डिजिटल भारत l अब जब बात चली ही है कि जरा ट्रेनों की भी बात कर लें, जहां लड़कियां 90 फीसदी बार अकेले नहीं, बल्कि पूरे परिवार के साथ सफर करती हैं। हिंदुस्तान की ट्रेनों में स्लीपर से लेकर फर्स्ट क्लास तक के टॉयलेट में औरतों के शरीर की जो एनाटॉमी होती है, उसकी मिसाल दुनिया के किसी रेलवे सिस्टम में नहीं मिलेगी।
एक चार-पांच साल की बच्ची से लेकर 70 साल की बूढ़ी महिला तक ट्रेन के उस टॉयलेट में जाती हैं, जिसमें कोई आदमी किसी महिला के जननांगों का चित्र बनाकर कोई घटिया सी गाली लिखकर चला गया होता है या फिर अपना मोबाइल नंबर डालकर।
वो भले सीधे किसी महिला को अपमानित ना कर रहा हो, लेकिन इन वाकयों से गुजरने वाली हर लड़की, हर औरत खुद को अपमानित ही महसूस करती है।
और ये अनुभव सिर्फ बस, टैंपो और ट्रेन तक ही सीमित नहीं हैं। क्या हवाई जहाज और क्या हवाई जहाज का फर्स्ट क्लास बिजनेस सेक्शन। कोई भी स्त्रियों के खिलाफ छिपी हुई हिंसा से अछूता नहीं है।
संसार में कोई ऐसी जगह नहीं, जहां औरतों के लिए सुरक्षा की सौ फीसदी गारंटी हो। बिजनेस क्लास में भी कोई पेशाब करके चला जाएगा और आप बिलकुल अकेली निहत्थी ये सोचती रहेंगी कि आखिर मेरा अपराध क्या था।
औरतों का सिर्फ एक ही अपराध है कि वो औरत हैं।आज भी इस देश में अकेले यात्रा करने वाली स्त्रियों की संख्या कितनी है। भारत उन देशों में से है, जिसे दुनिया के कई देशों ने सोलो ट्रैवलर महिलाओं के लिए रेड फ्लैग कर रखा है। निर्भया केस के बाद तो बाकायदा चेतावनी जारी की गई थी कि महिलाएं अकेले घूमने के लिए हिंदुस्तान न जाएं।
बाहर की महिलाओं का क्या, इस देश की महिलाएं भी अपने ही देश के भीतर कहां सुरक्षित महसूस करती हैं। थोड़ा अंधेरा हो जाए, थोड़ा रास्ता सूनसान हो तो किसी अनहोनी की आशंका से दिल बैठने लगता है। सफर में, रास्ते में किसी मर्द का होना सुरक्षा का एहसास नहीं कराता, बल्कि और ज्यादा डरा देता है।
यह वो देश है, जहां हर चौथे वाक्य में औरत की पूजा करने की बात की जाती है। हर आठवें दिन कोई न कोई नेता अपने भाषण में नारी की मर्यादा और सम्मान का ज्ञान देने लगता है। और हर चौथे महीने उसी नारी को अपमानित करने वाला कोई बयान, कोई वाकया सामने आ जाता है।
इसके बावजूद आपको लगता है कि औरतों को गुस्सा क्यों आता है। आपका सवाल ही गलत है। आपको ये नहीं पूछना चाहिए कि औरतों को इतना गुस्सा क्यों आता है। आपको तो ये पूछना नहीं कि इतनी तकलीफ, इतने अपमान, इतनी पीड़ा के बाद भी इतना कम गुस्सा क्यों आता है।
बिहार में पहली बार वर्जिनिटी सर्जरी शुरू होने के बाद से पिछले 10 दिनों में डेढ़ सौ लड़कियां सर्जरी के लिए रजिस्ट्रेशन करवा चुकी हैं और 5000 से ज्यादा लड़कियां इस बात की इंक्वायरी कर चुकी हैं।
शिक्षा और नौकरी में अपना वाजिब हक मांग रही, घर से बाहर निकलकर कॉलेज जा रही, नौकरी कर रही लड़कियों के लिए अब शादी से पहले संबंध बनाना कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन फिर भी उन्हें डर है कि शादी की रात उनसे उनकी पवित्रता का सुबूत मांगा जाएगा।
उन्होंने प्रेम तो किया, देह के सुख-दुख को महसूस भी किया, लेकिन अब भी इतनी आजादी और ईमानदारी की जगह नहीं है कि वो खुलकर इस बात को स्वीकार कर सकें।
वो अपने साथ और रिश्ते के साथ ईमानदार हों सकें। वो पवित्रता का सबूत मांगने वाले जाहिल लड़कों को रिजेक्ट कर सकें। वर्जिनिटी सर्टिफिकेट मांग रहे लड़के से पलटकर पूछ सकें- मेरी पवित्रता का सुबूत मांगने से पहले ये बताओ कि तुम कितने पवित्र हो। पहले अपनी पवित्रता का सुबूत पेश करो।
सही और गलत का, नैतिक और अनैतिक का नियम औरत और मर्द के लिए दो अलग- अलग नियम तो नहीं हो सकता। जो मेरे लिए गलत है, वो तुम्हारे लिए भी गलत है और जो तुम्हारे लिए सही, वो मेरे लिए भी सही।
लेकिन पितृसत्ता की ये पूरी इमारत इसी बुनियाद पर खड़ी है कि औरत का उसके शरीर पर कोई हक नहीं। वो पिता और पति की संपत्ति है।