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डिजिटल भारत l महिलाओं को लोकसभा और विधानसभाओं में 33 फीसदी रिजर्वेशन देने के लिए जो कानूनी प्रावधान किया जा रहा है उसमें कोई कानूनी अड़चन नहीं है। कानूनी और संवैधानिक जानकार बताते हैं कि यह फैसला पूरी तरह से संवैधानिक परिधि में है। ऐसे में महिला रिजर्वेशन को लागू करने में कोई परेशानी नहीं होगी। कानूनी जानकारों ने बताया कि आने वाले दिनों में सीटों के रोटेशन के लिए संसद को कानून बनाना होगा।
साल 1992 में पंचायत के स्तर पर 33 प्रतिशत आरक्षण का क़ानून बनाए जाने के बावजूद यही आरक्षण संसद और विधानसभाओं में लाने के प्रस्ताव पर आम राय बनाने में तीन दशक से ज़्यादा लग गए हैं.
महिलाओं को आरक्षण ना देने के तर्क में सबसे आगे उनकी कम राजनीतिक समझ बताया जाता रहा है.
इसी के चलते पंचायत के स्तर पर आरक्षण देने के बावजूद सरपंच चुनी गई औरतों का कागज़ों पर नाम तो रहा, लेकिन उनके पति ही उनका काम करते रहे. इन्हें ‘सरपंच-पति’ का उपनाम तक दे दिया गया.
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष और भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता रहीं ललिता कुमारमंगलम के मुताबिक़ ‘महिलाओं के अयोग्य’ होने का बहाना पुरुष उन्हें रोकने के लिए अपनाते रहे हैं. ऐसे में कड़े आदेश के अलावा कोई चारा नहीं है. बीबीसी से उन्होंने कहा, ”जब पार्टी के स्ट्रांग नेता, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ़ से संदेश जाएगा तो सभी पुरुषों को समर्थन देना ही होगा.” वहीं तृणमूल कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुष्मिता देव मानती हैं कि पंचायतों में आरक्षण के अनुभव से सीख लेने की ज़रूरत है. महिला रिजर्वेशन बिल संवैधानिक दायरे में
लोकसभा के पूर्व सेक्रेट्री जनरल पीडीटी अचारी बताते हैं कि यह बिल संवैधानिक प्रावधानों के दायरे में लाया गया है। इसका काफी दिनों से इंतजार था अब लोकसभा में इसे पेश किया गया है। महिलाओं को इसके तहत 33 फीसदी रिजर्वेशन देने की बात है ऐसे में इसमें कोई कानूनी अड़चन नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट एमएल लाहौटी बताते हैं कि वैसे संसद जब भी कोई संवैधानिक संशोधन करती है या संसद कानून बनाती है वह जुडिशल स्क्रूटिनी के दायरे में आ सकता है।

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