डिजिटल भारत I बुद्धदेव भट्टाचार्य की मृत्यु और उनके राजनीतिक प्रभाव
पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का निधन 8 अगस्त को उनके बालीगंज स्थित पाम एवेन्यू आवास पर हो गया। 80 वर्षीय भट्टाचार्य, जो लंबे समय से बीमार चल रहे थे, के निधन से वामपंथी राजनीति के एक महत्वपूर्ण अध्याय का अंत हो गया है। उनके निधन ने न केवल राजनीतिक दुनिया बल्कि सांस्कृतिक क्षेत्र में भी एक रिक्तता पैदा की है।
भट्टाचार्य का राजनीतिक करियर और वामपंथी धारा
भट्टाचार्य का राजनीतिक करियर वामपंथी राजनीति के इतिहास में महत्वपूर्ण रहा है। वे पहले ज्योति बसु की कैबिनेट में एक अहम मंत्री रहे और बाद में 2000 से 2011 तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के तौर पर कार्यरत रहे। उनकी नेतृत्व शैली और नीतियों ने राज्य की राजनीति को गहराई से प्रभावित किया।
उनके राजनीतिक विचारों और कार्यशैली को लेकर उनके पार्टी के कुछ सदस्य उन्हें ‘मार्क्सवादी कम, बंगाली ज़्यादा’ मानते थे। भट्टाचार्य की पहनावे और बातचीत के सलीके के चलते उन्हें कुछ लोगों द्वारा ‘भद्रलोक’ भी कहा जाता था। उनके कार्यकाल के दौरान आर्थिक उदारवाद और पूंजीवाद के साथ तालमेल बिठाने के कारण कुछ कॉमरेड उन्हें ‘बंगाली गोर्बाचोव’ के उपनाम से भी जानते थे।
सांस्कृतिक योगदान और फिल्म प्रेम
भट्टाचार्य का राजनीति के साथ-साथ एक गहरा सांस्कृतिक जुड़ाव भी था। मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए, उन्होंने पश्चिम बंगाल में सिनेमा के प्रति अपने प्यार को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनकी फिल्मों के प्रति गहरी रुचि ने उन्हें एक समर्पित फिल्म प्रेमी बना दिया था।
भट्टाचार्य का फिल्म संग्रह विविधता से भरा हुआ था, जिसमें मिखाइल अजेंस्टाइन की “बैटलशिप पोटेमकिन” से लेकर कोस्टा गव्रास की “ज़ेड” और फ्रांस्वा ट्रूफो, जीन-ल्यूक गोडार्ड, विटोरियो दे सिका, लुइस बुनुएल, अकीरा कुरोसावा, और फ़ेडरिको फ़ेलिनी जैसे दिग्गज फिल्मकारों की फिल्में शामिल थीं। भारतीय फिल्मकारों की फिल्में भी उनके संग्रह का हिस्सा थीं, जो उनके सांस्कृतिक प्रति गहरी समझ और सम्मान को दर्शाती हैं।
फ़िल्म स्क्रीनिंग की शुरुआत और ऋत्विक घटक
भट्टाचार्य के मुख्यमंत्री रहते हुए, उन्होंने मशहूर फ़िल्मकारों की फ़िल्मों की विशेष स्क्रीनिंग की शुरुआत की। उनकी यह पहल राज्य में सिनेमा के प्रति एक नई जागरूकता और सम्मान का प्रतीक बनी।
उनके इस प्रयास का एक महत्वपूर्ण उदाहरण ऋत्विक घटक की फ़िल्मों की स्क्रीनिंग है। भट्टाचार्य ने इस बात का उल्लेख किया कि अगर ऋत्विक घटक की फ़िल्मों को उनके जीवनकाल में उचित प्लेटफ़ॉर्म मिलता, तो वे शायद आर्थिक समस्याओं का सामना नहीं करते। 1990 के दशक के मध्य में, नंदन में ऋत्विक घटक की याद में हुए फ़िल्म समारोह का पूरा मुनाफ़ा उनके परिवार को सौंपा गया था। यह कदम दर्शाता है कि भट्टाचार्य न केवल एक प्रभावी राजनीतिज्ञ थे, बल्कि एक संवेदनशील सांस्कृतिक संरक्षक भी थे।
भट्टाचार्य की विरासत और प्रभाव
भट्टाचार्य का निधन वामपंथी राजनीति और सांस्कृतिक क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण अंतर पैदा करता है। उनके राजनीतिक विचार और सांस्कृतिक योगदान ने पश्चिम बंगाल की राजनीति और समाज में गहरा प्रभाव डाला। उनकी नीतियों और पहल के कारण उन्होंने राज्य में विकास और सांस्कृतिक उन्नति के कई रास्ते खोले।
भट्टाचार्य की विरासत केवल उनके राजनीतिक कार्यकाल तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उन्होंने समाज और संस्कृति पर भी एक अमिट छाप छोड़ी है। उनकी फिल्म प्रेम और सांस्कृतिक संवेदनशीलता ने उन्हें एक विशिष्ट नेता और समाज सुधारक बना दिया था।
निष्कर्ष
बुद्धदेव भट्टाचार्य का निधन पश्चिम बंगाल के राजनीतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य के लिए एक बड़ा झटका है। उनके योगदान को याद करते हुए, हमें उनकी राजनीति और सांस्कृतिक पहल दोनों को समझना होगा। उनकी नीतियों और सांस्कृतिक प्रयासों ने पश्चिम बंगाल के समाज को एक नई दिशा दी और उन्होंने एक ऐसी विरासत छोड़ी है जिसे आने वाली पीढ़ियाँ भी याद रखेंगी।
भट्टाचार्य की स्मृति में, हमें उनकी विचारधारा और योगदान को आगे बढ़ाते हुए समाज और संस्कृति की सेवा करनी चाहिए। उनकी विदाई से पहले उनके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना और उनके योगदान को मान्यता देना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।