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डिजिटल भारत l भारत देश में लिंग की असमानता का मुद्दा हमेशा से रहा है। महिलाओं को हमेशा से ही अपने सपनों को पूरा करने की आजादी नहीं थी। लेकिन फिर भी इन महिलाओं ने ऐसे व्यवसायों को चुना जिसमें केवल पुरुष ही जाया करते थे। इन महिलाओं ने अपने कार्य की उत्कृष्टता से सबको हैरत में डाला और अपना नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज कराया।। आगे की स्लाइड में देखिए ऐसी ही पांच अपने क्षेत्र की अग्रणी महिलाओं की कहानी।
21वीं सदी में भी वैश्विक स्तर पर एयरलाइन पायलटों में से महिला पायलटों की संख्या मात्र कुछ हजार है। आज की इतनी आधुनिक सोसाइटी में महिला पायलटों की इतनी कम संख्या अच्छा विषय नही हैं। लेकिन भारत को आजादी के कुछ सालों बाद ही पहली कमर्शियल महिला पायलट मिल गई थी। जिसने डैक्कन एयरवेज के लिए उड़ान भरी थी। ये महिला पायलट थीं कैप्टन प्रेमा माथुर जिन्होंने 1947 में अपना वाणिज्यिक पायलट लाइसेंस प्राप्त किया और 1949 में नेशनल एयर रेस जीती।

रानी लक्ष्मीबाई (19 नवंबर – 17 जून 1858)
भारत में जब भी महिलाओं के सशक्तिकरण की बात होती है तो महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की चर्चा ज़रूर होती है। रानी लक्ष्मीबाई न सिर्फ़ एक महान नाम है बल्कि वह एक आदर्श हैं उन सभी महिलाओं के लिए जो खुद को बहादुर मानती हैं और उनके लिए भी एक आदर्श हैं जो महिलाएं ये सोचती है कि ‘वह महिलाएं हैं तो कुछ नहीं कर सकती.’ देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम (1857) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली रानी लक्ष्मीबाई के अप्रतिम शौर्य से चकित अंग्रेजों ने भी उनकी प्रशंसा की थी और वह अपनी वीरता के किस्सों को लेकर किंवदंती बन चुकी हैं।
ऊषा मेहता सावित्रीबाई फूले (25 मार्च 1920 – 11 अगस्त 2000)

कांग्रेस रेडियो जिसे ‘सीक्रेट कांग्रेस रेडियो’ के नाम से भी जाना जाता है, इसे शुरू करने वाली ऊषा मेहता ही थीं. भारत छोड़ो आंदोलन (1942) के दौरान कुछ महीनों तक कांग्रेस रेडियो काफ़ी सक्रिय रहा था। इस रडियो के कारण ही उन्हें पुणे की येरवाड़ा जेल में रहना पड़ा। वे महात्मा गांधी की अनुयायी थीं।

बेगम हज़रत महल (1820 – 7 अप्रैल 1879)

जंगे-आज़ादी के सभी अहम केंद्रों में अवध सबसे ज़्यादा वक़्त तक आज़ाद रहा। इस बीच बेगम हज़रत महल ने लखनऊ में नए सिरे से शासन संभाला और बगावत की कयादत की। तकरीबन पूरा अवध उनके साथ रहा और तमाम दूसरे ताल्लुकेदारों ने भी उनका साथ दिया। बेगम हजरत महल की हिम्मत का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्होंने मटियाबुर्ज में जंगे-आज़ादी के दौरान नज़रबंद किए गए वाजिद अली शाह को छुड़ाने के लिए लार्ड कैनिंग के सुरक्षा दस्ते में भी सेंध लगा दी थी।

कस्तूरबा गांधी (11 अप्रैल 1869 – 22 फरवरी 1942)
मोहनदास करमचंद गांधी ने ‘बा’ के बारे में खुद स्वीकार किया था कि उनकी दृढ़ता और साहस खुद गांधीजी से भी उन्न त थे।वह एक दृढ़ आत्म शक्ति वाली महिला थीं और गांधीजी की प्रेरणा भी। उन्होंने लोगों को शिक्षा, अनुशासन और स्वास्थ्य से जुड़े बुनियादी सबक सिखाए और आज़ादी की लड़ाई में पर्दे के पीछे रह कर सराहनिय कार्य किया है।

फातिमा बीबी
1989 में भारत को अपनी पहली महिला सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश, एम फातिमा बीवी मिली। उन्होंने केरल में निचली न्यायपालिका में अपने करियर की शुरूआत की और बाद में 1972 में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट बन गई। 1984 में वह उच्च न्यायालय की स्थायी न्यायाधीश बन गईं और सिर्फ पांच साल बाद 6 अक्टूबर को न्यायाधीश के रूप में सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया गया, जहां वह 29 अप्रैल 1992 को सेवानिवृत्त हुईं।
पुनीता अरोड़ा
पुनीता अरोड़ा भारतीय सर्वोच्च सशस्त्र बल की लेफ्टिनेंट जनरल और बाद में भारतीय नौसेना की वाइस एडमिरल नियुक्त होने वाली पहली भारतीय महिला बनी। 1963 में सशस्त्र बल मेडिकल कॉलेज, पुणे में नियुक्त होने के उन्होंने भारतीय सशस्त्र बल में 36 साल का समय गुजारा जिसमें उन्हें 15 पदकों से सम्मानित किया गया।

किरण मजूमदार शॉ
पहली एक बिलियन नेटवर्थ वाली महिला बिजनेस वुमन बनीं किरण मजूमदार शॉ। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में बलारेट कॉलेज आफ एडवांसड एजुकेशन से मेलटिंग और ब्रूइंग का अध्ययन किया। वह पूरे कोर्स में एक मात्र महिला थी। अपने उद्यम को शुरू करते समय बड़ी परेशानियों का सामना करने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और वर्तमान में देश के सबसे सफल उद्यमियों में से एक हैं।

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