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डिजिटल भारत l 26/11 के आतंकी हमले को आज 14 साल पूरे हो गए हैं. इस हमले की 15वीं बरसी पर राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने ट्वीट कर हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी. साथ ही विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने हमले में मारे गए लोगों को याद किया और आतंकवाद को भारत के लिए ही नहीं बल्कि पूरी मानव जाति के लिए खतरा बताया है. इस हमले को भारतीय इतिहास के सबसे भयानक हमलों में से एक माना जाता है. इस हमले में 140 भारतीयों और 23 देशों के 26 नागरिकों समेत कुल 166 लोगों की मौत हो गई, जबकि 300 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे.
भीड़भीड़ वाले इलाकों को बनाया निशाना
साल 2008 में आज ही के दिन लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकवादियों ने भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनल, ताजमहल पैलेस होटल, होटल ट्राइडेंट, नरीमन हाउस, लियोपोल्ड कैफे और कामा अस्पताल में हमला किया था. आतंकियों ने इन भीड़भाड़ वाले इलाकों में बम धमाकों और आंधाधुंध गोलीबारी से सैकडों लोगों को मौत के घाट उतार दिया था.
कहा जाता है कि जब डेविड हेडली ने पहली बार सितंबर, 2006 में ताज होटल में प्रवेश किया तो वहाँ की समृद्धि और वहाँ काम करने वाले लोगों के व्यवहार को देखकर महसूस किया कि इस शानदार जगह को तबाह करना आसान नहीं होगा.

टॉवर लॉबी में ‘फ़्रांजेपानी’ की मादक महक और सी लाउंज की खिड़कियों से गेटवे ऑफ़ इंडिया के दृश्य ने उसे करीब-करीब विश्वास दिला दिया कि इस होटल को नष्ट करने के बारे में सोचना ग़लत है.
एड्रियन लेवी और कैथी स्कॉट क्लार्क मुंबई हमलों पर अपनी किताब ‘द सीज, द अटैक ऑन द ताज’ में लिखते हैं, “हेडली 6 फ़ीट 2 इंच लंबा था. उसके लंबे सुनहरे बाल पोनी टेल में बँधे रहते थे. वो अक्सर मुड़ी-तुड़ी अरमानी जींस और कमीज़ में नज़र आता था और उसके कंधों से एक चमड़े की जैकेट लटकती रहती थी.”

“उसकी कलाई में करीब 9 लाख रुपए की रोलेक्स घड़ी बँधी रहती थी. मुंबई में वो डेविड के नाम से मशहूर था लेकिन अपनी बहन शेरी, सौतेले भाइयों हमज़ा और दानियाल, पत्नियों पोर्शिया, शाज़िया और फ़ैज़ा और सबसे अच्छे दोस्त तहव्वुर राना के लिए वो पाकिस्तानी मूल का अमेरिकी था जिसका असली नाम था दाऊद सलीम जिलानी.”
दाऊद या कहें डेविड के पिता सैयद सलीम जिलानी पाकिस्तान के नामी ब्रॉडकास्टर थे. वो जब कुछ सालों के लिए वॉयस ऑफ़ अमेरिका में काम करने के लिए वॉशिंगटन गए थे तो उनकी मुलाकात 19 साल की सेरिल से हुई थी जो मेरीलैंड विश्वविद्यालय में स्नातक की पढ़ाई कर रही थीं.

दोनों ने शादी करने का फैसला किया और पाकिस्तान आ गए लेकिन ये शादी अधिक दिनों तक नहीं चली और सन् 1966 में सेरिल और जिलानी के बीच तलाक़ हो गया.

सेरिल वापस अमेरिका लौट आईं और दाऊद अपने पिता और अपनी सौतेली माँ के साथ लाहौर में ही रहा. लेकिन जब दाऊद 16 साल का हुआ तो वो भी अपनी माँ के पास अमेरिका चला गया.

सन 1984 में उसका फिर पाकिस्तान से आने-जाने का सिलसिला शुरू हुआ. इस बीच उसका संपर्क ड्रग तस्करों से हुआ और वो हेरोइन तस्करी के काम में लग गया.

चार वर्ष बाद कस्टम अधिकारियों ने उसे फ़्रैंकफ़र्ट हवाई अड्डे पर दो किलो हेरोइन के साथ पकड़ लिया. उसके पिता ने उससे अपने सारे संबंध तोड़ लिए.

जर्मन अधिकारियों ने उसे अमेरिका को सौंप दिया. वहाँ उसने अमेरिकियों से एक सौदा किया जिसके तहत तय हुआ वो उनके लिए मुख़बिर का काम करते हुए पाक-अमेरिकी हेरोइन नेटवर्क में घुसपैठ कर उनकी गुप्त सूचना ड्रग इन्फ़ोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन (डीईए) तक पहुँचाएगा.
इस बीच उसने शलवार कमीज़ पहनना शुरू कर दिया था, शराब, टीवी और मोबाइल फ़ोन से मुंह मोड़ लिया था.

मशहूर डेनिश पत्रकार कारे सोरेन्सन अपनी किताब ‘द माइंड ऑफ़ अ टेररिस्ट द स्ट्रेंज केस ऑफ़ डेविड हेडली’ में लिखते हैं-

“दाऊद का सपना था कि कश्मीर में लड़ने के लिए भेजा जाना लेकिन लश्कर के नेता ज़की-उर-रहमान लखवी की नज़र में इस अभियान के लिए दाऊद की उम्र कुछ ज़्यादा हो चुकी थी. उसने लश्कर के कमांडर साजिद मीर से कहा कि वो भारत पर हमले की बड़ी योजना में हेडली को भी शामिल करे. लश्कर को एक ऐसे शख़्स की ज़रूरत थी जो लंबे अरसे तक कैमरे और नोटबुक के साथ मुंबई आ-जा सके और जिसे लोगों से घुलने-मिलने से कोई परहेज़ न हो.”

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