डिजिटल भारत l हाल ही में भारत सरकार ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence- AI) मिशन पर नीति आयोग एवं इलेक्ट्रोनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics and Information Technology- MeitY) के बीच आपसी मतभेद को हल करने हेतु एक समिति का गठन किया है। इस समिति में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव, नीति आयोग के सीईओ और MeitY के सचिव शामिल हैं एवं इसकी अध्यक्षता मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के. विजय राघवन कर रहे हैं। ध्यातव्य है कि भारत अपनी अर्थव्यवस्था को डिज़िटल अर्थव्यवस्था बनाने के साथ-साथ सरकारी काम-काज को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जोड़ने के लिए प्रतिबद्ध है
दुनिया में दो अरब से ज़्यादा लोगों के लिए ऑनलाइन शॉपिंग आम बात है.
हम फ़िक्र तक नहीं करते कि ऑनलाइन शॉपिंग की दुनिया चलती कैसे है?
दरअसल, पेमेंट करते ही ग्राहक तक सामान पहुंचाने के लिए बनी कंपनियां कड़ी हरक़त में आ जाती है.
सबसे पहले पास के वेयरहाउस में ‘पिकर’ कहे जाने वाले शख़्स तक संदेश पहुंचता है. वो ग्राहक के ऑर्डर के मुताबिक़ सामान तलाशता है. इसके बाद सामान पैक करके डिस्पैच कर दिया जाता है.
डिपो दर डिपो आगे बढ़ते हुए सामान कुरियर के जरिए हमारे दरवाज़े तक पहुंचता है.
इस पूरी प्रक्रिया और इसमें लगे लोगों को मैनेज करती है आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस यानी एआई.
अब सवाल है कि वेयरहाउस और सप्लाई चेन में एआई का जिस तरह का दखल है, क्या बाकी जगह भी वैसा ही होने जा रहा है?
अमेरिकी टेक कंपनी रिथिंकरी के संस्थापक डेविन फिडलर बताते हैं, ”प्रयोग के लिए हमने कई सिस्टम तैयार किए हैं. हम देखना चाहते हैं कि डिजिटल मैनेजमेंट को कहां तक ले जा सकते हैं.”
डेविन फिडलर ने ऐसे सॉफ्टवेयर तैयार किए हैं जो लोगों को संभालते हैं. वो बताते हैं कि उन्हें कल्पना से ज़्यादा कामयाबी हासिल हो चुकी है.
डेविन फिडलर कहते हैं, ”हमारे पास ऐसा सॉफ्टवेयर है जो फ्रीलांसिंग प्लेटफॉर्म पर जाता है. ये ऐसे प्लेटफॉर्म हैं जहां आप दुनिया भर के फ्रीलांसर्स से संपर्क कर सकते हैं. वहां ये ऐसे लोगों की तलाश करता है जो प्रोजेक्ट पर काम करने के लिहाज से माकूल हों. ये आमतौर पर शुरू में उन्हें छोटा काम देता है ताकि उनकी क्षमता परखी जा सके. टीम में शामिल होने के बाद नतीजे हासिल होने तक ये उनकी मदद करता है.”
इससे लगता है कि मानो यहां कोई प्रबंधक ही एक्शन में हो.
डेविन कहते हैं कि इससे साबित हुआ कि सेल्फ ड्राइविंग यानी खुद से चलने वाला रिसर्च प्रोजक्ट तैयार करना मुमकिन है. यहां आप सिर्फ़ बटन दबाते हैं. कंप्यूटर पूरी प्रक्रिया को चलाता है और नतीजा मिल जाता है.
डेविन का ये भी दावा है कि कि हम जितना सोचते हैं, मशीनें संवेदनाओं को उससे बेहतर तरीके से संभाल सकती हैं.
लेकिन सवाल ये भी है कि ऐसा क्या किया जाए जिससे ये तय हो कि एआई लोगों की ज़िंदगी बेहतर बनाए और तबाही की वजह न बनें.
डेविन फिडलर कहते हैं, ” मुझे लगता है कि इसे होशियारी से इस्तेमाल करना चाहिए. ऐसा सिस्टम बना देना आसान है जो किसी एक चीज़ में इजाफ़ा कर दे, मसलन मुनाफ़ा हासिल करना आसान बात है. ये सिस्टम जिस सामाजिक परिवेश में काम करता है, उसे उसकी जानकारी नहीं होती. उसे पता नहीं होता है कि वो जो कर रहा है वो फायदेमंद है या फिर इसकी वजह से परेशानियां बढ़ सकती हैं.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के नकारात्मक प्रभाव/ नुकसान
हर सिक्के के दो पहलू होते है इसी तरह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के फायदे हैं तो नुकसान भी है |
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में मनुष्यों के स्थान पर मशीनों से काम लिया जाएगा मशीनें स्वयं ही निर्णय लेने लगेंगी अगर समय रहते उन पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो इससे मनुष्य के लिये खतरा भी उत्पन्न हो सकता है|
वैज्ञानिक इसे सबसे बड़ा खतरा तब मानते हैं जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसके ज़रिये मशीनें बिना मानवीय हस्तक्षेप के नैतिक प्रश्नों पर फैसला लेने लगेंगी। जैसे जीवन, सुरक्षा, जन्म-मृत्यु, सामाजिक संबंध आदि फैसले|
बिल गेट्स का मानना है कि यदि मनुष्य अपने से बेहतर सोच वाली मशीन बना लेगा तो मनुष्य के अस्तित्व के लिये ही सबसे बड़ा खतरा उत्पन्न हो जाएगा|
सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिन्स का भी यही कहना था कि मनुष्य आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का मुकाबला नहीं कर सकती|