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नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को दो दशक पुराने एक विवाह को यह कहते हुए समाप्त कर दिया कि दंपति के बीच यह रिश्ता भावनात्मक रूप से मर चुका है और दोनों पक्षों को अब साथ रहने के लिए राजी करने का कोई अर्थ नहीं है। न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए विवाह को समाप्त कर तलाक का आदेश पारित किया।

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने पति को आठ सप्ताह के अंदर पत्नी को 25 लाख रुपये का भुगतान करने का भी निर्देश दिया। पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड में मौजूद दस्तावेज की जांच करने और न्याय मित्र (एमिकस क्यूरी) की दलीलों पर विचार करने के बाद, मामले के गुण-दोष पर टिप्पणी किए बिना, दोनों पक्षों के बीच विवाह भावनात्मक रूप से मृत है और उन्हें एक साथ रहने के लिए राजी किए जाने का कोई तुक नहीं है।’’

पीठ ने कहा, “इसलिए, यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त अधिकार के प्रयोग के लिए उपयुक्त मामला है। दोनों पक्षों के विवाह को समाप्त किया जाता है। रजिस्ट्री को तदनुसार एक आदेश तैयार करने का निर्देश दिया जाता है।” पीठ ने निर्देश दिया कि पत्नी द्वारा भरण-पोषण के लिए दायर याचिका 25 लाख रुपये की राशि प्राप्त होने के बाद वापस ले ली जाएगी।

पश्चिम बंगाल में एक पुलिस अधिकारी ने 1997 में शादी की और इसे विशेष विवाह कानून, 1954 के तहत पंजीकृत कराया। इसके बाद, 2000 में हिंदू रीति-रिवाजों और रीति-रिवाजों के तहत दोनों की शादी हुयी। पति ने पत्नी द्वारा क्रूरता और छोड़ दिए जाने का आरोप लगाते हुए पांच मार्च, 2007 को जिला न्यायाधीश, अलीपुर के समक्ष विवाह समाप्त किए जाने का मुकदमा दायर किया था।

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