
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल के एक महत्वपूर्ण फैसले पर तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की है। इस फैसले में राज्यपालों को विधेयकों पर हस्ताक्षर के लिए एक निश्चित समयसीमा निर्धारित की गई थी, जिसे राष्ट्रपति ने संविधान की मर्यादा और कार्यपालिका के अधिकारों के संदर्भ में चुनौतीपूर्ण माना है।
राष्ट्रपति मुर्मू ने इस फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट से महत्वपूर्ण सवाल पूछे हैं, जिनमें शामिल हैं:
• क्या सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 74 (केंद्र सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति का कार्य) और अनुच्छेद 163 (राज्यपाल की शक्तियाँ) की व्याख्या करते हुए विधायिका की प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर सकता है?
• क्या कोई संवैधानिक प्रावधान राज्यपालों को विधेयकों पर हस्ताक्षर के लिए समयसीमा निर्धारित करने की अनुमति देता है?
• क्या सुप्रीम कोर्ट संसद या राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों की वैधता की समीक्षा कर सकता है?
इन सवालों के माध्यम से राष्ट्रपति ने न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच शक्तियों के संतुलन पर महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए हैं। यह कदम संविधान की व्याख्या और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
संविधान और न्यायपालिका के बीच संतुलन
राष्ट्रपति मुर्मू की यह प्रतिक्रिया केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों के संतुलन तथा संवैधानिक मर्यादाओं को लेकर एक गंभीर चर्चा की ओर संकेत करती है। यह मामला कार्यपालिका और न्यायपालिका के अधिकारों के सीमांकन पर एक महत्वपूर्ण विमर्श को जन्म देता है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया है: राज्य सरकारें संघीय मुद्दों पर संविधान के अनुच्छेद 131 (केंद्र-राज्य विवाद) के बजाय अनुच्छेद 32 (नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा) का उपयोग क्यों कर रही हैं?
अनुच्छेद 131 और अनुच्छेद 32: अंतर
• अनुच्छेद 131: यह अनुच्छेद केंद्र और राज्य या दो या दो से अधिक राज्यों के बीच किसी भी विवाद को हल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को विशेष अधिकार देता है।
• अनुच्छेद 32: यह अनुच्छेद नागरिकों को मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामले में सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने का अधिकार प्रदान करता है।
राज्य सरकारों द्वारा अनुच्छेद 32 का उपयोग
कुछ राज्य सरकारें, जैसे केरल और छत्तीसगढ़, ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) अधिनियम को चुनौती देने के लिए अनुच्छेद 32 का सहारा लिया है। इन राज्यों का तर्क है कि ये कानून उनके नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। उदाहरण के लिए, केरल सरकार ने कहा है कि CAA संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 21 (जीने का अधिकार) और अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता) का उल्लंघन करता है ।
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