अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी में सबसे बड़ी भूमिका किसी ने निभाई है तो वो पाकिस्तान है। अफगानिस्तान से लगातार ही पाकिस्तान के खिलाफ आवाजें आ रही हैं। आज काबुल शहर में एकबार फिर से पाकिस्तान के खिलाफ प्रदर्शन किया जा रहा है। इस प्रदर्शन में बड़ी संख्या में लोग शामिल है, जिनमें महिला और पुरुष दोनों है। काबुल की कई सड़कों से होता हुआ ये प्रदर्शन मार्च पाकिस्तान एंबेसी पहुंच चुका है, जहां इन आक्रोशित लोगों को रोकने के लिए तालिबानी लड़ाकों ने फायरिंग की है।
काबुल की सड़कों पर मार्च निकालते वक्त अफगान नागरिकों के हाथों में पोस्टर्स थे, जिनपर पाकिस्तान के खिलाफ स्लोगन लिखे हुए थे। इस दौरान उन्होंने जमकर पाकिस्तान के खिलाफ जमकर नारेबाजी की और पाकिस्तान को अफगानिस्तान की सीमा से बाहर निकालने की मांग की। इस प्रदर्शन के वीडियो अफगानिस्तान के कई पत्रकारों और न्यूज संस्थानों द्वारा सोशल मीडिया पर शेयर किए गए हैं। वीडियो में तालिबान के लड़ाके इस प्रदर्शन को खत्म कराने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं लेकिन अफगानी नागरिक लगातार सड़क पर आगे बढ़ते दिखाई दे रहे हैं।
‘भारत के पास इंतजार करने और देखने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं‘
अफगानिस्तान में सरकार को अंतिम रूप देने के तालिबान के प्रयासों के बीच पाकिस्तान के खुफिया प्रमुख द्वारा अफगानिस्तान की यात्रा किए जाने पर पूर्व भारतीय राजनयिकों ने रविवार को कहा कि युद्ध प्रभावित देश में स्थिति अभी भी “लगातार परिवर्तनशील” है और भारत के पास “बिना सोचे-समझे प्रतिक्रिया” से बचते हुए “इंतजार करने एवं देखने” के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। पाकिस्तान के इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद की अघोषित काबुल यात्रा ऐसे समय हुई है जब तालिबान पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को स्वीकार्य समावेशी सरकार बनाने का दबाव बढ़ रहा है।
वर्ष 2017 में सेवानिवृत्त होने से पहले विदेश मंत्रालय में सचिव (पूर्वी मामले) के रूप में कार्य कर चुके अनिल वाधवा ने कहा कि भारत को अफगानिस्तान के घटनाक्रम पर किसी भी तरह की बना सोचे समझे प्रतिक्रिया से बचना चाहिए तथा “प्रतीक्षा करो और देखो” की नीति का अनुपालन करना चाहिए।
वाधवा ने भाषा से कहा, “भारत को बिना सोचे-समझे प्रतिक्रिया से बचना चाहिए क्योंकि यह देखा जाना बाकी है कि तालिबान किस तरह की सरकार बनाता है और क्या वह एक समावेशी सरकार होगी या नहीं। (भारत को) बिना सोचे-समझे प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करनी चाहिए और यह देखने के लिए इंतजार करना चाहिए कि स्थिति क्या करवट लेती है।”
आईएसआई प्रमुख की काबुल यात्रा पर उन्होंने कहा कि तालिबान, विशेष तौर पर हक्कानियों पर आईएसआई का प्रभाव जगजाहिर है और इसलिए वे नयी सरकार में वह प्रभाव चाहते हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या भारत को अफगानिस्तान में नयी सरकार को अपनी उम्मीदों के बारे में अवगत कराना चाहिए, वाधवा ने कहा कि दोहा में तालिबान के प्रतिनिधियों के साथ जब भी बातचीत होती है, तो यह बताया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसकी पूरी संभावना है कि भारत तालिबानी पक्ष को पहले ही बता चुका है कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों के लिए नहीं किया जाना चाहिए।