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डिजिटल भारत । जैसा कि आप देख रहे हैं भारत में महिलाओं के लिए बहुत से कानून बने हैं। महिला सुरक्षा के लिए, उनके अधिकारों के लिए, बच्चियों के लिए भी हमारे हिंदू कानून में बहुत से प्रावधान है लेकिन आज के दौर में या तो उन कानूनों को माना नहीं जाता या उन कानूनों को अनदेखा कर दिया जाता है या फिर उन कानूनों पर कोई चलना नहीं चाहता या फिर उन कानूनों का दुरुपयोग किया जाता है।महिलाओं के संदर्भ में यही सब बातें सामने आती है ।
आज भारत में महिला अपराध है या बच्चियों से संबंधित जितने भी मामले आते हैं, उन मामलों में से 75% मामले बनावटी होते हैं और 25 % मामले असली होते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि 30 साल की महिला अगर किसी पुरुष के ऊपर झूठा केस करती है और अगर 3 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म होता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि 3 साल की बच्ची और 30 साल की महिला बराबर है। झूठे मुकदमों को देखते हुए 3 साल की बच्ची के लिए हम न्याय की मांग ना करें यह गलत है।
अगर हम यह सोचे कि महिला अपराध के ऊपर कुछ नए कानून बनाने चाहिए तो क्या निश्चित ही उन कानूनों को भी माना जाएगा। आमतौर पर यह देखा जाता है कि बच्चियों के साथ अगर कुछ गलत होता है तो कई परिवार बदनामी के डर से न्याय के लिए आवाज नहीं उठाते हैं और उस बच्ची की जिंदगी बर्बाद हो जाती है। कई ग्रामीण क्षेत्रों में यह देखा जाता है कि बच्ची के परिवार वाले पैसा लेकर मामले को दबा देते हैं और उस बच्ची के साथ अन्याय होता है। समाज की आज ये सोच है समाज में बच्ची को बोला जाता है कि तुम तो लड़की हो, कुछ नहीं कर पाओगी। तुम्हारे साथ कुछ गलत हुआ भी है तो उसके लिए अगर तुम आवाज उठाओगी, तो भी तुम्हारी कोई नहीं सुनेगा क्योंकि तुम एक लड़की हो। इन सभी बातों को देखते हुए हमें बच्चियों की सुरक्षा पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

बच्चियों को आत्मरक्षा के लिए कुछ गतिविधियां सिखाने की जरूरत है। जैसे मार्शल आर्ट, मुक्केबाजी, जूडो, कराटे ऐसी गतिविधि सिखाने की जरूरत है जैसे मान लीजिए, अगर किसी बच्ची के साथ कहीं पर कोई छेड़खानी करता है तो वह बच्ची कम से कम 5 से 7 मिनट तक वह अपने हाथ पैरों का इस्तेमाल करके स्वयं की सुरक्षा कर सके और वहाँ से भागकर किसी से मदद मांग सके । अब एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी उठता है कि क्या महिलाएँ सचमुच में मजबूत बनी है ? क्या देश में महिला सचमुच सुरक्षित है ? क्या उनका लंबे समय का संघर्ष खत्म हो चुका है ? राष्ट्र के विकास में महिलाओं की सच्ची महत्ता और अधिकार के बारे में समाज में जागरुकता लाने के लिए मातृ दिवस, अंतर राष्ट्रीय महिला दिवस, आदि जैसे कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम सरकार द्वारा लागू किये गये है। लेकिन आज महिलाओं को कई क्षेत्र में अब भी विकास की जरुरत है। अपने देश में उच्च स्तर की लैंगिक असमानता है जहाँ महिलाएँ अपने समाज, परिवार के साथ ही बाहरी समाज से भी बुरे बर्ताव से पीड़ित है। समाज में अपनी ही पहचान बनाने के लिए उनको दर-दर से अपमान का सामना करना पड़ता है।

आज देश में बच्चियों का जागृत होना बहुत जरुरी है, और साथ ही उनकी माँताओ का जागरूक होना बहुत ज़रूरी है! एक बार जब वो अपना कदम उठा लेती है, तभी परिवार आगे बढ़ता है, गाँव आगे बढ़ता है और राष्ट्र विकास की ओर उन्मुख होता है। भारत में, महिलाओं बच्चियों को सशक्त बनाने के लिए सबसे पहले समाज में उनके अधिकारों और मूल्यों को मारने वाले उन सभी बुरी सोच दहेज प्रथा, अशिक्षा, यौन हिंसा, असमानता, कन्या हत्या, महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, बलात्कार, वैश्यावृति, मानव तस्करी को मारना जरुरी है । लैंगिक भेदभाव राष्ट्र में सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक अंतर ले आता है जो देश को पीछे की ओर ढ़केलता है। भारत के संविधान में उल्लिखित समानता के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए महिलाओं बच्चियों को सशक्त बनाना सबसे महत्वपूर्ण कार्य है।

बच्चियों को सशक्त बनाए बगैर हम मानवता को सशक्त नहीं बना सकते। संवेदना, करुणा, वात्सल्य, ममता, प्रेम, विनम्रता, सहनशीलता आदि नारी के वह गुण है, जिससे वह मानवता को निखार और संवारकर उसे मजबूत रूप से सशक्त बना सकती हैं। इसके लिए अति आवश्यक यह है कि महिलाओं का सम्मान हो और हर क्षेत्र में समान भागीदारी हो

. – पूजा ज्योतिषी मण्डला

फ़ोटो परिचय:
लीगल एक्सपर्ट डॉ नूपुर धमीजा
अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया
संस्थापक नारी शक्ति एक नई पहल संस्था
डायरेक्टर जनरल नूपुर लजेलएनयू एंड एसोसिएट्स

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