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हिंदी दिवस: हिंदी भाषा, राष्ट्रवाद और व्यवहारिकता के बीच की कड़ी को समझें

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नई दिल्ली: आज 14 सितंबर को पूरा देश हिंदी दिवस मना रहा है। इसकी शुरुआत 1949 में हुई, जब हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने फैसला किया कि हिंदी भारत की राजभाषा होगी। राजभाषा पर चर्चा के दौरान 13 सितंबर को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि “किसी विदेशी भाषा से कोई राष्ट्र महान नहीं हो सकता। कोई भी विदेशी भाषा आम लोगों की भाषा नहीं हो सकती है। भारत के हित में, भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के हित में, ऐसा राष्ट्र बनाने के हित में जो अपनी आत्मा को पहचाने, जिसमें आत्मविश्वास हो, जो संसार के साथ सहयोग कर सके, उसके लिए हमें हिंदी को अपनाना चाहिए।” पंडित नेहरू ने हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाए जाने का ऐलान किया और पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया।

हिंदी भाषा और राष्ट्रवाद

विदेशों में अपनी मातृ भाषा में प्रोफेशनल एजुकेशन दी जाती है और इसी से प्रेरित होकर भारत में भी हिंदी भाषा में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की शुरुआत की गई थी। लेकिन, ये कोशिश कामयाब नहीं हो सकी। भोपाल के अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय ने साल 2016 में इसकी शुरुआत की। ये देश का पहला विश्वविद्यालय है, जहां हिंदी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की शुरुआत की गई।

राष्ट्रवाद से प्रेरित ये प्रयोग सफल नहीं हो सका और कई परेशानियों के चलते कोर्स बंद करना पड़ा। इसके बाद इन छात्रों को अन्य संस्थानों में एडजस्ट कर दिया गया। सिविल, इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल में कुल 90 सीटी के लिए आवेदन मांगे गए थे, लेकिन सिर्फ 12 छात्रों ने आवेदन किया था। छात्रों की कम संख्या और साथ ही कोर्स को ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन की मंजूरी भी हासिल नहीं थी। इसलिए, इस बात की चर्चा ज़ोर पकड़ने लगी कि हिंदी में इंजीनियरिंग करने के बाद रोज़गार के अच्छे मौके नहीं मिल पाएंगे। इस मामले में तत्कालीन कुलपति ने कहा था कि विश्वविद्यालय का लक्ष्य सिर्फ रोज़गार सुनिश्चित करना नहीं है, बल्कि हम चाहतें हैं कि छात्र नौकरी करने की जगह नौकरी प्रदान करें।

हिंदी भाषा और व्यवहारिकता

देश में करीब 43.63 फीसदी जनता की पहली भाषा हिंदी है। हिंदी भाषा का दायरा वक्त के साथ बढ़ता भी रहा है। जनगणना के आंकड़ों से पता चलता है कि 1971 से 2011 के बीच हिंदी बोलने वालों की संख्या 6 फीसदी बढ़ी जबकि बाकी सभी भाषाओं को जानने वालों की संख्या में गिरावट आई। कुल हिंदीभाषियों में 90 फीसदी से ज़्यादा जनसंख्या भारत के 12 राज्यों में बसती है। इसमें उत्तर प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश सबसे ऊपर हैं। मध्य भारत से लेकर दक्षिण भारत में हिंदीभाषियों की छिटपुट आबादी बिखरी हुई है। राजस्थान, छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड चार ऐसे राज्य हैं, जहां हिंदी जानने वालों की अच्छी-खासी आबादी है। हालांकि, पूर्वोत्तर भारत और तटीय क्षेत्रों से जुड़े ज्यादातर राज्यों में हिंदी का प्रभाव काफी कम है।

मतलब हमारे देश की करीब आधी आबादी हिंदी बोलती, समझती है। इसके बावजूद उच्च शिक्षा और प्रोफेशनल कोर्सेज़ में एक माध्यम के तौर पर हिंदी के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। हिंदी भाषा के लिए अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय की कोशिश की तारीफ की जानी चाहिए। लेकिन, व्यवहारिकता को समझते हुए इसे नए तरीके से आगे बढ़ाए जाने की ज़रूरत है।

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