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यमुना में प्रदूषण का स्तर बढ़ा, भाजपा ने AAP सरकार पर लगाए सफाई अभियान में विफलता के आरोप

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दिल्ली में यमुना नदी का प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन गया है, और इसने एक बार फिर सियासी जंग छेड़ दी है। मानसून के खत्म होने के बाद, यमुना नदी में जहरीला झाग फैलता हुआ दिखाई दे रहा है, जिससे आसपास के इलाकों में पानी की गुणवत्ता और स्वास्थ्य को लेकर चिंता बढ़ गई है। यह स्थिति विशेष रूप से ओखला बैराज के पास अधिक गंभीर हो गई है, जहां नदी में मोटी झाग की चादर तैर रही है, और यह प्रदूषण यमुना की पानी की सतह को पूरी तरह से ढक चुका है।

यमुना नदी में प्रदूषण का कारण
यमुना नदी के प्रदूषण का मुख्य कारण दिल्ली, हरियाणा, और उत्तर प्रदेश के आसपास के इलाकों से बहकर आने वाला सीवेज और औद्योगिक कचरा है। यमुना में गिरने वाला untreated सीवेज (असंसाधित गंदा पानी) और औद्योगिक अपशिष्ट यमुना की जल गुणवत्ता को अत्यधिक हानिकारक बना देता है। इसमें सबसे बड़ा योगदान डिटर्जेंट और औद्योगिक रसायनों का होता है, जो पानी में झाग बनाते हैं और इस झाग को जहरीला बना देते हैं। साथ ही, यमुना के पानी में जहरीले रसायन और हानिकारक जैविक तत्व घुल जाते हैं, जो इसे पीने या किसी अन्य उपयोग के लायक नहीं छोड़ते।
राजनीतिक बहस: AAP vs BJP
यमुना नदी की सफाई और प्रदूषण नियंत्रण को लेकर भारतीय जनता पार्टी (BJP) और आम आदमी पार्टी (AAP) के बीच लगातार आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति जारी है। भाजपा के नेताओं का कहना है कि अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली AAP सरकार ने यमुना की सफाई के नाम पर सिर्फ दिखावे और प्रचार किया है, जबकि वास्तव में नदी की सफाई के लिए कुछ ठोस कदम नहीं उठाए गए। भाजपा के प्रवक्ता शाहजाद पूनावाला और प्रदीप भंडारी ने AAP पर आरोप लगाते हुए कहा कि यमुना की सफाई के लिए आए फंड का अधिकांश हिस्सा विज्ञापनों पर खर्च कर दिया गया है, जबकि नदी की हालत बद से बदतर होती जा रही है​
भाजपा का यह भी आरोप है कि AAP सरकार ने इस मुद्दे पर अपना ध्यान केंद्रित करने के बजाय अन्य राज्यों, विशेषकर उत्तर प्रदेश और हरियाणा, पर दोषारोपण किया है। उनका मानना है कि दिल्ली सरकार का यह रवैया जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है, और वह प्रदूषण से प्रभावित होने वाले त्योहारों जैसे छठ पूजा के दौरान लोगों की सुरक्षा को लेकर चिंतित नहीं है।
AAP का बचाव
वहीं, आम आदमी पार्टी का पक्ष है कि यमुना के प्रदूषण के लिए हरियाणा और उत्तर प्रदेश से आने वाला सीवेज जिम्मेदार है। AAP का दावा है कि दिल्ली सरकार यमुना की सफाई के लिए निरंतर काम कर रही है और 2025 तक इसे पूरी तरह से साफ करने का लक्ष्य रखा गया है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी इस दिशा में कई परियोजनाओं की शुरुआत की है, जिसमें यमुना नदी के किनारे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की संख्या बढ़ाने और अवैध रूप से गिरने वाले कचरे पर नियंत्रण शामिल है।
AAP यह भी कहती है कि केंद्र सरकार और भाजपा शासित राज्यों ने दिल्ली को उचित मदद नहीं दी है, जिससे सफाई अभियान में बाधा आ रही है। इसके बावजूद, दिल्ली सरकार ने कई बड़ी परियोजनाओं पर काम किया है जो आने वाले समय में यमुना की स्थिति को सुधार सकती हैं।
यमुना में झाग का प्रभाव
यमुना नदी में फैला यह झाग सिर्फ दृश्य प्रदूषण नहीं है, बल्कि यह कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण भी बनता है। जब यह झाग त्योहारों जैसे छठ पूजा के दौरान पानी में जाने वाले लोगों के संपर्क में आता है, तो उन्हें त्वचा संबंधी रोग और अन्य बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा, यह झाग पानी के जैविक संतुलन को भी नष्ट कर देता है, जिससे नदी में मछलियों और अन्य जलीय जीवों के जीवन पर भी खतरा मंडराता है।
यमुना का प्रदूषण न केवल जल स्रोतों को प्रभावित करता है, बल्कि यह दिल्ली की हवा की गुणवत्ता को भी खराब करता है। यह नदी से उठने वाले रसायनों के कारण आसपास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ा सकता है, जिससे सांस संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
सरकार की पहल और चुनौतियाँ
दिल्ली सरकार ने यमुना को साफ करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जिसमें नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स का निर्माण और पुराने ट्रीटमेंट प्लांट्स की क्षमता को बढ़ाना शामिल है। इसके अलावा, नदी के किनारे अवैध निर्माणों को हटाने और नदी में गिरने वाले कचरे पर निगरानी रखने के लिए भी कदम उठाए जा रहे हैं।
हालांकि, इन कदमों को अमल में लाना एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि यमुना में हरियाणा और उत्तर प्रदेश से बहकर आने वाला गंदा पानी भी एक बड़ी समस्या है। इस गंदे पानी को रोकने के लिए तीनों राज्यों को मिलकर काम करना होगा, लेकिन इसमें राजनीतिक और प्रशासनिक अड़चने लगातार बनी रहती हैं।
जनता की भूमिका और जागरूकता
यमुना की सफाई और प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए केवल सरकार पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है। इसके लिए दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों की जनता को भी जागरूक होना पड़ेगा। नदी में कचरा फेंकने और प्रदूषण बढ़ाने वाली गतिविधियों से दूर रहना होगा, साथ ही पानी के सही उपयोग और उसकी बचत के लिए भी प्रयास करना होगा।
छठ पूजा जैसे धार्मिक आयोजनों के दौरान भी लोगों को नदी के पानी को और अधिक प्रदूषित करने से बचना चाहिए और सरकार द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करना चाहिए। अगर जनता जागरूक होकर अपना योगदान देगी, तो यमुना की सफाई में तेजी आ सकती है।
निष्कर्ष
यमुना नदी का प्रदूषण एक गंभीर समस्या है, जो दिल्ली और आसपास के इलाकों के पर्यावरण और स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाल रहा है। इस मुद्दे पर राजनीतिक बहस और दोषारोपण के बावजूद, यह जरूरी है कि सभी पक्ष मिलकर समाधान निकालें। सरकार, जनता, और संबंधित राज्यों को मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि यमुना को साफ और सुरक्षित बनाया जा सके।

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क्यों नहीं निपट रहा दिल्ली प्रदूषण का केस : सुप्रीम कोर्ट

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डिजिटल भारत l पंजाब के एडवोकेट जनरल गुरमिंदर सिंह ने पीठ को बताया, बीते साल से पराली जलाने के मामलों में 40 फीसदी कमी आई है। इस पर पीठ ने कहा, आप राजनीति करना बंद करें। हर समय राजनीतिक लड़ाई नहीं हो सकती। हम नहीं जानते कि आप कैसे रोक सकते हैं, यह आपका काम है। दिल्ली-एनसीआर में दमघोंटू हवा से आठवें दिन भी हालात बदतर होने पर सुप्रीम कोर्ट ने दोटूक कहा कि हर हाल में पराली जलाना तत्काल बंद हो, लोगों को यूं मरने नहीं दे सकते। शीर्ष अदालत ने खासतौर पर पंजाब से कहा, राजनीति बंद कर जरूरी कदम उठाएं। साथ ही, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली सरकारों को एक-दूसरे पर दोष मढ़ने से बचने और पराली जलाने पर तत्काल अंकुश लगाने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने कहा, यदि हमने अपना बुलडोजर चलाना शुरू किया, तो फिर रुकेंगे नहीं।
प्रसिद्ध पर्यावरणविद् एमसी मेहता ने 1984-85 में, दिल्ली में वाहनों के प्रदूषण, ताज महल के जीर्ण-शीर्ण संगमरमर और गंगा-यमुना नदी में प्रदूषण से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट में कई जनहित याचिकाएं दायर की थी. जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा, दिल्लीवासी साल-दर-साल स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं क्योंकि हम इसका समाधान नहीं ढूंढ़ पा रहे हैं। इस पर तत्काल ध्यान देने व अदालती निगरानी की जरूरत है, भले ही मामले में सुधार हो या नहीं। जस्टिस कौल ने बताया, उन्होंने खुद पंजाब में सड़क के दोनों ओर पराली जलते देखी है। उन्होंने कहा, यह पूरी तरह से लोगों के स्वास्थ्य की हत्या है मामले अभी भी अदालतों में लंबित हैं. राजधानी के आसपास प्रदूषण के व्यापक मुद्दों से निपटने के लिए इन मामलों की प्रकृति भी काफी हद तक बदल गई है. समय-समय पर इनमें नए मुद्दे जोड़े जाते रहे हैं. उदाहरण के लिए, दिल्ली में स्मॉग की हालिया समस्या को मौजूदा वाहन प्रदूषण मामलों में जोड़ा गया. हालाँकि अपनी पिछली सुनवाई में, सुप्रीम कोर्ट ने कोई नीतिगत उपाय करने का आदेश नहीं दिया, लेकिन इससे पहले वो ऐसा करता रहा है. कभी-कभी ये उपाय कठोर रहे हैं. जैसे साल 1998 में अदालत ने आदेश दिया कि डीजल पर चलने वाले सार्वजनिक परिवहन के वाहनों का पूरा बेड़ा, जिसमें करीब 100,000 वाहन थे, उन्हें 2001 तक सीएनजी में बदला जाए. सरकार की ओर से इस आदेश का कड़ा विरोध किए जाने के बाद भी अदालत अपने आदेश से पीछे नहीं हटी. इस कदम की वैज्ञानिक प्रभावकारिता या व्यावहारिकता पर विवाद था.

अदालत ने इंफ्रास्ट्रक्टचर परियोजनाओं की भी देखरेख की है. अदालत ने 2000 के दशक की शुरुआत में यातायात को कम करने और प्रदूषण को कम करने के लिए केंद्र सरकार को दिल्ली के चारों ओर दो एक्सप्रेस वे बनाने का आदेश दिया. बाद में सालों में उसने इसकी प्रगति की निगरानी भी की. कई बार तो सुप्रीम कोर्ट अपने ही फैसले से पलट गया है. उदाहरण के लिए 2019 में अदालत ने पराली जलाने के लिए किसानों को फटकार लगाई, जो प्रदूषण बढ़ाने में सहायक है. अदालत ने आदेश दिया कि जो कोई भी ऐसा करेगा उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. हालांकि इसके ठीक दो दिन बाद अदालत ने कहा कि किसानों को दंडित करना अंतिम समाधान नहीं होगा. अदालत ने कहा कि कई किसानों को मजबूरी में पराली जलानी पड़ती है. अदालत ने सरकार को इन किसानों को सहायता देने के लिए कहा. सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों पर विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं. उदाहरण के लिए, नवंबर 2019 में, अदालत ने केंद्र सरकार को राजधानी में स्मॉग टावर लगाने का निर्देश दिया. ये स्मॉग टावर बड़े पैमाने पर वायु शोधक की तरह काम करते हैं. कई विशेषज्ञों ने बीबीसी को बताया कि स्मॉग-टावर वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में वैज्ञानिक रूप से सक्षम नहीं हैं. इनमें से अधिकांश आदेश पर्यावरण प्रदूषण (संरक्षण और नियंत्रण) प्राधिकरण (ईपीसीए) की सिफारिशों के आधार पर आए हैं. यह प्राधिकरण अदालत के आदेश पर गठित पांच सदस्यों वाला वैधानिक निकाय है. हालाँकि, कई बार अदालत ईपीसीए की सिफारिशों के खिलाफ भी गई है.

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हवा का प्रदूषण बताने वाली एक करोड़ कि मशीन खा रही है धूल

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डिजिटल भारत I हवा में प्रदूषण के स्तर को मांपने वाली एयर क्वालिटी मानीटरिंग स्टेशन लगभग एक साल से बंद है। ये मशीन का संचालन करने वाला कर्मी भी नहीं है जिसके कारण ये मशीन पूरी तरह से अनुपयोगी बनी हुई है। साइंस कालेज में फिलहाल मशीन बंद पड़ी हुई है।

कालेज प्रबंधन का कहना है कि मशीन का संचालन करने के लिए जिस एजेंसी से सहयोग मिल रहा था वह बंद हो गया है। दरअसल वर्ष 2007-08 में एक करोड़ रुपये की लागत से इंडियन इंस्टीट्यूट आफ ट्रापिकल मेट्योलाजी पुणे द्वारा यह मशीन स्थापित की गई थी।

मशीन का संचालन करने के लिए आपरेटर भी दिया गया था। कंपनी इसका रखरखाव भी करवाती थी। जिसके लिए राशि दी जाती थी। पर्यावरण विभाग में यह मशीन स्थापित की गई। जहां से आसपास के पांच किलोमीटर के दायरे की हवा का स्तर जांचा जाता था।

विभाग के प्रमुख डा.आर के श्रीवास्तव ने बताया कि देश के अलग-अलग इलाकों में यह मशीन लगाई गई थी जिससे पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय हवा के स्तर को जांचकर रियल टाइम डेटा जुटाता था।

दिसंबर 2021 में संस्थान के साथ हुआ अनुबंध खत्म हो गया था। जिस वजह से मशीन का संचालन करने वाले आपरेटर का वेतन भी नहीं मिल पा रहा था ऐसे में वह वापस चला गया है। अब यदि फिर से अनुबंध को बढ़ाया जाएगा तो मशीन का संचालन दोबारा किया जा सकता है।प्रदूषण जांच में मददगार-पर्यावरण के लिहाज से एयर क्वालिटी मानीटरिंग स्टेशन सिविल लाइन क्षेत्र में उपयोगी था। इस क्षेत्र में प्रदूषण की स्थिति को मापने के लिए फिलहाल कहीं भी कोई व्यवस्था नहीं है। साइंस कालेज में लगी मशीन से सिविल लाइन से लगे पांच किलोमीटर के दायरे की हवा का स्तर जांचा जा सकता था।

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दिन व दिन दिख रहा प्रदूषण का केहर , प्रदूषण नहीं रुका तो पानी में डूब जाएंगे मुंबई समेत 50 शहर

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डिजिटल भारत I इंसानी गतिविधियों की वजह से निकलने वाले प्रदूषण खासतौर से कार्बन उत्सर्जन का असर वायुमंडल में सदियों तक रहता है. जि यानी ग्लोबल वार्मिंग. ग्लोबल वार्मिंग की वजह से समुद्री जलस्तर में बढ़ोतरी हो रही है. अगर लगातार इसी तरह कार्बन उत्सर्जन होता रहा तो मुंबई समेत एशिया समेत एशिया के 50 शहर समुद्री पानी में डूब जाएंगे. ये 50 शहर चीन, भारत, इंडोनेशिया, बांग्लादेश और वियतनाम से होंगे. ये खुलासा एक नई रिपोर्ट में किया गया है. दुनियाभर के जो देश हाई-टाइड वाले जोन में आते हैं, वहां पर समुद्री जलस्तर बढ़ने से 15 फीसदी की आबादी प्रभावित होगी. यह स्टडी हाल ही क्लाइमेट कंट्रोल नाम की साइट पर प्रकाशित हुई है.

जिसमें भारत से मुंबई को खतरे में दिखाया गया है.  इस स्टडी में यह बताया गया है कि दुनियाभर के करीब 184 जगहें ऐसी जगहें ऐसी हैं जहां पर समुद्री जलस्तर बढ़ने का सीधा असर होगा. इन शहरों का बड़ा हिस्सा या फिर पूरे शहर पानी में डूब जाएंगे. इससे पहले अगस्त में IPCC की क्लाइमेट रिपोर्ट आई थी, जिसमें कहा गया था कि सिर्फ सिर्फ 79 साल और…यानी 2100 में भारत के 12 तटीय शहर करीब 3 फीट पानी में.. चले जाएंगे. क्योंकि लगातार बढ़ती गर्मी से ध्रुवों पर जमा बर्फ पिघलेगी. उससे समुद्री जलस्तर बढ़ेगा.

फिर क्या…चेन्नई, कोच्चि, भावनगर  जैसे शहरों का तटीय इलाका छोटा हो जाएगा अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) ने सी लेवल प्रोजेक्शन टूल  बनाया है. जिसका आधार है इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑ(IPCC) की हाल ही में आई रिपोर्ट. इस रिपोर्ट में कहा भी गया है कि 2100 तक दुनिया प्रचंड गर्मी बर्दाश्त करेगी. कार्बन उत्सर्जन और प्रदूषण नहीं रोका गया  तो तापमान में औसत 4.4 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होगी. अगले दो दशकों में ही तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा. जब इतना तापमान बढ़ेगा, तो जाहिर बात है कि ग्लेशियर पिघलेंगे. उसका पानी मैदानी और समुद्री इलाकों में तबाही लेकर आएगा

नासा के प्रोजेक्शन टूल में दुनियाभर का नक्शा बनाकर दिखाया गया है.  है. यह पहली बार है ,आईपीसीसी हर 5 से 7 साल में दुनियाभर में पर्यावरण की स्थिति की रिपोर्ट देता है. इस बार की रिपोर्ट बहुत भयावह है. यह पहली बार है जब नासा ने पूरी दुनियाअगले कुछ दशकों में बढ़ने वाले जलस्तर को मापने का नया टूल बनाया है. यह टूल दुनिया के उन सभी देशों के समुद्री जलस्तर को माप सकता है, जिनके पास तट है. अगले 20 साल में धरती का तापमान निश्चित तौर पर 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा. ऐसा जलवायु परिवर्तन की वजह से होगा. IPCC की नई जुटाए गए मौसम और प्रचंड गर्मी से संबंधित आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है. इतना ही नहीं इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जो प्रचंड गर्मी  पहले 50 सालों में एक बार आती थी, अब वो हर दस साल में आ रही है. यह धरती के गर्म होने की शुरुआत है.

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