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डिजिटल भारत l जी7-ईयू की बैठक में कुछ राजनयिकों ने 70 रुपये प्रति बैरल की मूल्य सीमा लगाने की बात कही। अगर ये सीमा तय हुई, तो इससे अधिक दाम पर रूसी तेल की खरीदारी पर रोक लग जाएगी। लेकिन ईयू में इस बारे में फैसला तभी हो सकता है, जब इसके सभी 27 सदस्य देश इस पर सहमत हों। जी-7 ने यूक्रेन पर हमला करने के दंड के रूप में रूसी तेल पर प्राइस कैप लगाने का एलान किया है। योजना यह है कि मूल्य सीमा लागू होने के बाद पश्चिमी कंपनियों से ऋण और बीमा की सुविधा तभी मिलेगी, जब कोई देश तेल तय सीमा कीमत तक पर ही खरीद रहा हो।

समझा जाता है कि इस बारे में ईयू जो कीमत तय करेगा, जी-7 देश उसे स्वीकार कर लेंगे। वैसे इस मूल्य सीमा को जी-7 और ईयू के बाहर के सभी देश स्वीकार करेंगे, इस पर शक है। यूक्रेन पर हमले के बाद भारत और चीन जैसे देशों ने रूस से तेल का आयात बढ़ा दिया है। इन देशों के मूल्य सीमा पर राजी होने की संभावना कम मानी जा रही है। अमेरिका ने कहा है कि रूस से निर्यात होने वाले तेल की क़ीमतों पर लगाई गई सीमा का “असर पुतिन के सबसे महत्वपूर्ण राजस्व स्रोत पर होगा.”

अमेरिका की वित्त मंत्री जैनेट येलेन ने कहा कि कई महीनों की कोशिश के बाद आधिकारिक तौर पर पश्चिम के सहयोगी मुल्कों ने शुक्रवार को तेल की क़ीमतों पर सीमा लगाने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है.

इस समझौते के अनुसार ये मुल्क समुद्र के रास्ते निर्यात किए जाने वाले रूसी तेल की क़ीमत 60 डॉलर प्रति बैरल से अधिक नहीं देंगे. रूसी तेल की क़ीमतों पर ये सीमा पांच दिसंबर या फिर इसके तुरंत बाद लागू हो जाएगी.

जैनेट येलेन ने कहा कि इससे कम और मध्यम आय वाले उन मुल्कों को ख़ास फायदा होगा जो तेल और गैस की और अनाज की बढ़ती क़ीमतों की परेशानी झेल रहे हैं.

वॉल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक बुधवार को इस मुद्दे पर ईयू में जो गतिरोध दिखा, वह इस मसले पर पहले से जारी मतभेदों का नतीजा है। दरअसल, कई यूरोपीय देश अब ऐसा कदम उठाने के पक्ष में नहीं हैं, जिससे उनका ऊर्जा संकट और बढ़े।

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