डिजिटल भारत l कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का जून महीने में हुई कनाडा के खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को “भारत सरकार के एजेंटों” से जोड़ने वाला सनसनीखेज आरोप, दोनों देशों के बीच सुलझते रिश्तों में एक नई गिरावट का संकेत देता है। ट्रूडो के आरोप ने घटनाक्रमों की एक श्रृंखला शुरू कर दी है। उन्होंने कहा कि सबूत भारत के साथ साझा किए गए थे और पिछले सप्ताह के अंत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ हुई द्विपक्षीय बैठक में भी इस मसले को उठाया गया था। कनाडा द्वारा एक वरिष्ठ भारतीय राजनयिक को निष्कासित करने के बाद, भारत ने मंगलवार को कनाडा के उच्चायुक्त को तलब किया और कनाडा के स्टेशन प्रमुख को जासूसी के आरोप में निष्कासित कर दिया। संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया, जो “फाइव आइज” खुफिया सूचनाओं के साझाकरण से संबंधित समझौते में कनाडा के साथ भागीदार हैं, ने इस मसले पर “गहरी चिंता” व्यक्त की है। विदेश मंत्रालय ने कनाडा के राजनयिकों पर “भारत विरोधी” गतिविधियों में लिप्त होने का भी आरोप लगाया है, जिससे यह संकेत मिलता है कि और ज्यादा संख्या में राजनयिक जांच के दायरे में हो सकते हैं।
ये सवाल इसलिए भी अहम हो जाता है क्योंकि किसी विकसित या जी-7 देश ने इससे पहले कभी सार्वजनिक तौर पर ऐसे गंभीर आरोप भारत पर नहीं लगाए हैं. साथ ही कंज़र्वेटिव पार्टी के नेता पिएरे पोलिवियरे ने भी इन आरोपों पर ट्रूडो से और जानकारी मांगी है. वो बोले- प्रधानमंत्री ने अब तक कोई तथ्य उपलब्ध नहीं करवाए हैं, हमें और तथ्य देखने की ज़रूरत है. इस कहानी में यही समझने की कोशिश करेंगे कि ट्रूडो के ऐसा क़दम उठाने के मायने क्या हैं और साथ ही जानेंगे कि भारत-कनाडा के संबंधों में आई तल्खी को भारत समेत विदेशी मीडिया कैसे देख रहा है?
ट्रूडो की मंशा
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उन चमकते सितारों की कहानी जिन्हें दुनिया अभी और देखना और सुनना चाहती थी. दिनभर: पूरा दिन,पूरी ख़बर
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द हिंदू अख़बार में भारत-कनाडा संबंधों पर संपादकीय छपा है. इस संपादकीय के मुताबिक़, ट्रूडो की टिप्पणी से भारत-कनाडा संबंध ख़राब स्थिति में पहुँच गए हैं. कनाडा के साथ इंटेलिजेंस शेयरिंग समझौते वाले समूह ‘फाइव आइज’ के सदस्य देश अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने भी चिंता ज़ाहिर की है. ट्रूडो ने भारत पर जो टिप्पणी की, उसे संसद में उनके राजनीतिक विरोधियों का भी समर्थन हासिल हुआ. ये भी संभावना है कि 2025 के चुनावों में अगर यह सरकार सत्ता से बाहर हुई तो ये मामला ठंडे बस्ते में पड़ा रहेगा. पाकिस्तान के मामले में इस तरह से आरोप लगाना, सार्वजनिक तौर पर आमने-सामने आ जाना आम बात है. मगर बात यहाँ कनाडा की हो रही है, जो नेटो का सदस्य है, जहाँ भारतीय मूल के काफ़ी लोग रहते हैं. ऐसे में विवाद बढ़ेगा तो इसका बड़ा असर होगा. द हिंदू के संपादकीय में लिखा है कि ऐसे कठिन पल में अगले कुछ क़दम सोच समझकर उठाने चाहिए. ट्रूडो की प्राथमिकता ये होगी कि वो भारत पर लगाए गंभीर आरोपों को सार्वजनिक तौर पर साबित करें या फिर ये स्वीकार करें कि वो ऐसा करने में असक्षम हैं. भारत का कहना रहा है कि कनाडा की ज़मीन का इस्तेमाल भारत-विरोधी, अलगाववादी खालिस्तानी समूहों की गतिविधियों के लिए होता है. ये बात कई बार साबित भी हुई है. इसकी शुरुआत 1980 से शुरू होती है और हाल के दिनों में भारतीय राजनयिकों और भारतीय कम्युनिटी सेंटर पर हुए हमलों तक जारी रहती है. ट्रूडो की मंशा
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उन चमकते सितारों की कहानी जिन्हें दुनिया अभी और देखना और सुनना चाहती थी. दावा: द न्यूयॉर्क टाइम्स
द न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारत-कनाडा संबंधों के ख़राब होने पर एक लंबी रिपोर्ट की है. इस रिपोर्ट में कनाडा के आरोपों को तोप के गोलों की तरह बताया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक़, कनाडा अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे अपने सहयोगियों से भारत को चुनौती देने के लिए साथ आने को कह रहा है. वहीं भारत के लिए पश्चिमी देश, ख़ासकर कनाडा सिख अलगाववादी संगठनों की पनाहगाह बना हुआ जो भारत के लिए ख़तरा है. न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है, अगर निज्जर की हत्या के पीछे भारत का हाथ निकला तो ये भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए शर्मनाक स्थिति होगी. भारत की ख़ुफिया एजेंसी रॉ पर पहले भी दूसरे देशों में जाकर हत्या करने की साजिश के आरोप लगते रहे हैं. पूर्व सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि पश्चिमी देशों में हरदीप सिंह निज्जर का मामला पहला ऐसा मामला होगा, जिसके बारे में पता चल पाया. अख़बार ने लिखा है, रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत सरकार लंबे वक़्त से ये कहती रही है कि खालिस्तान के मुद्दे को बस पंजाब में मामूली सा समर्थन हासिल रहा है. ये बात अलग है कि जब 2020-2021 में सिख किसानों के नेतृत्व में किसान आंदोलन हुआ तो सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने किसानों को खालिस्तानी साबित करने की कोशिश की.
सुरक्षा का सवाल
पूर्व भारतीय राजदूत केसी सिंह ने द न्यूयॉर्क टाइम्स से बात करते हुए कनाडा के आरोपों को गंभीर बताया. केसी सिंह ने कहा, ”निज्जर की हत्या के बाद ये साफ़ था कि ये मुद्दा उठेगा. इस मामले में सिख संगठनों ने भारतीय राजनयिकों पर उंगली उठाई थी और कनाडा के नेताओं पर दबाव बनाया था.” केसी सिंह ने कहा, ”भारत कनाडा में खालिस्तान समर्थकों से नाराज़ रहता है. वहीं कनाडा अपने नागरिकों पर मंडराते ख़तरे और संप्रभुता का हवाला देता है. दोनों देशों के बीच दूरियां बढ़ गई हैं.” द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में खालिस्तान आंदोलन के 1980 के दौर में हिंसक होने, स्वर्ण मंदिर पर उग्रवादियों के क़ब्ज़े और इंदिरा गांधी के सैन्य कार्रवाई के फ़ैसले का भी ज़िक्र किया गया है. 1985 में टोरंटो से लंदन की फ्लाइट में बम लगाने का आरोप भी खालिस्तानी अलगाववादियों पर लगता रहा है. इस हादसे में 300 लोगों की मौत हो गई थी. भारतीय अधिकारियों ने कहा कि ऐसे संगठनों के ख़िलाफ़ घरेलू राजनीति के चलते एक्शन नहीं लिया जाता है. ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में भी सिख समुदाय ताकतवर हो रहा है. भारत की ज़िम्मेदारी
वॉशिंगटन पोस्ट ने भारत-कनाडा पर एक विश्लेषण छापा है. इस विश्लेषण में मिहिर शर्मा लिखते हैं- ट्रूडो का भारत पर आरोप लगाना कई कारणों से चौंकाने वाला रहा. इनमें एक कारण ये भी है कि हम में से ज़्यादातर को ये लगता है कि हम अच्छे लोग हैं और हमारी सरकार ऐसे किसी काम को नहीं करती. अगर भारत ने वाक़ई पश्चिमी देश की ज़मीन पर ऐसा काम किया है तो इससे टकराव और ज़्यादा बढ़ जाएगा. सरकार के ताक़तवर रवैये के समर्थक भी इस बात से इनकार नहीं करेंगे. पीएम मोदी अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मामले में भारत के पारंपरिक रवैये को बदलने की कोशिश में दिखते रहे हैं. 2019 में कश्मीर में हुए हमले के बाद ‘घर में घुसकर मारेंगे’ जैसी बातों का भी प्रचार हुआ. सब जानते हैं कि पीएम मोदी का इशारा पड़ोसी देश में पनाह लिए हुए चरमपंथियों की ओर था. इसके बाद पाकिस्तान की ज़मीन पर एयर स्ट्राइक भी की गई. भारत-कनाडा संबंध
अमेरिका की प्रतिष्ठित पत्रिका टाइम ने भारत-कनाडा संबंधों के टूटने पर एक विस्तृत रिपोर्ट की है. रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत कनाडा संबंध बिगड़ने की शुरुआत जी-20 सम्मेलन के दौरान तब ही हो गई थी, जब पश्चिमी देशों की तरह औपचारिक तौर पर मोदी और ट्रूडो के बीच द्विपक्षीय वार्ता नहीं हुई थी. इस मुलाक़ात में दोनों नेताओं ने एक-दूसरे से गहरी चिंता व्यक्त की थी. जानकारों का कहना है कि कनाडा से व्यापार और मुल्क में मौजूद भारतीय मूल के लोगों की बड़ी संख्या के चलते जो रिश्ते थे, वो बीते सालों में कमज़ोर होते चले गए हैं. विलसन सेंटर थिंक टैंक में साउथ एशिया इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर माइकल कुगलमैन ने कहा, ”कनाडा में सिख एक्टिविज़्म का बढ़ना और भारत की चिंताओं का समाधान तलाशने की अनिच्छा ने दोनों देशों के संबंधों को अब गहरे संकट में ढकेल दिया गया है. छुरियां निकल चुकी हैं.”
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