे एक बार फिर से कोपरी पाचपाखाड़ी सीट से चुनाव लड़ेंगे, जहाँ वे पहले भी जीत हासिल कर चुके हैं। पार्टी ने पैठण से विलास संदिपान भूमरे को उम्मीदवार बनाया है। इस सूची में मालेगांव, चांदीवली, और बुलढाणा जैसी चर्चित विधानसभा सीटों पर भी प्रत्याशियों के नाम शामिल हैं।

राज्य का राजनीतिक परिदृश्य
महाराष्ट्र की राजनीति इस बार बेहद दिलचस्प मोड़ पर है, जहाँ कई पुराने खिलाड़ी अपनी नई भूमिकाओं में हैं और गठबंधन की राजनीति पूरे जोश में है। भाजपा, शिवसेना, और एनसीपी का महायुति गठबंधन जहां अपनी ताकत बढ़ाने में लगा है, वहीं विपक्षी पार्टियां भी अपनी रणनीतियों को धार देने में जुटी हैं। यह चुनाव इसलिए भी अहम है क्योंकि इसमें कई बड़े चेहरे एक दूसरे के खिलाफ मैदान में उतरने वाले हैं।

संजय पाटिल और रोहित पाटिल के बीच का मुकाबला विशेष रूप से चर्चा में है, क्योंकि यह एक राजनीतिक परिवारों की जंग के रूप में देखा जा रहा है। रोहित पाटिल अपने दिवंगत पिता आर. आर. पाटिल की विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे, जबकि संजय पाटिल भाजपा छोड़कर एनसीपी का हिस्सा बनने के बाद अपनी नई राजनीतिक पारी शुरू करने की तैयारी में हैं।

महाराष्ट्र का चुनावी इतिहास
महाराष्ट्र का चुनावी इतिहास भी इस बार के चुनाव को खास बनाता है। राज्य में हमेशा से कांग्रेस और भाजपा के बीच कड़ा मुकाबला रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में एनसीपी और शिवसेना ने भी अपनी मजबूत स्थिति बनाई है। शिवसेना और भाजपा का गठबंधन कई वर्षों तक मजबूत रहा, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में हुए राजनीतिक फेरबदल ने राज्य की राजनीति को नया रूप दिया है।

इस बार के चुनावों में देखना दिलचस्प होगा कि महायुति गठबंधन और विपक्षी पार्टियों के बीच किस तरह का मुकाबला होता है। 20 नवंबर को होने वाले मतदान के बाद 23 नवंबर को नतीजों का ऐलान किया जाएगा, जो राज्य के भविष्य की दिशा तय करेगा।

एनसीपी का बढ़ता प्रभाव
एनसीपी की रणनीति इस चुनाव में स्पष्ट रूप से दिख रही है। पार्टी ने कई ऐसे नेताओं को टिकट दिया है जो या तो पहले भाजपा में थे या अन्य पार्टियों के मजबूत उम्मीदवार रहे हैं। यह कदम पार्टी की उस नीति का हिस्सा है जिसके तहत वह विभिन्न राजनीतिक क्षेत्रों से बड़े नामों को अपने साथ जोड़ रही है। इसके अलावा, अजित पवार का नेतृत्व और पार्टी में उनकी पकड़ भी एनसीपी को मजबूती प्रदान कर रही है।

शिवसेना और भाजपा की चुनौतियाँ
भाजपा और शिवसेना के सामने इस बार की सबसे बड़ी चुनौती है कि वे कैसे अपने गठबंधन को स्थिर रखकर मतदाताओं का समर्थन हासिल कर पाते हैं। पिछले कुछ वर्षों में शिवसेना और भाजपा के बीच हुए मतभेदों ने राज्य की राजनीति में अस्थिरता पैदा की थी, लेकिन अब दोनों पार्टियाँ एक साथ आकर अपने पुराने मतदाताओं को साधने की कोशिश में हैं।

एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना ने 45 उम्मीदवारों की सूची जारी की है, जिसमें कई महत्वपूर्ण सीटें शामिल हैं। यह दिखाता है कि पार्टी का फोकस इस बार ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों पर है।

चुनावी माहौल
चुनावी माहौल इस बार बेहद गर्म है, क्योंकि महाराष्ट्र की राजनीति का भविष्य इस चुनाव पर काफी हद तक निर्भर करेगा। बड़े राजनीतिक दलों के अलावा छोटे दल भी इस बार महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार का चुनाव त्रिकोणीय हो सकता है, जिसमें एनसीपी, भाजपा-शिवसेना गठबंधन, और कांग्रेस एक दूसरे को कड़ी टक्कर देंगे।

राज्य के विभिन्न हिस्सों में चुनाव प्रचार जोर-शोर से चल रहा है। नेताओं की रैलियाँ, रोड शो, और जनसभाएँ लगातार हो रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में किसान और बेरोजगारी जैसे मुद्दे प्रमुख हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में विकास और आधारभूत ढाँचे से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हो रही है।

नतीजों पर नज़र
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे 23 नवंबर को घोषित होंगे, और यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि महायुति गठबंधन किस हद तक अपनी स्थिति मजबूत करने में सफल होता है। वहीं, विपक्षी दलों के पास भी अपनी स्थिति सुधारने का मौका है।

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यमुना में प्रदूषण का स्तर बढ़ा, भाजपा ने AAP सरकार पर लगाए सफाई अभियान में विफलता के आरोप

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दिल्ली में यमुना नदी का प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन गया है, और इसने एक बार फिर सियासी जंग छेड़ दी है। मानसून के खत्म होने के बाद, यमुना नदी में जहरीला झाग फैलता हुआ दिखाई दे रहा है, जिससे आसपास के इलाकों में पानी की गुणवत्ता और स्वास्थ्य को लेकर चिंता बढ़ गई है। यह स्थिति विशेष रूप से ओखला बैराज के पास अधिक गंभीर हो गई है, जहां नदी में मोटी झाग की चादर तैर रही है, और यह प्रदूषण यमुना की पानी की सतह को पूरी तरह से ढक चुका है।

यमुना नदी में प्रदूषण का कारण
यमुना नदी के प्रदूषण का मुख्य कारण दिल्ली, हरियाणा, और उत्तर प्रदेश के आसपास के इलाकों से बहकर आने वाला सीवेज और औद्योगिक कचरा है। यमुना में गिरने वाला untreated सीवेज (असंसाधित गंदा पानी) और औद्योगिक अपशिष्ट यमुना की जल गुणवत्ता को अत्यधिक हानिकारक बना देता है। इसमें सबसे बड़ा योगदान डिटर्जेंट और औद्योगिक रसायनों का होता है, जो पानी में झाग बनाते हैं और इस झाग को जहरीला बना देते हैं। साथ ही, यमुना के पानी में जहरीले रसायन और हानिकारक जैविक तत्व घुल जाते हैं, जो इसे पीने या किसी अन्य उपयोग के लायक नहीं छोड़ते।
राजनीतिक बहस: AAP vs BJP
यमुना नदी की सफाई और प्रदूषण नियंत्रण को लेकर भारतीय जनता पार्टी (BJP) और आम आदमी पार्टी (AAP) के बीच लगातार आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति जारी है। भाजपा के नेताओं का कहना है कि अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली AAP सरकार ने यमुना की सफाई के नाम पर सिर्फ दिखावे और प्रचार किया है, जबकि वास्तव में नदी की सफाई के लिए कुछ ठोस कदम नहीं उठाए गए। भाजपा के प्रवक्ता शाहजाद पूनावाला और प्रदीप भंडारी ने AAP पर आरोप लगाते हुए कहा कि यमुना की सफाई के लिए आए फंड का अधिकांश हिस्सा विज्ञापनों पर खर्च कर दिया गया है, जबकि नदी की हालत बद से बदतर होती जा रही है​
भाजपा का यह भी आरोप है कि AAP सरकार ने इस मुद्दे पर अपना ध्यान केंद्रित करने के बजाय अन्य राज्यों, विशेषकर उत्तर प्रदेश और हरियाणा, पर दोषारोपण किया है। उनका मानना है कि दिल्ली सरकार का यह रवैया जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है, और वह प्रदूषण से प्रभावित होने वाले त्योहारों जैसे छठ पूजा के दौरान लोगों की सुरक्षा को लेकर चिंतित नहीं है।
AAP का बचाव
वहीं, आम आदमी पार्टी का पक्ष है कि यमुना के प्रदूषण के लिए हरियाणा और उत्तर प्रदेश से आने वाला सीवेज जिम्मेदार है। AAP का दावा है कि दिल्ली सरकार यमुना की सफाई के लिए निरंतर काम कर रही है और 2025 तक इसे पूरी तरह से साफ करने का लक्ष्य रखा गया है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी इस दिशा में कई परियोजनाओं की शुरुआत की है, जिसमें यमुना नदी के किनारे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की संख्या बढ़ाने और अवैध रूप से गिरने वाले कचरे पर नियंत्रण शामिल है।
AAP यह भी कहती है कि केंद्र सरकार और भाजपा शासित राज्यों ने दिल्ली को उचित मदद नहीं दी है, जिससे सफाई अभियान में बाधा आ रही है। इसके बावजूद, दिल्ली सरकार ने कई बड़ी परियोजनाओं पर काम किया है जो आने वाले समय में यमुना की स्थिति को सुधार सकती हैं।
यमुना में झाग का प्रभाव
यमुना नदी में फैला यह झाग सिर्फ दृश्य प्रदूषण नहीं है, बल्कि यह कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण भी बनता है। जब यह झाग त्योहारों जैसे छठ पूजा के दौरान पानी में जाने वाले लोगों के संपर्क में आता है, तो उन्हें त्वचा संबंधी रोग और अन्य बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा, यह झाग पानी के जैविक संतुलन को भी नष्ट कर देता है, जिससे नदी में मछलियों और अन्य जलीय जीवों के जीवन पर भी खतरा मंडराता है।
यमुना का प्रदूषण न केवल जल स्रोतों को प्रभावित करता है, बल्कि यह दिल्ली की हवा की गुणवत्ता को भी खराब करता है। यह नदी से उठने वाले रसायनों के कारण आसपास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ा सकता है, जिससे सांस संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
सरकार की पहल और चुनौतियाँ
दिल्ली सरकार ने यमुना को साफ करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जिसमें नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स का निर्माण और पुराने ट्रीटमेंट प्लांट्स की क्षमता को बढ़ाना शामिल है। इसके अलावा, नदी के किनारे अवैध निर्माणों को हटाने और नदी में गिरने वाले कचरे पर निगरानी रखने के लिए भी कदम उठाए जा रहे हैं।
हालांकि, इन कदमों को अमल में लाना एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि यमुना में हरियाणा और उत्तर प्रदेश से बहकर आने वाला गंदा पानी भी एक बड़ी समस्या है। इस गंदे पानी को रोकने के लिए तीनों राज्यों को मिलकर काम करना होगा, लेकिन इसमें राजनीतिक और प्रशासनिक अड़चने लगातार बनी रहती हैं।
जनता की भूमिका और जागरूकता
यमुना की सफाई और प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए केवल सरकार पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है। इसके लिए दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों की जनता को भी जागरूक होना पड़ेगा। नदी में कचरा फेंकने और प्रदूषण बढ़ाने वाली गतिविधियों से दूर रहना होगा, साथ ही पानी के सही उपयोग और उसकी बचत के लिए भी प्रयास करना होगा।
छठ पूजा जैसे धार्मिक आयोजनों के दौरान भी लोगों को नदी के पानी को और अधिक प्रदूषित करने से बचना चाहिए और सरकार द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करना चाहिए। अगर जनता जागरूक होकर अपना योगदान देगी, तो यमुना की सफाई में तेजी आ सकती है।
निष्कर्ष
यमुना नदी का प्रदूषण एक गंभीर समस्या है, जो दिल्ली और आसपास के इलाकों के पर्यावरण और स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाल रहा है। इस मुद्दे पर राजनीतिक बहस और दोषारोपण के बावजूद, यह जरूरी है कि सभी पक्ष मिलकर समाधान निकालें। सरकार, जनता, और संबंधित राज्यों को मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि यमुना को साफ और सुरक्षित बनाया जा सके।

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मप्र में भाजपा के नया प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी के लिए खींच तान जारी

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डिजिटल भारत l संगठन चुनाव की प्रकिया शुरू होते ही मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की अंदरूनी सियासत शुरू हो गई है। प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए दावेदारों ने जोर-आजमाइश भी शुरू कर दी है। मौजूदा अध्यक्ष राकेश सिंह ही पार्टी के अगले प्रदेश अध्यक्ष होंगे या कोई नया चेहरा प्रदेश की कमान संभालेगा, इसे लेकर कयासबाजी भी खूब चल रही है।

हाल ही में संसद सत्र के दौरान चुनावी राज्यों के सांसदों से मिले फीडबैक के बाद चुनावी राज्यों में बड़े पैमाने पर बदलाव के कयास लगाए जा रहे हैं। गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा द्वारा मप्र दौरे के दौरान भी प्रदेश में समन्वय व प्रबंधन पर सवाल खड़े किए गए थे। शाह ने तो बेहतर समन्वय व प्रबंधन पर जोर देते हुए बदलाव की बात कही गई थी। स्वयं अमित शाह और नड्डा ने भी इस बात को स्वीकार किया था कि मप्र में सरकार और संगठन के बीच बेहतर समन्वय नहीं है। वहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता ने कहा कि राज्य में रणनीति के मुताबिक काम किया जाएगा और जरूरी हुआ तो वहां बदलाव भी किया जाएगा। इससे पहले भाजपा के अधिकांश सांसदों ने गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी, जिसमें प्रदेश संगठन में बदलाव को लेकर चर्चा हुई थी।
मप्र में भाजपा मिशन 2023 की तैयारियों की जुटी है। अब जमीनी पड़ताल और हकीकत जानने के लिए भाजपा आलाकमान ने राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिव प्रकाश और क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल को मैदान में उतारा है। संघ से जुड़े भाजपा के दोनों बड़े पदाधिकारी ने जमीनी स्तर पर पार्टी कार्यकर्ताओं से फीडबैक ले रहे हैं। विधानसभा चुनाव को देखते हुए पार्टी के कार्यकर्ताओं से अलग-अलग जिलों में जाकर नेताओं के नामों पर चर्चा किया है। वहीं आलाकमान के कराए डबल लेयर सर्वे ने प्रदेश भाजपा के पदाधिकारियों की नींद उड़ा दी है। प्रदेश के कई जिलों के दौरे करने के बाद क्षेत्रीय संगठन महामंत्री जामवाल ने पार्टी आलाकमान को अपनी फीडबैक रिपोर्ट सौंपी हैं। मप्र में पार्टी संगठन में कई बड़े चेहरे बदले जा सकते हैं। दोनों दिग्गज पदाधिकारियों के रिपोर्ट पर ही बड़े बदलाव होंगे।

राकेश सिंह – राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से नजदीकियों के चलते संभावना है कि राकेश सिंह को ही दोबारा मौका मिल जाए। मोदी कैबिनेट में मंत्री पद नहीं देने से उम्मीद है कि उन्हें संगठन में ही रखा जाए।

कैलाश विजयवर्गीय – राष्ट्रीय महासचिव हैं। मंत्रीपद छोड़कर संगठन में गए थे। पश्चिम बंगाल के प्रभारी रहे। बेहतर परिणाम भी दिए। हाईकमान के भी करीबी हैं।

प्रभात झा – पहले प्रदेशाध्यक्ष रह चुके हैं। संगठन में काम करने का बेहतर अनुभव है। प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए सर्वाधिक दौरे किए। फिलहाल राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। संघ नेताओं के करीबी होने का फायदा मिल सकता है।

नरोत्तम मिश्रा – लंबे समय तक प्रदेश में मंत्री रहे। पहले भी प्रदेशाध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष पद के भी दावेदार थे। हाईकमान की नजदीकियों का लाभ मिल सकता है।

भूपेंद्र सिंह – पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ओर से पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह को प्रदेशाध्यक्ष का दावेदार माना जा रहा है। संगठन के कई पदों पर रह चुके हैं।

वीडी शर्मा – संघ पृष्ठभूमि के चलते सीधे लोकसभा चुनाव का टिकट मिला और सांसद बने। संघ की खास पसंद माने जाते हैं। फिलहाल प्रदेश संगठन में भी महामंत्री हैं।

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हिमाचल मैं 36 सीटों से आगे, गुजरात मैं भाजपा ने रचा इतिहास 152 रुझानों में गुजरात में फिर कमल, अधर में हिमाचल, मैनपुरी में डिंपल

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डिजिटल भारत l हिमाचल में बीजेपी से आगे निकली कांग्रेस

गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के आज नतीजे आ रहे हैं. वोटों की गिनती सुबह 8 बजे से जारी है. हिमाचल में 12 नवंबर को एक चरण में मतदान हुआ था. तो वहीं, गुजरात में 1 और 5 दिसंबर को दो चरणों में मतदान हुआ था. गुजरात में ज्यातादर एग्जिट पोल में जहां बीजेपी की सरकार बनती दिख रही है. तो हिमाचल में कुछ एग्जिट पोल में कांग्रेस की सरकार बनती नजर रही है, तो कुछ बीजेपी और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर दिखा रहे हैंl

अभी तक के रुझान

गुजरात में भाजपा ऐतिहासिक जीत दर्ज करती दिखाई दे रही है। काउंटिंग के रुझानों के मुताबिक भाजपा 182 में से 156 सीटों पर आगे है और एक पर वह जीत चुकी है। अगर ये रुझान नतीजों में तब्दील होते हैं, तो भाजपा 1985 में कांग्रेस की सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड तोड़ देगी।

गुजरात में 1985 के विधानसभा चुनाव में माधव सिंह सोलंकी की अगुआई में कांग्रेस ने 149 सीटें जीती थीं। भाजपा 150 का आंकड़ा पार करने पर अपनी जीत का नया बेंचमार्क तो बनाएगी ही, साथ ही साथ कांग्रेस की जीत का रिकॉर्ड भी तोड़ देगी।

गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के आज नतीजे आ रहे हैं

सुबह 8 बजे से वोटों की गिनती जारी है. रुझानों में गुजरात में बीजेपी को बड़ी बढ़त मिलती दिख रही है. तो वहीं, हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी में कड़ी टक्कर चल रही है. यहां कभी बीजेपी आगे हो रही है तो कभी कांग्रेस आगे निकल जा रही है. जबकि मैनपुरी लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में सपा उम्मीदवार डिंपल यादव आगे चल रही हैं. यूपी की रामपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव में भी सपा आगे चल रही हैl

बीजेपी के सामने जहां गुजरात और हिमाचल के अपना किला बचाने की चुनौती है, तो कांग्रेस ने चुनाव में दोनों राज्यों की सत्ता से बीजेपी को बेदखल करने के लिए पूरी कोशिश लगाई. वहीं, आप के सामने खुद को साबित करने की चुनौती हैl

हिमाचल प्रदेश और गुजरात के अलावा यूपी की मैनपुरी लोकसभा सीट और 5 राज्यों की 6 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे भी आज आ रहे हैं. वोटों की गिनती भी शुरू हो गई है. मैनपुरी सीट सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद खाली हुई है. इसके अलावा जिन विधानसभा सीटों के नतीजे आएंगे उनमें उत्तर प्रदेश की रामपुर और खतौली सीट, ओडिशा की पद्मपुर सीट, राजस्थान की सरदारशहर सीट, बिहार की कुढ़नी और छत्तीसगढ़ की भानुप्रतापपुर सीट शामिल है. रामपुर सीट सपा नेता आजम खान की सदस्यता रद्द होने की वजह से खाली हुई हैl

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अचानक पीएम मोदी के पार्टी ऑफिस में आने से चोके व भावुक हुए कार्यकर्ता, रणनीति पर की चर्चा

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डिजिटल भारत l गुजरात में भाजपा के चुनाव अभियान की कमान अब पीएम मोदी ने संभाल ली है। रविवार को पीएम ने जोरदार प्रचार अभियान चलाया, उन्होंने एक दिन में चार रैलियों को संबोधित किया। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधीनगर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मुख्यालय ‘कमलम’ में पार्टी कार्यकर्ताओं और सहयोगियों के साथ समय बिताया। पीएम मोदी के अचानक पार्टी ऑफिस आने और उनको सामने बैठा देख कार्यकर्ता बेहद चकित थे।
पीएम मोदी ने कार्यकर्ताओं के साथ किसी कमरे समय नहीं बिताया बल्कि खुले क्षेत्र को चुना। यहां वह सामने कुर्सी पर बैठ गए और भाजपा कार्यकर्ता बेंच लेकर उनके आसपास बैठ गए। हालांकि रात थी तो लोग कम ही थे। इसलिए देर रात पार्टी कार्यालय में काम कर रहे चंद लोगों ने ही प्रधानमंत्री का स्वागत किया। हालांकि पीएम मोदी ने कहा कि पार्टी कार्यालय में मौजूद सभी लोगों को बुलाया जाए, इसके बाद सभी को बुला लिया और उन्होंने सभी से बातें की।


एक सूत्र ने एएनआई को बताया कि कुछ युवा कार्यकर्ता लंबे समय से भाजपा से जुड़े हुए हैं, वे वास्तव में यह देखकर प्रभावित हुए कि प्रधानमंत्री ने पार्टी के अधिकांश पुराने कार्यकर्ताओं को उनके नाम से संबोधित किया और यहां तक कि उनके साथ मजाक भी किया। साथ ही उन्होंने वर्षों पहले की यादों को ताजा भी किया।
पीएम मोदी ने पार्टी कार्यालय में 40 मिनट से अधिक समय बिताया, जहां उनके साथ गुजरात भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल, गुजरात राज्य मंत्री हर्ष सांघवी और पार्टी महासचिव प्रदीप सिंह वाघेला सहित अन्य लोग थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी गुजरात में हैं और रविवार को उन्होंने वेरावल, धोरारजी, अमरेली और बोटाड में रैलियों को संबोधित किया था।

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