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मानव अपशिष्ट की मिलावट पर 10 साल की सजा का प्रावधान, यूपी सरकार करेगी सख्त कार्रवाई

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डिजिटल भारत I इस खबर में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा खाद्य पदार्थों में मिलावट और मानव अपशिष्ट जैसी गंदी चीजों के इस्तेमाल को रोकने के लिए कठोर कानून लाने की योजना का जिक्र किया गया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन घटनाओं को बेहद गंभीरता से लिया है और इस तरह के कृत्यों को संज्ञेय अपराध की श्रेणी में लाने के निर्देश दिए हैं।
खासकर, हाल के दिनों में जूस, दाल और रोटी जैसे रोजमर्रा के खाद्य पदार्थों में मानव अपशिष्ट और गंदी चीजों की मिलावट की घटनाओं ने सरकार को एक सख्त कानून बनाने के लिए प्रेरित किया है। प्रस्तावित कानून में 10 साल तक की सजा का प्रावधान हो सकता है, जिससे इस प्रकार की वीभत्स घटनाओं पर स्थायी रूप से अंकुश लगाया जा सके। मुख्यमंत्री ने विधि आयोग, गृह विभाग, न्याय विभाग और खाद्य एवं रसद विभाग के अधिकारियों से मिलकर इन मामलों पर गहन अध्ययन करने और जल्द ही एक अध्यादेश तैयार करने के निर्देश दिए हैं।
इस प्रस्तावित कानून के मुख्य बिंदु:
सख्त सजा का प्रावधान: ऐसे मामलों में 10 साल तक की सजा हो सकती है, जिससे अपराधियों के लिए यह एक बड़ा निवारक बन सके।
संज्ञेय और गैरजमानती अपराध: इस तरह के अपराधों को संज्ञेय और गैरजमानती बनाने का प्रस्ताव है, ताकि अपराधी को जमानत पर जल्द रिहा होने का मौका न मिल सके और इस प्रक्रिया में तेजी आए।
होटल, रेस्टोरेंट, स्ट्रीट वेंडर्स पर सख्ती: इन संस्थानों में साफ-सफाई और खाद्य सुरक्षा की गारंटी सुनिश्चित करने के लिए सख्त निगरानी रखी जाएगी। साथ ही, रसोईघर और भोजन कक्ष में सीसीटीवी कैमरों की निगरानी अनिवार्य की जाएगी।
सीसीटीवी और निगरानी: प्रत्येक प्रतिष्ठान में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे और उनकी फुटेज कम से कम एक महीने तक सुरक्षित रखी जाएगी। जरूरत पड़ने पर जिला प्रशासन को फुटेज मुहैया करानी होगी।
कर्मचारियों की पहचान: सभी कर्मचारियों का पहचान पत्र और उनके विवरण पुलिस को देना अनिवार्य होगा। अगर किसी कर्मी की पहचान घुसपैठिए या अवैध नागरिक के रूप में होती है, तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
स्वच्छता के मानदंड: खाद्य प्रतिष्ठानों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके कर्मचारियों ने सिर को ढकने, मास्क और दस्ताने पहनने जैसे स्वच्छता मानदंडों का पालन किया हो।
मेरी रिसर्च के अनुसार:
स्वास्थ्य पर असर: मानव अपशिष्ट या अन्य गंदी चीजों की मिलावट न केवल स्वास्थ्य के लिए अत्यंत खतरनाक होती है, बल्कि इससे गंभीर बीमारियां फैलने का भी खतरा रहता है। ऐसे कृत्य न केवल खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करते हैं बल्कि समाज में अविश्वास और सामाजिक अस्थिरता का कारण भी बनते हैं।
खाद्य सुरक्षा में सुधार की आवश्यकता: भारत में खाद्य सुरक्षा कानून पहले से ही मौजूद हैं, जैसे कि खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006। लेकिन इस तरह की घटनाओं ने दिखाया है कि इन कानूनों के प्रवर्तन में सख्ती की कमी है। इस नए प्रस्तावित कानून के आने से न केवल उल्लंघन करने वालों को सजा मिलेगी बल्कि आम जनता में खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता को लेकर विश्वास भी बहाल होगा।
अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य: कई विकसित देशों में खाद्य पदार्थों की मिलावट के खिलाफ बेहद सख्त कानून लागू हैं, जहां जुर्माने के साथ-साथ लंबी जेल की सजा का भी प्रावधान होता है। भारत में भी इस तरह के कानूनों की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही है।
निष्कर्ष:
उत्तर प्रदेश सरकार का यह कदम खाद्य सुरक्षा को सुदृढ़ करने और आम जनता के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रस्तावित कानून न केवल खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता सुनिश्चित करेगा बल्कि इन गतिविधियों में लिप्त असामाजिक तत्वों को भी रोकने में मदद करेगा।

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भारत बंद के चलते उत्तर प्रदेश में सुरक्षा और प्रशासनिक तैयारियाँ: एक विस्तृत रिपोर्ट

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डिजिटल भारत I भारत बंद का उत्तर प्रदेश में प्रभाव: एक विस्तृत विश्लेषण
परिचय
भारत बंद एक ऐसा सामाजिक और राजनीतिक घटनाक्रम है जो देश के विभिन्न हिस्सों में गहरी छाप छोड़ सकता है। आज के भारत बंद का प्रमुख कारण एससी और एसटी आरक्षण के उप वर्गीकरण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन है। उत्तर प्रदेश में आज भारत बंद के प्रभाव को लेकर मिली-जुली तस्वीर देखने को मिल सकती है, जिसमें शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में अधिक असर देखने की संभावना है।

भारत बंद के कारण
भारत बंद का मुख्य उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय का विरोध करना है जिसमें एससी (अनुसूचित जाति) और एसटी (अनुसूचित जनजाति) के आरक्षण में उप वर्गीकरण को मान्यता दी गई है। इस निर्णय के खिलाफ विभिन्न दलित संगठनों और राजनीतिक पार्टियों ने विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया है। बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की प्रमुख मायावती, आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद, भीम आर्मी और राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी के स्वामी प्रसाद मौर्य ने इस बंद का समर्थन किया है। इन दलों का मानना है कि इस फैसले से दलितों और आदिवासियों के अधिकारों को कमजोर किया जा सकता है।
उत्तर प्रदेश में भारत बंद का असर
उत्तर प्रदेश, जो कि देश के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण राज्यों में से एक है, में भारत बंद का असर मिलाजुला रहने की संभावना है। शहरी क्षेत्रों में प्रभाव कम हो सकता है, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह अधिक प्रभावी हो सकता है। कई प्रमुख राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने इस बंद के समर्थन में प्रदर्शन का आह्वान किया है, जिसके परिणामस्वरूप कुछ क्षेत्रों में सामान्य जीवन प्रभावित हो सकता है।
पड़ोसी राज्यों की तैयारी
उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्यों जैसे बिहार और राजस्थान में भी इस बंद के प्रति सतर्कता बरती जा रही है। इन राज्यों में स्कूलों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में छुट्टियां घोषित की गई हैं ताकि छात्रों और शिक्षकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। यह कदम भारत बंद के संभावित असर को देखते हुए उठाया गया है ताकि किसी भी अप्रिय स्थिति से बचा जा सके।

सरकारी और पुलिस की तैयारी
यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने इस भारत बंद के मद्देनजर कोई आधिकारिक आदेश जारी नहीं किया है। स्कूल, कॉलेज, और अन्य शैक्षणिक संस्थानों को बंद करने की कोई घोषणा नहीं की गई है। इसके अलावा, इमरजेंसी सेवाओं जैसे अस्पताल, एंबुलेंस, और सार्वजनिक परिवहन बस और ट्रेनों के परिचालन पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। हालांकि, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पुलिस की सतर्कता बढ़ा दी गई है, जहाँ आंदोलन का प्रभाव अधिक देखा जा सकता है।
शांतिपूर्ण प्रदर्शन की अपील
आजाद समाज पार्टी और बसपा ने अपने कार्यकर्ताओं से अपील की है कि वे भारत बंद में शांतिपूर्ण तरीके से सहयोग करें और आक्रोशपूर्ण प्रदर्शन से बचें। पुलिस ने भी किसी प्रकार के अलर्ट जारी नहीं किए हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि किसी प्रकार की आपात स्थिति का सामना करने के लिए पूरी तैयारी की गई है। पश्चिमी यूपी में पुलिस की निगरानी बढ़ी हुई है, और वहां पर स्थिति पर नजर रखी जा रही है।

स्थानीय बाजारों पर प्रभाव
कुछ क्षेत्रों में स्थानीय बाजारों को बंद करने की चर्चा सामने आई है। हालांकि, यह स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है और यह स्थानीय स्तर पर निर्भर करेगा कि वे भारत बंद के प्रति किस तरह की प्रतिक्रिया देते हैं। व्यापारिक संगठनों और बाजार समितियों ने अपने स्तर पर सुरक्षा और बंद की तैयारी की है।
निष्कर्ष
भारत बंद एक महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक घटना है जिसका प्रभाव विभिन्न राज्यों में अलग-अलग तरीके से देखा जा सकता है। उत्तर प्रदेश में भी इसके प्रभाव को लेकर मिली-जुली तस्वीर देखने को मिल सकती है, जिसमें शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में अधिक प्रभाव देखने की संभावना है। विभिन्न राजनीतिक दल और संगठनों ने इस बंद के समर्थन में आह्वान किया है, जिससे स्थिति में उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकते हैं। सरकार और पुलिस की ओर से सतर्कता और तैयारियों के चलते स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश की जा रही है, और शांतिपूर्ण प्रदर्शन की अपील की गई है।
इस तरह के आंदोलनों और बंदों के प्रभाव को ठीक से समझने और उनका विश्लेषण करने से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि समाज के विभिन्न हिस्से किस तरह से राजनीतिक और कानूनी बदलावों पर प्रतिक्रिया देते हैं और कैसे इन प्रतिक्रियाओं को समन्वित किया जा सकता है ताकि सामाजिक शांति और सुरक्षा बनी रहे।

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लखीमपुर खीरी कांड मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट में CJI की बेंच करेगी सुनवाई

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उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी की घटना पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत संज्ञान लिया. इस मामले में SC आज सुनवाई करेगा. प्रधान न्यायाधीश (CJI) एन वी रमना की बेंच यह सुनवाई करेगी.


उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी की घटना पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत संज्ञान लिया. इस मामले में SC आज (गुरुवार को) सुनवाई करेगा. प्रधान न्यायाधीश (CJI) एन वी रमना की बेंच यह सुनवाई करेगी. CJI के अलावा जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली भी बेंच में शामिल हैं. केस का टाइटल ‘लखीमपुर खीरी में हिंसा के चलते जान का नुकसान’ है. मीडिया रिपोर्टस और चिट्ठी पर सुप्रीम कोर्ट ने यह संज्ञान लिया है.
गौरतलब है कि लखीमपुर खीरी में रविवार को हुई हिंसा में चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत हो गई थी. हजारों की संख्या में किसान यूपी के लखीमपुर खीरी जिले में केंद्रीय मंत्रियों का विरोध करने के लिए जमा हुए थे. किसानों ने केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा के खिलाफ लखीमपुर खीरी के तिकुनिया में रविवार को हुई हिंसा को लेकर केस दर्ज कराया है.


किसान नेताओं ने आरोप लगाया था कि मंत्री के बेटे के काफिले में शामिल वाहनों ने प्रदर्शन कर रहे किसानों को कुचला. इसके बाद हिंसा भड़क उठी और 4 किसानों के अलावा काफिले में शामिल चार अन्य लोग भी मारे गए थे. यूपी पुलिस ने लखीमपुर हिंसा मामले में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा समेत 14 के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. धारा 302, 120बी और अन्य धाराओं में यह केस दर्ज किया गया है.केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा ने मंगलवार को स्वीकार किया था कि उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में जिस कार ने किसानों को कुचला था वह उनकी थी लेकिन वे या उनका बेटा (आशीष मिश्रा) घटना के समय मौजूद नहीं थे.
अजय मिश्रा ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा था, ‘पहले दिन से ही हम इस बारे में स्पष्ट है कि वह Thar (वाहन) हमारी है, यह हमारे नाम पर दर्ज है. यह वाहन, कुछ कार्यकर्ताओं को लेकर किसी को लेने के लिए जा रहा था. मेरा बेटा दूसरी जगह पर था. सुबह 11 बजे से शाम तक, वह एक अन्य इवेंट को आयोजित कर रहा था. मेरा बेटा (आशीष मिश्रा) वहां मौजूद था, वहां हजारों की संख्या में लोग थे. इसके फोटो और वीडियो भी हैं. यदि आप उसका कॉल रिकॉर्ड और CDR, लोकेशन जानना चाहते हैं….तो सब चेक कर सकते हैं. हजारों लोग यह हलफनामा देने को तैयार है कि आशीष मिश्रा वहां (दूसरे आयोजन में) था. ‘

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साल 2020 में 11.8% बढ़ा साइबर क्राइम, उत्तर प्रदेश में ज्यादा केस

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नई दिल्ली: भारत में 2020 में साइबर अपराध के 50,035 मामले दर्ज किए गए, जो उसके पिछले वर्ष दर्ज मामलों की तुलना में 11.8 फीसदी अधिक हैं। साथ ही ‘‘सोशल मीडिया पर फर्जी सूचना’’ के 578 मामले सामने आए। यह जानकारी बुधवार को आधिकारिक आंकड़ों से मिली। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, देश में साइबर अपराध की दर (प्रति एक लाख की आबादी पर घटनाएं) 2019 में 3.3 फीसदी से बढ़कर 2020 में 3.7 फीसदी हो गईं।

आंकड़ों के मुताबिक, देश में 2019 में साइबर अपराध के मामलों की संख्या 44,735 थी जबकि 2018 में यह संख्या 27,248 थी। NCRB के आंकड़ों के अनुसार, 2020 में ऑनलाइन बैंकिंग धोखाधड़ी के 4047 मामले, ओटीपी धोखाधड़ी के 1093 मामले, क्रेडिट/डेबिट कार्ड धोखाधड़ी के 1194 मामले जबकि एटीएम से जुड़े 2160 मामले दर्ज किए गए।

इसमें बताया गया कि सोशल मीडिया पर फर्जी सूचना के 578 मामले, ऑनलाइन परेशान करने या महिलाओं एवं बच्चों को साइबर धमकी से जुड़े 972 मामले सामने आए जबकि फर्जी प्रोफाइल के 149 और आंकड़ों की चोरी के 98 मामले सामने आए। गृह मंत्रालय के अधीन काम करने वाले NCRB ने बताया कि 2020 में दर्ज साइबर अपराधों में से 60.2 फीसदी साइबर अपराध फर्जीवाड़ा (50,035 में से 30,142 मामले) से जुड़े हुए थे।

आंकड़ों के मुताबिक, यौन उत्पीड़न के 6.6 फीसदी (3293 मामले) और उगाही के 4.9 फीसदी (2440 मामले) दर्ज किए गए। इसमें बताया गया कि साइबर अपराध के सर्वाधिक 11097 मामले उत्तर प्रदेश में, 10741 कर्नाटक में, 5496 महाराष्ट्र में, 5024 तेलंगाना में और 3530 मामले असम में दर्ज किए गए।

बहरहाल, अपराध की दर सबसे अधिक कर्नाटक में 16.2 फीसदी थी, जिसके बाद तेलंगाना में 13.4 फीसदी, असम में 10.1 फीसदी, उत्तर प्रदेश में 4.8 फीसदी और महाराष्ट्र में यह दर 4.4 फीसदी थी।

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