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डिजिटल भारत l आज 06 अप्रैल गुरुवार को रामभक्त हनुमान जी का जन्मदिन है, जो हनुमान जयंती के नाम प्रसिद्ध है. चैत्र पूर्णिमा तिथि को हर साल हनुमान जयंती या हनुमान जन्मोत्सव मनाया जाता है पौराणिक कथाओं के अनुसार, हनुमान जी का जन्म चैत्र पूर्णिमा तिथि को मंगलवार को प्रात:काल में हुआ था. हनुमान जी आसानी से प्रसन्न होने वाले देव हैं, जिनकी पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं, कार्य सफल होते हैं. रोग, दोष, भय, संकट सब पल भर में दूर हो जाते हैं. उनके नाम मात्र के स्मरण से नकारात्मक शक्तियां दूर भाग जाती हैं. काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट से जानते हैं हनुमान जयंती का मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र, पूजन सामग्री आदि.
हनुमान जयंती मुहूर्त 2023
चैत्र पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ: 5 अप्रैल, बुधवार, सुबह 09:19 बजे से
चैत्र पूर्णिमा तिथि का समापन: 6 अप्रेल, गुरुवार, सुबह 10:04 बजे पर
हनुमान जयंती सुबह का पूजा मुहूर्त: 06:06 बजे से 07:40 बजे तक, शुभ उत्तम मुहूर्त है.
दोपहर लाभ उन्नति मुहूर्त: 12:24 बजे से 01:58 बजे तक

हनुमान जयंती शाम का पूजा मुहूर्त: 05:07 बजे से रात 08:07 बजे तक.
शाम में शुभ उत्तम मुहूर्त: 05:07 बजे से 06:42 बजे तक
शाम में अमृत सर्वोत्तम मुहूर्त: 06:42 बजे से रात 08:07 बजे तक

सीखने की चाह

बजरंगबली को बहुत बलशाली थी और बुद्धिमान थे लेकिन उनमें हमेशा कुछ नया सीखने की लगन लगी रहती थी. पौराणिक कथा के अनुसार सूर्य देव ने बजरंगबली का गुरु बनने से इनकार कर दिया, क्योंकि सूर्य का गतिमान रहना जरुरी है, ऐसे में बजरंगी शिक्षा कैसे ग्रहण करते लेकिन हनुमाना जी ने चतुर बुद्धि का उपयोग करते हुए सूर्य देव से कहा कि “मैं आपके सामने उल्टी अवस्था में चलूंगा और आप से पढूंगा ” बजरंगबली की शिक्षा ग्रहण करने की ललक को देखकर सूर्य देव अति प्रसन्न हुए और फिर उन्होंने मारुति नंदन को विद्या प्रदान की. इससे यह सीख मिलते हैं कि हालात कैसे भी हो अगर सीखने की चाह है तो रास्ता अपने आप निकल जाता है और ज्ञान के बलबूते ही व्यक्ति सफलता को प्राप्त करता है.

लक्ष्य पाने के लिए झुकना भी जरुरी है

लंका की ओर बढ़ते समय हनुमान जी को बीच रास्ते में सुरसा नाम की नाग माता ने रोक लिया और वह उन्हें खाना चाहती थी. हनुमान जी कई बार समझाने पर भी नहीं मानी और अपना शरीर बड़ा कर लिया, फिर बजरंगबली ने भी शरीर दुगना बड़ा लिया. सुरसा ने फिर वही प्रक्रिया दोहराई, केसरी नंदन समझ गए कि सुरसा का अहम उसके लिए महत्वपूर्ण है, ऐसे में उन्होंने तत्कार खुद को छोटा कर लिया ओर उसके मुंह में से घूम कर निकल आए. सुरसा हनुमान जी की चतुराई से प्रसन्न हुई और उन्हें जाने दिया.

अपनी शक्तियों का सही इस्तेमाल

‘सूक्ष्म रूप धरी सियंहि दिखावा, विकट रूप धरी लंक जरावा।’ – इस श्लोक में बताया है कि हनुमान जी ने सीता के सामने खुद को लघु रूप (छोटे रूप) में रखा, क्योंकि यहां वह पुत्र की भूमिका में थे और लंका की हर खबर से वाकिफ होना चाहते थे. ऐसे दुश्मनों के बीच होते हुए भी वह पहचाने नहीं गए और राम तक लंका की हर खबर पहुंचाई. वहीं तुलसीदास जी कहते हैं कि जरुरत पड़ने पर वह राक्षसों के लिए काल बन गए.

कुशल नीति

लंका पहुंचने से पहले हनुमान जी ने पूरी रणनीति बनाई थी. वह जानते थे कि लक्ष्य महान है इसमें कई तरह की बाधाएं आएंगे. ऐसे में उन्होंने असुरों की इतनी भीड़ में भी विभीषण जैसा सज्जन ढूंढा. उससे मित्रता की और सीता मां का पता लगाया. भय फैलाने के लिए लंका को जलाया, इस प्रकार पूरे मैनेजमेंट के साथ अपने काम को अंजाम दिया. इससे यह सीख मिलती है कि आसमान की ऊंचाइयों को छूना है, असंभव नजर आ रही सफलता को प्राप्त करना है कि चालाकी, चतुराई, विनम्रता, दूरदर्शिता और साहस का होना बहुत जरुरी है.

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