डिजिटल भारत l राहुल गांधी कौन सी सीट छोड़ेंगे और कहां से सांसद बने रहेंगे? इस पर फैसला करने के लिए कांग्रेस ने 13 दिन का समय लिया। निर्णय लेने में इतने दिन लगे इसका अर्थ स्पष्ट है कि यह फैसला बड़ा होगा
प्रियंका गांधी चुनावी राजनीति में क़दम कब रखेंगी, इसका इंतज़ार दशकों से था. सोमवार को कांग्रेस पार्टी ने घोषणा कर दी कि प्रियंका गांधी केरल के वायनाड लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगी.
बड़े पैमाने पर 2019 में हुए थे बदलाव
2019 के लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस में बड़े पैमाने पर सांगठनिक बदलाव हुए। कई पुराने चेहरों को हाशिये पर डाल दिया गया। यूपी के तमाम बड़े नेताओं ने कांग्रेस छोड़ दी। नए चेहरों को जिम्मेदारी दी गई, जिसमें भी एक विचारधारा खास के लोगों की संख्या ज्यादा थी। इस तरह के बदलावों के दौर से कांग्रेस गुजरी। 2022 का चुनाव इसी नए नवेले संगठन की बदौलत लड़ा गया था, जिसमें पार्टी का प्रदर्शन खासा निराशाजनक रहा था और विधानसभा में उसकी संख्या सिमटकर दो रह गई थी।
इस घोषणा के साथ ही दशकों के इंतज़ार पर विराम लग गया.
चार जून को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जब यूपी की रायबरेली और केरल की वायनाड सीट से विजेता घोषित किए गए तभी तय हो गया था कि उन्हें एक सीट छोड़नी होगी.
पारंपरिक सीट गंवाने का रिस्क नहीं
राहुल गांधी ने रायबरेली सीट से सांसद बने रहने का फैसला कर के कांग्रेस और गांधी परिवार की पारंपरिक सीट गंवाने का ख़तरा टाल दिया है। राहुल गांधी अगर रायबरेली की सीट छोड़ते तो यहां उपचुनाव होता। प्रियंका गांधी भले ही एक मजबूत दावेदार के तौर पर देखी जातीं। लेकिन पारंपरिक सीट गंवाने का रिस्क बना रहता। लोकतंत्र में जनता जनार्दन होती है, और जब वह मन बदलती है तो दिग्गज से दिग्गज राजनेता को जमीन पर पटक देती है।
वायनाड में आसान होगी प्रियंका की राह
कांग्रेस की इस फैसले ने जिस तरह से रायबरेली में पारंपरिक सीट गंवाने का रिस्क टाला है। ठीक उसी तरह पहली बार चुनावी मैदान में उतरने जा रही प्रियंका गांधी की हार के रिस्क को भी कम किया है। वायनाड सीट पर हिंदू-मुस्लिम वोटर्स करीब 40-40 फीसदी हैं। इसके अलावा यहां 20 प्रतिशत मतदाता ईसाई समुदाय से भी हैं। सियासी हलकों में चर्चा है कि यही 20 प्रतिशत वोट यहां निर्णायक भूमिका निभाता है जो कि एकमुश्त कांग्रेस के खाते में पड़ता है। बीजेपी का यहां उतना जनाधार नहीं है। जबकि हिंदू और मुस्लिम वोटर्स लेफ्ट और कांग्रेस को लगभग बराबर समर्थन करता है। यही वजह है कि यहां प्रियंका गांधी के लिए राह आसान होगी।