मण्डला । दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान शाखा में देव दुर्लभ गुरु पूर्णिमा महोत्सव आयोजित किया गया। अवंती बाई वार्ड जिला पंचायत के सामने हनुमान मंदिर के पीछे स्थित शाखा में वेद मंत्रोचारण के साथ गुरु आशुतोष महाराज जी का पूजन किया गया। रविवार सुबह 4 बजे से सोमवार शाम 4 बजे तक लगातार 36 घंटे की साधना संपन्न हुई। स्वामी शारदानंद जी ने अपने प्रवचन में अनेक दृष्टंतों के माध्यम से स्पष्ट किया कि सद्गुरु का साकार रूप ही सच्चे अर्थों में परम वंदनीय है। लीलाओं के द्वारा महर्षि रमण ने समझाया कि उनके अंदर बैठे निराकार ईश्वर भी अपने पूर्ण गुरु स्वरूप की महिमा गाने, उसकी सेवा और पूजा करने में स्वयं को भाग्यशाली समझते हैं। गुरु-भक्ति के आनंद से आनंदित होते हैं। क्योंकि वह ईश्वर जानते हैं, जो मेरे लिए भी असंभव है, वो मेरे सद्गुरु स्वरूप के लिए कर पाना संभव ही नहीं, सहज होता है। भगवान नियमों में बंधे होते हैं, पर सारे नियम गुरुदेव के अधीन होते हैं; यहाँ तक कि जीवन-मृत्यु भी। तो फिर क्यों न शिष्य-भक्त अपने गुरुदेव का हर पल अंतरात्मा से शुकराना करें, पूजन-वंदन करें।
मण्डला । दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान शाखा में देव दुर्लभ गुरु पूर्णिमा महोत्सव आयोजित किया गया। अवंती बाई वार्ड जिला पंचायत के सामने हनुमान मंदिर के पीछे स्थित शाखा में वेद मंत्रोचारण के साथ गुरु आशुतोष महाराज जी का पूजन किया गया। रविवार सुबह 4 बजे से सोमवार शाम 4 बजे तक लगातार 36 घंटे की साधना संपन्न हुई। स्वामी शारदानंद जी ने अपने प्रवचन में अनेक दृष्टंतों के माध्यम से स्पष्ट किया कि सद्गुरु का साकार रूप ही सच्चे अर्थों में परम वंदनीय है। लीलाओं के द्वारा महर्षि रमण ने समझाया कि उनके अंदर बैठे निराकार ईश्वर भी अपने पूर्ण गुरु स्वरूप की महिमा गाने, उसकी सेवा और पूजा करने में स्वयं को भाग्यशाली समझते हैं। गुरु-भक्ति के आनंद से आनंदित होते हैं। क्योंकि वह ईश्वर जानते हैं, जो मेरे लिए भी असंभव है, वो मेरे सद्गुरु स्वरूप के लिए कर पाना संभव ही नहीं, सहज होता है। भगवान नियमों में बंधे होते हैं, पर सारे नियम गुरुदेव के अधीन होते हैं; यहाँ तक कि जीवन-मृत्यु भी। तो फिर क्यों न शिष्य-भक्त अपने गुरुदेव का हर पल अंतरात्मा से शुकराना करें, पूजन-वंदन करें।