मण्डला । वर्तमान युग तकनीकी विकास का युग है जिसमें मानवश्रम और ज्ञान का स्थान मशीनें लेती जा रही हैं। प्रायः देखने में आ रहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उच्च अनुप्रयोग के कारण कई बार विद्यार्थी कंप्यूटर और रोबोट्स को अपनी निर्णयकारी इकाई बनाने लगे हैं जिसमें सारा नियंत्रण एआई का होता है। परंतु विद्यार्थियों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि उनका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करने की क्षमता किसी मशीन में नहीं हो सकती। एक शिक्षक विद्यार्थी का संज्ञानात्मक विश्लेषण बड़े ही सहज ढंग से कर लेता है तथा वह विद्यार्थी में अंतर्निहित शक्तियों को पहचान पाने में सक्षम होता है। यहां तक कि उसके अहम के स्तर का भी शिक्षक को ज्ञान होता है। इन तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए वह विद्यार्थियों का मार्गदर्शन जानबूझकर केवल इसलिए करना चाहता है कि विद्यार्थी को उसकी शक्तियों का ज्ञान हो और उनका प्रयोग वह अधिगम के लिए भलीभांति कर सके और निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त कर सके, परंतु वर्तमान में हम देखें तो हमें दृष्टि गोचर होता है कि कुछेक विद्यार्थियों को छोड़कर अधिकतर के द्वारा शिक्षकों के मार्गदर्शन की उपेक्षा की जाती है। हालांकि हरेक व्यक्ति को अपनी निजता की स्वतंत्रता है, फिर भी भावानुकूल विश्लेषण की वर्तमान परिप्रेक्ष्य में महती आवश्यकता प्रतीत होती है।
शिक्षक हमेशा अपने गुरूतत्वों को विद्यार्थी तक संचरित करने के लिए तत्पर और लालायित रहता है। अतः विद्यार्थियों को भी समग्र विकास के लिए समानांतर रूप से विद्यार्थीधर्म का पालन करना चाहिए। शिक्षक के वचनों के प्रति श्रद्धा और विश्वास का गुण हमें शबरी से भी सीखना चाहिए। मतंग ऋषि के वचनों में श्रद्धा और विश्वास का परिणाम ही श्रीराम जी से उनकी भेंट थी । यदि शबरी ने अपने हृदय में गुरूवचनों को श्रद्धा और विश्वासपूर्वक स्थान न दिया होता, तो श्रीराम से उनकी भेंट संभव नहीं थी। अतः गुरुवचनों में श्रद्धा और विश्वास विद्यार्थियों के लिए परमावश्यक है, जिससे उनकी शक्तियां और योग्यताएं जागृत हो सकें और निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हो सके ।