डिजिटल भारत I ग्वालियर का दुर्ग इतिहास के सैकड़ों-हजारों पन्नों को अपने आप में समेटे हुए है। कदम-कदम पर नजर आने वाले स्थलों में शामिल मानसिंह पैलेस तोमर राजवंश की कहानी बयां करता है। इस पैलेस का निर्माण 15वीं शताब्दी में राजा मानसिंह तोमर ने कराया था। गुजरे हुए इतिहास के अनुसार राजवंशों के बाद मानसिंह पैलेस पर राजपूतों का राज रहा। इनके बाद मुगल और फिर मराठाओं ने शासन किया। ब्रिटिश हुकूमत खत्म होने के बाद मानसिंह पैलेस की बागडोर सिंधिया राज परिवार ने संभाली। ग्वालियर दुर्ग घूमने के लिए पहुंचने वाले विदेशी सैलानियों के बीच मानसिंह पैलेस आकर्षण का केंद्र रहता है। बताया जाता है इस पैलेस पर की गई कारीगरी मनमोह लेती है। इसे देखने पर जहन में कई सवाल दौड़ने लगते हैं। हर सैलानी राजा रजवाड़ों के शासन की कल्पना करने लगता है। इतिहासकार बताते हैं कि ग्वालियर का दुर्ग उथल-पुथल भरे युग का गवाह रहा है।
अली बाबा और चालीस चोर नाम की एक कहानी आपने सुनी होगी. जिसमें अली बाबा नाम के एक गरीब लकड़हारे को चोरों का खज़ाना हासिल हो जाता है. कहानी में एक ख़ुफ़िया खज़ाना था, जिसके दरवाज़ों को खोलने के लिए एक पासवर्ड बोलना पड़ता था, ‘खुल जा सिमसिम’. कहानी के एक हिस्से में अली बाबा का एक दोस्त उसके ख़ज़ाने को चुराने की कोशिश करता है. लेकिन पासवर्ड पता न होने के कारण वो तहखाने के अंदर ही बंद रह जाता है, और चोर उसे मार डालते हैं. आज ऐसी ही एक और कहानी से आपको रूबरू करवाते हैं. जिसमें तहखाना भी है, तहखाने का कोड भी और मौत भी. सिर्फ इतना अंतर है कि ये कहानी असली है. और भारत में घटी थी.
अखबर के काल में ग्वालियर किले का उपयोग जेल के रूप में भी होता था। यह अखबर ही थे, जिन्होंने 1858 में इस किले को एक जेल में बदल दिया था। कई शाही लोगों को यहां कैद किया गया था। अखबर के चचेरे भाई को यहां कैद करके रखा गया था, वहीं उनके भतीजों को भी किले में मार दिया गया था।
किले की रक्षात्मक संरचना-
आपको जानकर हैरत होगी कि इस किले की संरचना रक्षात्मक है। कहने का मतलब ये है कि किला इतना मजबूत है कि अगर कोई किले पर अटैक करने की कोशिश करता है, तो किला गिरेगा नहीं, बल्कि सीधा खड़ा रहेगा।
किले के अंदर एक मंदिर है, जिसे सास बहू मंदिर के नाम से जाना जाता है। 9वीं शताब्दी में शाही सास और बहू के बीच विवाद हुआ कि किस देवता की पूजा करनी चाहिए। इस प्रकार उन्हें संतुष्ट करने के लिए यह अनेाखा मंदिर बनाया गया, जिसमें भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की पूजा की जाती है।