डिजिटल भारत l ईरान के पट्रोलियम मंत्री जवाद ओउजी ने एक अजीबोगरीब फरमान जारी किया है. ईरान इंटरनेशनल के मुताबिक, मंत्री जवाद ओउजी ने फरमान में कहा कै कि अगर “पड़ोसी ज्यादा गैस इस्तेमाल करते हैं तो लोग इसकी जानकारी खुफिया एजेंसियों को दें.” पट्रोलियम मंत्री की तरफ से यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब सर्दियों के मौसम के बीच ईरान को भारी गैस की कमी का सामना करना पड़ रहा है. गैस की कमी से ईरान में घरोलू खपत से लेकर उद्योगों को परेशानी हो रही है.
ईरान बीते कई हफ़्तों से जबरदस्त ठंड की मार झेल रहा है. इसी दरमियान ईरान के तेल मंत्री जवाद ओउजी ने एक अजीबोग़रीब फ़रमान जारी किया है.
उन्होंने नागरिकों से अपील की है कि कोई भी शख़्स अगर ज़रूरत से ज़्यादा गैस का इस्तेमाल करते पाया गया, तो उसकी शिकायत पुलिस और इंटेलिजेंस एजेंसियों से की जा सकती है.
तेल मंत्री ने ये भी कहा कि जो लोग गैस का इस्तेमाल ज़रूरत से अधिक कर रहे हैं, उनके गैस कनेक्शन काट दिए जाएंगे.
ख़ुद गैस के एक बड़े भंडार पर बैठा ईरान अपने ही नागरिकों को पर्याप्त मात्रा में इसकी सप्लाई नहीं कर पा रहा है, लिहाज़ा इस कड़ाके की ठंड में ये एक बड़ा संकट बनकर उभरा है.
ऊर्जा बचाने के लिए स्कूल, कार्यालय बंद
ईरान सरकार ने 31 ईरानी प्रांतों में से आठ प्रांतों में ऊर्जा बचाने के लिए अपने कार्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों को बंद कर दिया है. प्रभावित प्रांतों में माजंदरान, इस्फहान, काज़्विन, पूर्वी अजरबैजान, अल्बोर्ज़, गिलान, कोम और दक्षिण खुरासान हैं. दरअसल, ईरान में गैस की कमी की समस्या पहले से ही है. देश में इतना बड़ा गैस भंडार होने के बावजूद ईरान कमजोर बुनियादी ढांचे के कारण उतनी गैस का उत्पादन नहीं कर पाता है.
ईरान इंटरनेशनल के अनुसार, गैस ले जाने के दौरान 25 फीसदी से ज्यादा गैस उड़ जाती है. इसके अलावा ईरान के सामने अमेरिका के द्वारा लगाए गए प्रतिबंध भी हैं. अमेरिकी प्रतिबंधों ने ईरान के लिए अपने गैस वितरण नेटवर्क को अपग्रेड करना मुश्किल बना दिया है, क्योंकि प्रतिबंध ईरान को नई तकनीकों तक पहुंचने में मुश्किल पैदा कर रहे हैं. .
ईरान के कट्टरपंथी राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी को पहले ही बीते कई महीनों से सरकार विरोधी प्रदर्शनों का सामना करना पड़ रहा है. अब इस नए मुद्दे ने उनकी मुसीबतों में और इजाफ़ा कर दिया है.
कड़ी सर्दी में गैस का अभाव
शून्य से कहीं नीचे तापमान और बर्फ़बारी की वजह से देश में गैस की मांग काफ़ी बढ़ी है. लेकिन हाल के दिनों में सप्लाई कई कारणों से कम हुई है, जिसकी वजह से कई क्षेत्रों में स्कूलों, सरकारी दफ़्तरों और सार्वजनिक सुविधाओं को बंद कर दिया गया है.
गैस की कमी की वजह से कई शहरों में बड़े पैमाने पर बिजली कटौती हुई है, वायु प्रदूषण में वृद्धि हुई और विरोध प्रदर्शनों में इज़ाफ़ा हुआ है.
गैस की किल्लत के कारण माज़ंदरान, इस्फ़हान, काज़्विन, पूर्वी अज़रबैजान, अल्बोर्ज़, गिलान, क़ोम और दक्षिण ख़ुरासान प्रांत प्रभावित हैं.
इससे जुड़े कई वीडियो भी सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए हैं, जिनसे पता चलता है कि सरकार कुछ शहरों में सर्दियों से निपटने के लिए लोगों को मदद दे रही है.
कुछ वीडियोज़ में दिखता है कि खाना पकाने और अन्य घरेलू ज़रूरतों के लिए बोतलबंद गैस की रिफ़िल पाने के लिए देश भर में उपभोक्ताओं की लंबी कतारें लगी हैं.
लोग गैस के लिए कई घंटों तक इन कतारों में खड़े रहकर इंतज़ार कर रहे हैं. कुछ वीडियो में प्रदर्शन करते हुए छात्रों की तस्वीरें भी सामने आई हैं.
नेशनल ईरानियन गैस’ कंपनी में उत्पादन, समन्वय और पर्यवेक्षण के निदेशक अहमद ज़मानी कहते हैं कि गैस का उत्पादन कम नहीं हुआ है, बल्कि होता ये है कि सर्दियों में इसकी मांग बहुत बढ़ जाती है.
हाल के एक बयान में उन्होंने कहा, “ईरान में औसतन 250 अरब क्यूबिक मीटर गैस की सालाना खपत होती है, अगर प्रतिदिन के लिहाज़ से देखा जाए, तो ये लगभग 68.5 करोड़ क्यूबिक मीटर होता है.”
वे कहते हैं, “काग़ज़ पर यह ईरान की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है. फिर भी देश ने सर्दियों के दौरान नियमित रूप से बिजली की कमी का अनुभव किया है. ईरान का प्राकृतिक गैस उत्पादन काफ़ी स्थिर है, लेकिन सर्दियों के महीनों में मांग आसमान छूती है.”
दाम बढ़ाना विकल्प नहीं
राष्ट्रपति रईसी के लिए गैस और तेल का दाम बढ़ाना लगभग असंभव है. विशेषज्ञ कहते हैं ये क़दम प्रशासन के लिए भारी पड़ सकता है.
भारतीय मूल के आसिफ़ शुजा, सिंगापुर में ‘मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट’ थिंक टैंक में ईरान के मामलों के विशेषज्ञ हैं. वो कहते हैं, “ईरान अपने नागरिकों को तेल और गैस में भारी सब्सिडी देता है. मध्य-पूर्व के देशों की तुलना में ये छूट बहुत अधिक है. और ये छूट ईरान 1979 में आए इस्लामी क्रांति के समय से ही दे रहा है.”
शुजा कहते हैं, “सरकार जब भी सब्सिडी में कटौती की कोशिश करती है या जैसे ही तेल और गैस के दाम थोड़ा बढ़ाने की बात होती है, तो देश में इसका बड़े पैमाने पर विरोध होने लगता है, जैसा कि 2019 में देखा गया. ईरान में प्रति व्यक्ति गैस की ख़पत रूस और अमेरिका के बाद सबसे अधिक है.”
सालों से ईरान पर लगी आर्थिक पाबंदियों के कारण उसकी अर्थव्यवस्था कमज़ोर हो गई है. इसके अलावा उद्योग और कारखानों में लगी मशीनें और सिस्टम पुराने हो चुके हैं. इनके आधुनिकीकरण की सख़्त ज़रूरत है.
आसिफ़ शुजा कहते हैं, “प्रतिबंध की वजह से इस सेक्टर के विकास के लिए जो आधुनिक टेक्नोलॉजी चाहिए, वो इनके पास नहीं है. ईरान प्रोडक्शन में पुरानी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रहा है. इसकी वजह से गैस की बर्बादी भी खूब होती है.”
शुजा बताते हैं, “ट्रांसमिशन के दौरान 25 प्रतिशत गैस बर्बाद हो जाती है. टेक्नोलॉजी को आधुनिक बनाने के लिए उन्हें 40 अरब डॉलर की ज़रूरत है, लेकिन वो इस पर केवल तीन अरब डॉलर ही खर्च कर सका है.”
सियासी असर
क्या गैस की सख़्त कमी के कारण हो रहे प्रदर्शन का सियासी तौर पर प्रभाव हो सकता है? ख़ास तौर से एक ऐसे समय में जब पिछले सितंबर से ईरान की मोरैलिटी पुलिस की हिरासत में 22 वर्षीय महसा अमिनी की मौत के बाद महिलाओं के प्रति शासन के व्यवहार और अन्य मुद्दों पर दशकों से चली आ रही कड़वाहट की पृष्ठभूमि में, राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शनों ने देश को झकझोर कर रख दिया है.
इस पर आसिफ़ शुजा कहते हैं, “सियासी माहौल पहले से ही गर्म है और उसमें अगर आप गैस का संकट जोड़ें तो ईरान की सरकार के लिए स्थिति बहुत गंभीर हो सकती है.”
अली रज़ा मसनवी के मुताबिक़, ईरान के इस्लामी प्रशासन के ख़िलाफ़ नाराज़गी अपने चरम पर है और गैस के संकट ने इसमें आग में घी डालने जैसा काम किया है.
वे कहते हैं, “सबसे अधिक प्रभावित इलाक़ा वो है जहाँ से राष्ट्रपति रईसी आते हैं. उनके समर्थक भी अब उनके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने लगे हैं. अगर इस संकट ने तूल पकड़ा तो उनके लिए सियासी पेचीदगी बढ़ सकती है.”
इस संकट से ईरान निकले कैसे?
विशेषज्ञों की राय है कि ईरान को अपनी विदेश नीति की सामान्य समीक्षा करनी चाहिए और आर्थिक स्थिरता और विकास को सक्षम करने के लिए अपनी विदेश नीतियों को बदलना चाहिए.
उनका कहना है कि तेहरान को परमाणु समझौते को फिर से लागू करने के लिए आसान शर्तें रखनी चाहिए, ताकि वो अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के शिकंजे से उसे थोड़ी राहत मिल सके.
जानकार ये भी कहते हैं कि विदेशी कंपनियों से आर्थिक मदद और आधुनिक तकनीक के बिना आने वाले सालों में ईरान को बढ़ते ऊर्जा संकट का सामना करना पड़ेगा.