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पटना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीति का समय ठीक नहीं चल रहा है। इन दिनों उनकी राजनीति पर दलित ग्रहण लगता दिख रहा है। एक चिराग पासवान उनके विरुद्ध खड़े हुए तो जनता दल यू सबसे बड़ी पार्टी से तीसरे नंबर की पार्टी बन गई। अब तो महागठबंधन के विरुद्ध हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के जीतनराम राम मांझी और बहुजन समाज की अध्यक्ष मायावती ने भी विपक्षी एकता मुहिम की हवा निकालते हुए यह कह कर नीतीश कुमार की बैचैनी बढ़ा दी कि बसपा बिहार के सभी 40 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारेंगी।बिहार में बसपा का चुनाव रेकॉर्ड बहुत अच्छा तो नहीं रहा है। पर इनके उम्मीदवार के रहने से राजनीति प्रभावित तो होती है। खासकर वह इलाके जो उत्तरप्रदेश के बॉर्डर से सटे हैं, वहां के दलितों विशेषकर रविदास के बीच पार्टी की पकड़ काफी अच्छी है।

बसपा के कार्यालय प्रभारी गौतम खरवार की माने तो बसपा लगातार कई लोकसभा चुनाव में 40 सीटों पर लड़ते रहे हैं। इनका प्रभाव क्षेत्र सासाराम, बॉक्सर, गोपालगंज, बगहा, बालमिकीनगर करगहर और काराकाट हैं। यहां इनके उम्मीदवार जीत हार को अक्सर प्रभावित करते रहे हैं। गत लोकसभा चुनाव में सुनील कुशवाहा बक्सर से चुनाव में उतरे और 80 हजार से ज्यादा मत ला कर यहां की जीत को प्रभावित किया था।

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