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पढ़ाई का बोझ बच्‍चों के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को खराब कर सकता है। यह पैरेंट्स के लिए जरूरी है कि वो बच्‍चों में स्‍ट्रेस और एंग्‍जायटी को पहचानकर उससे लड़ने और उसे दूर करने के तरीकों के बारे में खोज करें। इस बदलाव में स्‍कूल भी बच्‍चे और माता-पिता की मदद कर सकते हैं।
हर बच्‍चे से यही उम्‍मीद की जाती है कि वो पढ़ाई में अच्‍छा परफॉर्म करे क्‍योंकि सोसायटी में बच्‍चों की पढ़ाई को लेकर काफी ज्‍यादा जोर दिया जाता है। पैरेंट्स भी अपने बच्‍चे पर पढ़ाई में अव्‍वल आने को लेकर काफी ज्‍यादा प्रेशर डालते हैं और यही चाहते हैं कि उनका बच्‍चा अपनी जिंदगी में तरक्‍की करे। इस पूरे चक्‍कर में बच्‍चे के ऊपर मानसिक दबाव पड़ने लगता है जिस पर शायद ही कभी किसी का ध्‍यान जाता है।

टाइम्‍स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक आर्टिकल में साकेत के मैक्‍स सुपर स्‍पेशियलिटी हॉस्‍पीटल में मेंटल हेल्‍थ और बिहेवरियल साइंसेस के डायरेक्‍ट और हेड डॉक्‍टर समीर मल्‍होत्रा ने कहा कि किशोरावस्‍था बहुत नाजुक होती है और इस समय बच्‍चों के शरीर में कई हार्मोनल बदलाव होते हैं और वो एक विकासात्‍मक फेज से गुजर रहे होते हैं। इससे उनमें बायोलॉजिकल स्‍ट्रेस रहता है।

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