डिजिटल भारत l सैयद फिदा हुसैन का जन्म 1904 ई. में जहानाबाद जिला में हुआ था। इनके पिता सैयद अहमद अब्दुल अजीज पिंजौरा गाँव के निवासी थे।
1917 ई. के रॉलेट अधिनियम और 1919 ई. में जालियाँवाला बाग जैसी नृशंस घटनाओं ने उनके मन-मस्तिष्क को स्वतंत्रता आंदोलन में कूदने के लिए उद्वेलित किया। अप्रैल 1920 ई. में गया में आयोजित खिलाफत आंदोलन में इन्होंने भाग लिया और हिन्दू-मुस्लिम एकता की जबरदस्त वकालत की। महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन के क्रम में अपने सहयोगी शौकत अली, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, स्वामी सत्यदेव आदि के साथ 5 दिसम्बर, 1920 ई. को गया में प्रथम पदार्पण किया। ईद-उल जोहा के पावन अवसर पर मजहवी मिल्लत तथा शांति कायम और कौमी एकता को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से महात्मा गाँधी ने 12 अगस्त, 1921 से मोहम्मद अली अब्दुल कादिर आजाद सोमानी, जमना लाल बजाज आदि सहयोगियों के साथ सम्पूर्ण मगध क्षेत्र का भ्रमण किया। फिदा हुसैन ने भी एक स्वयंसेवक की हैसियत से उनके साथ भ्रमण किया और युवकों को स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय होने के लिए शंखनाद किया। गया के केन्दुई गाँव में आर. एन. मधोलकर की अध्यक्षता में काँग्रेस का 38 वाँ अधिवेशन प्रारंभ हुआ। इस अधिवेशन को सफल बनाने हेतु फिदा हुसैन स्वयंसेवक के रूप में दिन-रात लगे रहे। इनकी सेवा भावना की लोगों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की और मगध क्षेत्र के स्थापित काँग्रेसी नेता के रूप में उन्हें जनमानस में ख्याति मिली। महात्मा गाँधी के मार्गदर्शन में ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह और दाण्डी मार्च हुआ। फिदा हुसैन ने भी अपने सहकर्मियों के साथ सम्पूर्ण जहानाबाद क्षेत्र में विदेशी कपड़ा, गाँजा, भाँग, ताड़ी तथा शराब की दुकानों पर शांतिपूर्ण ढंग से पिकेटिंग का तांता लगा दिया। फलतः वे अपने अन्य साथियों के साथ गिरफ्तार हुए और छह माह के बाद इनकी जेल से रिहाई संभव हुई। किसान आंदोलन में सक्रिय होकर इन्होंने पण्डित यदुनन्दन शर्मा, रामानन्द मिश्र, मोहनलाल गौतम कृषक नेताओं के सहयोग से किसानों के हित में उल्लेखनीय कार्य किया। भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना के स्वर्ण जयन्ती समारोह में डा. राजेन्द्र प्रसाद के मार्गदर्शन में 28-30 दिसम्बर, 1935 ई. को जहानाबाद में प्रभात फेरी, व्याख्यान, खादी प्रर्दशनी, काँग्रेस की उपलब्धियाँ, शहीदों की कुर्बानियाँ जैसे विषयों पर अनेक कार्यक्रमों के आयोजन में इनकी भूमिका सराहनीय रही।
मिस्र की राजधानी काहिरा में एक क़ब्रिस्तान है ‘अल-अराफ़ा’ जिसे अंग्रेज़ी में कहा जाता है ‘द सिटी ऑफ़ द डेड’.
इस क़ब्रिस्तान में एक अकेला भारतीय दफ़्न है जो अपने ज़माने में एक बहुत बड़ा अध्येता, पत्रकार और देश प्रेमी था और जिसने सालों तक भारत के बाहर रहकर उसकी आज़ादी के लिए बहुत पसीना बहाया था.
इस शख़्स का नाम था सैयद हुसैन जिसका जन्म सन 1888 में ढाका में हुआ था. होसैन मामूली शख़्स नहीं थे.
एनएस विनोध उनकी जीवनी ‘अ फ़ॉरगॉटेन एमबेसेडर इन काएरो द लाइफ़ एंड टाइम्स ऑफ़ सैयद हुसैन’ में लिखते हैं, “सैयद अपने समय के निहायत ही आकर्षक, विद्वान और सुसंस्कृत शख्स थे जिनमें अपने भाषणों से लोगों को मंत्रमुग्ध कर देने की ग़ज़ब की क्षमता थी. वो एक असाधारण लेखक और धर्मनिरपेक्ष देशभक्त थे.”