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शारदीय नवरात्र के अवसर पर कटनी और जबलपुर जिले के सीमा पर ग्राम दशरमन में विराजी महादेवी मां के मंदिर में हजारों की संख्या में भक्त मां से आशीर्वाद लेने पहुंच रहे है यह मंदिर हजारों वर्ष पूर्व का है पहले महादेवी माता एक छोटी सी पत्थर की सिला में थी लेकिन धीरे-धीरे इनका आकार बढ़ता गया और आज वह एक विशाल सिला के रूप में है जो कि आज भी ऊपर से खुली हुई है मंदिर के चारों तरफ घना जंगल पश्चिम की तरफ नदी और पहाड़ में विराजी महादेवी माता लोगों को बहुत भा रही हैं और लोग यहां पर अपनी मनोकामना पूर्ण होने की आस्था लेकर दूर-दूर से पहुंच रहे हैं बुजुर्गों ने बताया कि यहां पर पूर्व में शेर और गाय की लड़ाई हुई थी जिस के पद चिन्ह आज भी चट्टानों पर मौजूद है गाय के खुर और शेर के पंजे चट्टान पर स्पष्ट दिखाई देते हैं महादेवी समिति अध्यक्ष पंडित रमेश गर्ग ने बताया की यह काफी पुराना मंदिर है इस मंदिर से अनेकों चमत्कारी कथाएं जुड़ी हैं यह पहाड़ में होने के कारण अत्यंत रमणीक स्थान है इन्हीं कारणों से यह आस्था का केंद्र बना हुआ है

ब्रिटिश शासनकाल में बनी थी महादेवी माता की मढ़िया –


ढीमरखेड़ा तहसील के दशरमन गांव में मां महादेवी का स्थान है। यहां पर माता को लोग शिला के रूप में पूजते हैं। लगभग 25 फीट ऊंची शिला को लेकर लोगों की मान्यता है, इसका कद हर साल बढ़ता जाता है। पहले यहां पर शिला मात्र 5 से 6 फीट की थी। लगभग 200 वर्ष पुराने स्थान पर अंग्रेजी शासनकाल में बनवाई गई छोटी से मढ़िया है, जिसके निर्माण के समय दूध व खून की धारा निकली तो काम बंद कर दिया गया था। कतला नदी के किनारे बने इस स्थान पर हर साल बसंत पंचमी को मेला लगता है। मां महादेवी का स्थान ढीमरखेड़ा के जंगलों के बीच है और प्राकृतिक स्थल का आनंद उठाने भी लोग यहां पर पहुंचते हैं

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