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डिजिटल भारत l चाहे कोई कुछ भी कहे, मगर बॉलिवुड वालों का साउथ फिल्मों के लिए किसी भी हाल में मोहभंग नहीं होता। बॉलिवुड के फिल्मकार लगातार साउथ फिल्मों का रीमेक बनाते जाते हैं। अतीत में कई साउथ फिल्मों के रीमेक ने बॉक्स ऑफिस को चमकाया है, मगर कई फिल्में ऐसी भी रहीं, जो बिजनेस नहीं कर पाईं, इसके बावजूद हिंदी फिल्मकार साउथ की फिल्म को एक सेफ ऑप्शन तो जरूर मानते ही हैं। यही वजह है कि हिंदी में MILI के रूप में 2019 में प्रदर्शित हुई मलयालम फिल्म ‘हेलेन’ की रीमेक देखने को मिल रही है।
सिनेमा में सितारों के बच्चों की जो मौजूदा पीढ़ी काम कर रही है, उसमें अगर अभिनेत्रियों में किसी ने अपने काम को वाकई गंभीरता से लिया है तो वह जान्हवी कपूर ही हैं। करियर की शुरुआत में ही एक के बाद एक स्त्री प्रधान फिल्मों में अभिनय करना और हर बार खुद को पिछली फिल्म से बेहतर करते रहना, आसान नहीं है। सिर्फ 25 साल की उम्र में अकेले अपने नाम पर पहले ‘गुंजन सक्सेना द कारगिल गर्ल’ फिर ‘गुडलक जेरी’ और अब ‘मिली’ को देखने के लिए दर्शकों को खींच लाना बड़ी बात है। अपनी पहली फिल्म ‘धड़क’ में भी जान्हवी के अभिनय ने लोगों को प्रभावित किया था। और, फिल्म ‘मिली’ में जान्हवी ने अपनी अदाकारी को एक पायदान और ऊपर करके अपने ही काम को बेहतर किया है। अगर ध्यान से जान्हवी की फिल्मों का डीएनए समझने की कोशिश करें तो वह खुद को एक ऐसी आत्मनिर्भर युवती के रूप में परदे पर पेश करती रही हैं, जो करोड़ों युवतियों में से किसी एक के लिए भी प्रेरणा बना, तो उनका कलाकार बनना सफल है।
फिल्म की हीरो जान्हवी कपूर
जान्हवी कपूर ही फिल्म ‘मिली’ की हीरो हैं। बाकी सब सहायक कलाकार हैं। जान्हवी ठीक ही कहती हैं कि श्रीदेवी की बेटी होने का फायदा जितना उनको मिलना था मिल चुका, अब बारी उनके हुनर के इम्तिहान की है। इस इम्तिहान में जान्हवी फिल्म ‘मिली’ में सम्मानसहित अंकों के साथ उत्तीर्ण हुई हैं। तारीफ इस बात की करनी होगी कि जान्हवी को जो किरदार मिलता है, वह उसके रंग में खुद को आसानी से सराबोर कर लेती हैं। फिल्म शुरू होने के कुछ ही देर बाद जान्हवी परदे पर जान्हवी दिखना बंद हो जाती हैं और यही उनके अभिनय की सबसे बड़ी जीत है।

मिली का किरदार आसान नहीं है। उसका संघर्ष वैसा ही है जैसा किसी बर्फीले पहाड़ के किसी पतली सी दरार में फंसे इंसान का होता है। विपरीत परिस्थितियों में अकेले फंसे इंसान का खुद को जिंदा रखने का संघर्ष सिनेमा का पसंदीदा विषय रहा है। ऐसी फिल्मों में अपनी छाप छोड़ जाने वाले कलाकारों में अब जान्हवी का नाम भी शामिल हो चुका है।

सहायक कलाकारों में कुछ खास देखने नहीं मिला
फिल्म ‘मिली’ की सबसे बड़ी कमजोरी है इसकी सपोर्टिंग कास्ट। सनी कौशल की जगह किसी नए चेहरे को लेने से फिल्म की ताजगी बढ़ सकती थी। सनी कौशल की फिल्म निर्माताओं तक अपने पिता स्टंट निर्देशक शाम कौशल के चलते सीधी पहुंच है और इसी वजह से उन्हें इस तरह के किरदार में ले लिया जाए, ये ठीक नहीं दिखता। इस किरदार की जो जरूरत है, उसे पूरा करने में सनी विफल रहे। यही हाल विक्रम कोचर, मनोज पाहवा और संजय सूरी के किरदारों का है। तीनों ने सिर्फ खानापूरी की है। हां, अनुराग अरोड़ा और हसलीन कौर का अभिनय प्रभावित करता है और ये दोनों ही फिल्मों को ठीक ठाक सहारा भी देते हैं।
ढलान पर ए आर रहमान का संगीत
तकनीकी टीम में सबसे कमाल का काम फिल्म के रूप सज्जा (मेकअप) विभाग का है। बर्फ में बदलती जा रही एक जीती जागती लड़की का पूरी फिल्म में बदलता रूप परदे पर इस तरह दिखाना कि लोगों को वाकई ऐसा होता दिखे, बहुत चुनौती का काम है। कला निर्देशन (आर्ट डायरेक्शन) भी उम्दा है। फिल्म देखकर लगता नहीं कि डीप फ्रीजर के भीतर की शूटिंग किसी सेट पर की जा रही है। सुनील कार्तिकेयन की सिनेमैटोग्राफी ने भी इस काम में काफी मदद की है। संगीत के मामले में फिल्म कमजोर है। ए आर रहमान एक बार फिर अपने नाम के हिसाब का संगीत बनाने में विफल रहे। जावेद अख्तर का नाम बतौर गीतकार देखकर भी फिल्म के गानों से उम्मीदें बंधी थी, लेकिन वह अपना सबसे बेहतर सृजनात्मक समय शायद जी चुके हैं।

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