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डिजिटल भारत I लेटरल एंट्री के माध्यम से पद भरने पर सरकारी और विपक्षी दलों के बीच विवाद हाल ही में, केंद्र सरकार ने 45 मध्य-स्तरीय पदों को भरने के लिए लेटरल एंट्री के माध्यम से आवेदन आमंत्रित किए हैं। इस कदम पर कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दलों ने सरकार की आलोचना की है, जबकि सरकार ने इन आलोचनाओं को नकारते हुए कहा है कि यह प्रक्रिया नई नहीं है और पूर्व की सरकारों द्वारा भी अपनाई गई है।
विवाद की पृष्ठभूमि
लेटरल एंट्री, जिसमें बाहरी पेशेवरों को सरकारी सेवाओं में शामिल किया जाता है, एक विवादास्पद मुद्दा बन गया है। सरकार ने यूपीएससी के माध्यम से आवेदन आमंत्रित किए हैं ताकि 45 मध्य-स्तरीय पदों को भरा जा सके। इस निर्णय की कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने आलोचना की है, उनका कहना है कि यह सरकारी नौकरी में बाहरी लोगों की भर्ती को बढ़ावा देने की एक चाल है, जो स्वदेशी कैंडीडेट्स के अवसरों को कम करता है।
सरकारी पक्ष
सरकारी सूत्रों का कहना है कि लेटरल एंट्री की प्रक्रिया नई नहीं है और इसका उपयोग विभिन्न सरकारों द्वारा समय-समय पर किया गया है। केंद्र सरकार का तर्क है कि कांग्रेस के शासन के दौरान भी कई प्रमुख टेक्नोक्रेट, अर्थशास्त्री और विशेषज्ञ सरकारी पदों पर नियुक्त किए गए थे। इनमें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व योजना आयोग के सदस्य एनके सिंह, सैम पित्रोदा, वी कृष्णमूर्ति, बिमल जालान, कौशिक बसु, अरविंद विरमानी, रघुराम राजन, मोंटेक सिंह अहलूवालिया, और नंदन नीलेकणि शामिल हैं।
कांग्रेस और विपक्ष की आपत्ति
कांग्रेस और विपक्षी दलों का कहना है कि लेटरल एंट्री का उपयोग स्वदेशी कैंडीडेट्स के अधिकारों की अनदेखी कर किया जा रहा है और इससे सरकारी सेवाओं में बाहरी प्रभाव बढ़ेगा। उनका आरोप है कि यह कदम सरकारी पदों पर भर्ती की पारदर्शिता और मेरिट को प्रभावित कर सकता है।
भर्ती की पृष्ठभूमि में टेक्नोक्रेट और विशेषज्ञ
1. सैम पित्रोदा: 1980 के दशक में राजीव गांधी के प्रशासन के दौरान भारत सरकार में लाए गए सैम पित्रोदा ने देश की दूरसंचार क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें राष्ट्रीय ज्ञान आयोग का अध्यक्ष और पीएम के सलाहकार के रूप में भी काम करने का अनुभव है।
2. बिमल जालान: बिमल जालान ने आईएमएफ और विश्व बैंक में मुख्य आर्थिक सलाहकार के तौर पर कार्य किया। वे भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर भी रहे (1997-2003) और उनके अनुभव ने उन्हें एक महत्वपूर्ण सरकारी भूमिका में रखा।
3. कौशिक बसु: प्रमुख अर्थशास्त्री कौशिक बसु को 2009 में सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया और बाद में वे विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री बने।
4. रघुराम राजन: रघुराम राजन ने भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में 2013 से 2016 तक कार्य किया। उन्हें 2012 में वित्त मंत्रालय में सीईए के रूप में नियुक्त किया गया।
5. अन्य विशेषज्ञ: वी कृष्णमूर्ति, अरविंद विरमानी, मोंटेक सिंह अहलूवालिया और नंदन नीलेकणि जैसे विशेषज्ञों ने विभिन्न महत्वपूर्ण सरकारी और अंतर्राष्ट्रीय पदों पर कार्य किया है।
आगे की दिशा
लेटरल एंट्री की प्रक्रिया की उपयोगिता और प्रभाव पर गंभीर विचार-विमर्श की आवश्यकता है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य सरकारी सेवाओं में विविधता लाना और विशेषज्ञता का लाभ उठाना है, लेकिन इसे लागू करने की पद्धति और पारदर्शिता पर सवाल उठ रहे हैं। भविष्य में यह आवश्यक होगा कि सरकारी भर्ती की प्रक्रियाओं में सुधार किया जाए ताकि सभी पक्षों के हितों की रक्षा की जा सके और सभी योग्य कैंडीडेट्स को समान अवसर प्रदान किया जा सके।
निष्कर्ष
लेटरल एंट्री एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो सरकारी सेवाओं में विशेषज्ञता और विविधता लाने में मदद करती है। हालांकि, इस प्रक्रिया को लेकर विपक्ष की चिंताओं और आलोचनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। एक पारदर्शी और प्रभावी भर्ती प्रक्रिया सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है, ताकि सभी प्रतिभाशाली कैंडीडेट्स को समान अवसर मिल सकें और सरकारी सेवाओं में उच्चतम गुणवत्ता बनी रहे।

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