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डिजिटल भारत l प्रशांत महासागर फिलीपींस तट से लेकर पनामा तक 9,455 मील चौड़ा और बेरिंग जलडमरूमध्य से लेकर दक्षिण अंटार्कटिका तक 10,492 मील लंबा है। हालांकि इसका उत्तरी किनारा सिर्फ 36 मील के बेरिंग जलडमरूमध्य द्वारा आर्कटिक सागर से जुड़ा है। इसके इतने बड़े क्षेत्र में फैले होने की वजह से ही यहां के निवासी, वनस्पति, पशु और इंसानों के रहन-सहन में धरती के अन्य भागों के सागरों की अपेक्षा बड़ी विभिन्नता है।
प्रशांत महासागर की औसत गहराई लगभग 14,000 फीट है और अधिकतम गहराई लगभग 36,201 फीट है। इसके पूर्वी और पश्चिमी किनारों में बड़ा अंतर है। पूर्वी किनारे पर पर्वतों का क्रम फैला है या समुद्री मैदान बहुत ही संकरे हैं जबकि इसके विपरीत इसके पश्चिमी किनारे पर पर्वत नहीं हैं बल्कि कई द्वीप, खाड़ियां, प्रायद्वीप और डेल्टा हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि इसी किनारे पर दुनिया की बड़ी-बड़ी नदियां इसमें गिरती हैं।
आखिर इस महासागर का निर्माण कैसे हुआ, इसका पता आज तक नहीं चल पाया है। हालांकि कई भूविज्ञानियों ने इस बात का पता लगाना चाहा कि इस महासागर का निर्माण प्रारंभ में कैसे हुआ, लेकिन वो कोई भी सर्वमान्य सिद्धांत नहीं निकाल पाए। ऐसे में इसे रहस्यमय कह सकते हैं।
.इस महासागर की गहराई 4 किलोमीटर (4000 मीटर) है। इस सागर के दर्शन आप कन्या कुमारी (तमिलनाडु) से कर सकते हैं।

हिंद महासगर को एक युवा महासागर माना जाता है जिसने मात्र 3.6 करोड़ वर्ष पहले ही अपना वर्तमान रूप ग्रहण किया है।

इस महासागर में स्थित अधिकांश द्वीप महाद्वीपीय खंडों से टूटकर अलग हुए भाग हैं जैसे- अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह, श्रीलंका, मेडागास्कर तथा जंजीबार।

यह अंध महासागर और प्रशांत महासागर से जुड़ा हुआ है। मतलब ये महासागर अंटार्कटिका महाद्वीप के निकट प्रशांत एवं अटलांटिक महासागर से मिल जाता है। हिन्द और प्रशांत महासागर का पानी आपस में मिश्रित नहीं होता है।

वैसे तो महासागरों का पानी एक ही दिशा में बहता है परंतु हिन्द महासागर के पानी का बहाव गर्मी में भारत की ओर बहता है और सर्दियों में अफ्रीका की ओर बहता है।

इस महासागर में विश्व की दो बड़ी नदियां ब्रह्मपुत्र और गंगा की जलराशि विसर्जित हो जाती है। इस महासागर के अनेक चौड़े जलमग्न कटक और बेसीन हैं।

महासागर में जल की कुल मात्रा 292,131,000 घन किलोमीटर (70086000 घन मील) होने का अनुमान है।
समुन्द्र के बारे में एक रोचक तथ्य मैं आपको बताता हूँ। कहते हैं समुन्द्र अपने पास कुछ नहीं रखता। आप इसमें कुछ भी डालो यह वापस तट पर फेंक देता है। परंतु आज तक यह कोई नहीं बता पाया कि समुन्द्र चीज़ों को कब वापस करेगा

एक वैज्ञानिक अपना एक अनुभव सुनते है

990 में हम शैक्षणिक भ्रमण पर मद्रास (अब चेन्नई) में थे। शहर के प्रमुख दर्शनीय स्थलों के भ्रमण के लिए हमने बस लिया था। बस जब गोल्डन बीच पहुंची तो हमें 2 घंटे का समय गोल्डन बीच घूमने के लिए दिया गया। एक घंटे में हम घूम कर और अल्पाहार कर आराम से जूता चप्पल खोल समुन्द्र तट पर बैठ गए।

लहरें जहाँ तक अधिकतम आ रहीं थी उससे भी हम 1-2 मीटर दूर ही बैठे थे और हमारे जूते सामने रखे थे।

हम गपशप में मशगूल थे कि तभी एक बड़ी लहर आई और हमें भागने का मौका दिए बिना भीगा दिया। हमने पाया कि हमारे एक मित्र का बाएं पैर का जूता बंगाल की खाड़ी अपने में समेट ले गई थी। अभी अन्य जगह भी घूमने थे, मित्र दुखी हो गया। जूता भी नया था और उसने टूर के लिए ही खरीदा था।

हमने सुन रखा था कि समुन्द्र अपने में कुछ नहीं रखता इसलिए हम बहुत उम्मीद से जूता वापस आने का इंतज़ार करने लगे। समय बीतता गया और बस पकड़ने का वक़्त आ गया। बाएं पैर का जूता वापस नहीं आया।

दुःखी मन से हम बस पकड़ने के लिए उठे। जिसका जूता गया था उसने पता नहीं क्या सोचा और दाहिने पैर का जूता जो उसके हाँथ में था पूरी ताकत से समुन्द्र में फेंक दिया और गुस्से से चिल्लाया, ‘लो अब तुम ही पहनना।’

आप यकीन नहीं करेंगे जैसे ही इसने अपने दाएं पैर का जूता समुन्द्र में फेंका, बाएं पैर का जूता आहिस्ता से तैरते हुए हमारे सामने हाज़िर था।

अब तो मित्र का मुंह देखने लायक था। बस का समय हो गया था, इंतज़ार भी नहीं कर सकते थे। हम वापस मुड़े और बस पकड़ने बढ़ पड़े।

जब तक समुन्द्र दिखता रहा वो पलट कर देखता रहा कि कहीं उसके दाएं पैर का जूता भी वापस आ जाए। इस बार उसकी हिम्मत जूता वापस समुन्द्र में फेकने की नहीं हुई। जूता हमारे हॉस्टल तक वापस आया।

उस घटना के बाद भी हम बंगाल की खाड़ी के कई तटों पर गए। मित्र बताता तो नहीं था पर उसकी नज़रें अपने दाएं पैर के जूते का इंतज़ार करती थी।

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